राजनीतिक फायदे के लिए विवाद को हवा? पंजाब और हरियाणा में टकराव की आशंका

चंडीगढ़ पर अधिकार को लेकर हरियाणा और पंजाब में टकराव एक बार फिर नया आयाम ले रहा है। पंजाब विधानसभा के विशेष सत्र में चंडीगढ़ को संपूर्ण तौर पर पंजाब को देने का प्रस्‍ताव पास होने के बाद अब बारी हरियाणा की है।

फोटो: ANI
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धीरेंद्र अवस्थी

चंडीगढ़ पर अधिकार को लेकर हरियाणा और पंजाब में टकराव एक बार फिर नया आयाम ले रहा है। पंजाब विधानसभा के विशेष सत्र में चंडीगढ़ को संपूर्ण तौर पर पंजाब को देने का प्रस्‍ताव पास होने के बाद अब बारी हरियाणा की है। आनन-फानन में पांच अप्रैल को आहूत हरियाणा विधानसभा के विशेष सत्र में भी एक बार फिर दोनों राज्‍यों के विवादित मसलों पर एक नई पटकथा लिखे जाने की तैयारी है। हंगामे की भी आशंका है। कांग्रेस ने भी दिल्‍ली और चंडीगढ़ में विशेष सत्र को लेकर अपनी रणनीति को अंजाम देते हुए आम आदमी पार्टी और बीजेपी दोनों को हरियाणा विरोधी करार दिया।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के चंडीगढ़ के कर्मचारियों पर केंद्रीय सर्विस रूल लागू करने के ऐलान से शुरू हुआ यह विवाद एक बार फिर शांत माहौल को अशांत करने का सबब बनता दिख रहा है। पंजाब की आम आदमी पार्टी की सरकार और हरियाणा की बीजेपी सरकार, दोनों को यह मुद्दा मुफीद समझ आ रहा है। बड़े चुनावी वादे कर पंजाब की सत्‍ता में आई आप को वहां जनता की उम्‍मीदें भारी पड़ती दिख रही हैं तो हरियाणा में करीब साढ़े सात साल सत्‍ता में पूरी कर चुकी बीजेपी को भी यहां जवाब देना है। मूल मसलों से लोगों का ध्‍यान भटकाने के लिए दोनों दलों के लिए दोनों राज्‍यों के बीच विवादों की गठरी खोलना ही शायद बेहतर लग रहा है। 6 अप्रैल को होने वाली कैबिनेट की बैठक भी पांच को ही सत्र के बाद बुला ली गई है। सत्‍ता के गलियारों से छन कर आ रही खबरों को अगर सही मानें तो हरियाणा सरकार राजधानी चंडीगढ़ के साथ पंजाब के 400 हिंदी भाषी गांवों पर हक के अलावा एसवाईएल का पानी देने और हरियाणा के लिए अलग हाईकोर्ट का प्रस्ताव भी ला सकती है। हरियाणा में वक्‍त–वक्‍त पर चंडीगढ़ का प्रशासक हमेशा पंजाब का राज्‍यपाल ही होने पर भी सवाल उठते रहे हैं। हरियाणा का कहना है कि विधानसभा की इमारत में भी उसके हिस्‍से का पूरा हक उसे नहीं मिला है। लिहाजा, हरियाणा के लिए नई विधानसभा की बात भी चल रही है। हरियाणा और पंजाब का सचिवालय भी एक ही बिल्डिंग में है। जाहिर है कि मोदी सरकार के केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ को लेकर लिए गए एक निर्णय ने दोनों राज्‍यों के बीच बेहद संवेदनशील रिश्‍तों की गांठ को एक बार फिर खोल दिया है। अंदेशा यह है कि दोनों राज्‍यों के बीच बना भाईचारा कहीं एक बार फिर कड़वाहट में न बदल जाए। इस लिहाज से पांच अप्रैल का दिन बेहद अहम है। मुख्‍यमंत्री मनोहर लाल ने कहा है कि आप दोगली पार्टी है। राजनीति में आए चार दिन नहीं हुए हैं और विवादित मुद्दा छेड़ दिया। पंजाब सरकार पहले हरियाणा को एसवाईएल का पानी और हिंदी भाषी 400 गांव दे। अलग हाईकोर्ट को लेकर हरियाणा 2002, 2005, 2017 में और एसवाईएल नहर को लेकर 5 बार प्रस्ताव पास कर चुका है। वहीं, चंडीगढ़ पर दावे को लेकर पंजाब सात बार विधानसभा में प्रस्‍ताव पास कर चुका है, जबकि हरियाणा कभी ऐसा प्रस्ताव नहीं लाया। उधर, सोमवार को विशेष सत्र को लेकर कांग्रेस विधायक दल की बैठक में पंजाब सरकार के प्रस्‍ताव पर कड़ी आपत्ति जाहिर की गई। विधायक दल ने एकमत से कहा कि चंडीगढ़ हरियाणा की राजधानी थी, है और रहेगी। प्रदेश के अधिकारों का संरक्षण करने के लिए राज्यपाल से लेकर राष्ट्रपति तक से मुलाकात की जाएगी। साथ ही एक बार फिर प्रधानमंत्री से मिलने का समय भी मांगा जाएगा। बैठक के बाद पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह ने कहा कि पंजाब के साथ हरियाणा के तीन मसलों को लेकर विवाद है। पहला एसवाईएल का पानी, दूसरा हिंदी भाषी क्षेत्र और तीसरा राजधानी। हमारी प्राथमिकता है कि सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक हरियाणा को एसवाईएल का पानी मिले। उसके बाद बाकी मसलों पर भी बातचीत हो।


