तेलंगानाः कांग्रेस-टीडीपी गठबंधन ने बढ़ाई बीजेपी की मुश्किलें, चंद्रशेखर राव भी परेशान

टीडीपी के साथ गठबंधन लोकसभा चुनावों को लेकर कांग्रेस की सधी हुई रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में टीडीपी से गठबंधन से ना सिर्फ विपक्षी महागठबंधन का दायरा बढ़ेगा, बल्कि चंद्रबाबू के फिर से एनडीए में जाने का खतरा भी नहीं रहेगा।

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

कांग्रेस, तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) और लेफ्ट पार्टियों ने तेलंगाना चुनाव के लिए के महागठबंधन का ऐलान कर दक्षिण भारत में नई राजनीति की शुरुआत कर दी है। 11 सितंबर को तीनों दलों ने महागठबंधन कर तेलंगाना विधानसभा के चुनाव में उतरने का एलान किया। कांग्रेस और टीडीपी के इस गठबंधन ने राज्य में बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दी है। साथ ही टीआरएस प्रमुख के चंद्रशेखर राव का विधानसभा समय से पहले भंग कर पहले चुनाव करना का फैसला भी उल्टा पड़ता नजर आ रहा है। तेलंगाना में अपने प्रदर्शन को लेकर आश्वस्त दिख रहे केसीआर के लिए कांग्रेस और टीडीपी के गठजोड़ के बाद 2014 जैसी जीत दोहरा पाना मुश्किल नजर आ रहा है। यही वजह है कि महागठबंधन के ऐलान के फौरन बाद बीजेपी और टीआरएस दोनों ने इस गठबंधन को नापाक बताया है।

तेलंगाना में बने इस नये समीकरण के काफी अहम राजनीतिक मायने लगाए जा रहे हैं। आकलन है कि तेलंगाना के विधान सभा चुनाव से पहले हुआ यह गठबंधन अगर आगे भी जारी रहता है तो 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों में इसके दूरगामी प्रभाव पड़ सकते हैं। गौरतलब है कि आंध्र प्रदेश से लोकसभा की 25 सीटें आती हैं और तेलंगाना से कुल 17 लोकसभा सीटें आती हैं। 2014 के आम चुनाव में दोनों राज्यों को मिलाकर कुल 42 सीटों में से टीडीपी को 16, टीआरएस को 11, वाईएसआर कांग्रेस को 9, बीजेपी को 3 और कांग्रेस को 2 सीट मिली थी।

वहीं, अगर दोनों राज्यों की विधानसभाओं की स्थिति देखें तो तेलंगाना की 119 सदस्यों वाली विधान सभा में टीआरएस के कुल 63 विधायक हैं। 21 सीटों के साथ राज्य में कांग्रेस दूसरी बड़ी पार्टी है, जबकि टीडीपी की 15 और एआईएमआईएम की 7 सीटें हैं। जबकि बीजेपी 5 सीटों के साथ तेलंगाना विधानसभा में पांचवें स्थान पर है। कयास लगाए जा रहे हैं कि तेलंगाना में कांग्रेस 90 सीटों पर चुनाव लड़ेगी जबकि 20-25 सीटों पर टीडीपी और बाकी बची सीटों पर वाम दल लड़ सकते हैं।

वहीं आंध्र प्रदेश का बात की जाए तो 175 सदस्यीय राज्य विधानसभा के लिए 2014 में हुए चुनाव में टीडीपी को 103 सीटें मिली थीं, जबकि 66 सीटों के साथ वाईएसआर कांग्रेस राज्य की मुख्य विपक्षी के रूप में उभरी थी। 4 सीटों के साथ बीजेपी तीसरे नंबर पर थी। पिछले चुनाव में आंध्र प्रदेश में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली थी। ऐसे में अगर यहां दोनों दल साथ उतरते हैं तो नतीजे बहुत हद तक पक्ष में होने की संभावना है। दोनों दलों के गठबंधन से वोटों का बिखराव भी नहीं होगा, जिससे बीजेपी को फायदा हो।

गौरतलब है कि टीडीपी के 36 सालों के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब पार्टी ने किसी दूसरे राज्य में कांग्रेस से गठबंधन किया है। आंध्र प्रदेश में टीडीपी, बीजेपी के साथ गठबंधन में रह चुकी है। कांग्रेस के विरोध में ही 36 साल पहले 1982 में टीडीपी प्रमुख एन चंद्रबाबू नायडू के ससुर और पूर्व सीएम एनटी रामाराव ने आंध्र प्रदेश में टीडीपी की स्थापना की थी। तब से लेकर अब तक टीडीपी, कांग्रेस विरोध की राजनीति करती रही है। इसी कारण से समय-समय पर चंद्रबाबू नायडू बीजेपी के करीब जाते रहे हैं। टीडीपी ने बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए से इसी साल मार्च में नाता तोड़ा है।

इसीलिए टीडीपी के साथ ये गठबंधन कांग्रेस की आगामी लोकसभा चुनावों को लेकर अपनाई गई सधी हुई रणनीति मानी जा रही है। कांग्रेस ने तकरीबन सभी राज्यों में गठबंधन बनाने के लिए खुले संकेत दे दिए हैं। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में टीडीपी से गठबंधन के बाद ना सिर्फ विपक्षी महागठबंधन का दायरा बढ़ेगा, बल्कि चंद्रबाबू के चुनाव बाद फिर से एनडीए में जाने का खतरा भी नहीं रहेगा।

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