हुड्डा ने कहा कि विधायक दल की बैठक में भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड (बीबीएमबी) में हरियाणा और पंजाब की स्थाई सदस्यता खत्म किए जाने का भी विरोध किया गया। भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड में पहले सदस्य (पावर) पंजाब से और सदस्य (सिंचाई) हरियाणा से होते थे। लेकिन, संशोधित नियम में यह अनिवार्यता खत्म कर दी गई है। हुड्डा ने पंजाब विधानसभा में पास प्रस्‍ताव को एक राजनीतिक जुमला करार दिया है। वहीं, हरियाणा कांग्रेस प्रभारी विवेक बंसल और प्रदेश अध्‍यक्ष कुमारी सैलजा ने चंडीगढ़ में कहा कि चंडीगढ़ पर हरियाणा का पूरा अधिकार है, कोई भी ताकत चंडीगढ़ को हरियाणा से नहीं छीन सकती है। एसवाईएल का पानी भी जल्द से जल्द हरियाणा को मिलना चाहिए। उन्‍होंने कहा कि पंजाब विधानसभा में चंडीगढ को पंजाब में शामिल करने का प्रस्ताव पारित करने से आम आदमी पार्टी सरकार का हरियाणा विरोधी चेहरा उजागर हुआ है। अरविंद केजरीवाल शुरु से ही नहरी पानी, चंडीगढ़ और अन्य अन्तर्राजीय विषयों पर हरियाणा के खिलाफ खड़े रहे हैं और आगे भी ऐसा ही होना तय है। वर्ष 1966 में पास पंजाब पुर्नगठन एक्ट से पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ अस्तित्व में आये थे। एक्ट में प्रावधान है कि चंडीगढ़ के 60 प्रतिशत कर्मचारी पंजाब और 40 प्रतिशत हरियाणा से होंगे। चंडीगढ़ पर हरियाणा का बराबर का हक है। आम आदमी पार्टी हो या भाजपा दोनों ही लगातार हरियाणा प्रदेश के अधिकारों पर कुठाराघात करती रही हैं। बीते आठ वर्षों से केंद्र और प्रदेश दोनों में भाजपा सरकार होने के बावजूद भी हरियाणा को एसवाईएल का पानी अभी तक नहीं मिल पाया है। जबकि सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी हरियाणा प्रदेश के हक में आ चुका है।

दोनों नेताओं ने कहा कि दुर्भाग्य से हरियाणा में ऐसी गठबंधन सरकार है जिसने प्रदेश के किसी भी महत्वपूर्ण मामले में चूं तक नहीं की। खेद की बात यह है कि चौधरी देवीलाल के नाम पर नव गठित जननायक जनता पार्टी जो हरियाणा में भाजपा के साथ गठबंधन सरकार चला रही है चंडीगढ़ और एसवाईएल के मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है। आम आदमी पार्टी हो या भाजपा यह दोनों पार्टियां सिर्फ अपनी राजनितिक रोटियां सेंकने का कार्य करती हैं। हरियाणा कांग्रेस का हर नेता और कार्यकर्ता चंडीगढ़ और एसवाईएल के मुद्दे पर सड़क से लेकर सदन तक और सदन से लेकर महामहिम तक अपनी आवाज बुलंद करने को तैयार है। हरियाणा कांग्रेस मांग करती है कि चंडीगढ़ के मुद्दे पर आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल पंजाब कि सरकार द्वारा चंडीगढ़ के संबंध में लाये गए प्रस्ताव तथा सतलुज यमुना संपर्क नहर और पंजाब के हिंदी भाषी क्षेत्रों को हरियाणा में शामिल कराने पर अपना स्टैंड स्पष्ट करें। इसी मुददे को लेकर 11 से 13 अप्रैल के बीच प्रदेश के सभी जिला मुख्यालयों पर वरिष्ठ कांग्रेसजन प्रेस कांफ्रेंस करेंगे।

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