यूपी में भगवान भरोसे कोरोना पॉजिटिव, होम आइसोलेशन के मरीजों को फोन न दवा, खरीद में भी भ्रष्टाचार

होम आइसोलेशन के मरीजों को लेकर रैपिड रिस्पांस टीम तो बना दी गई है लेकिन उनके पास न तो दवाएं हैं, न ही सुरक्षा उपकरण। गोंडा जिले के एक सीएचसी के प्रभारी बताते हैं कि ‘कोरोना संक्रमित के संपर्क में जाने से पहले पीपीई किट अनिवार्य है। लेकिन टीम को सिर्फ मास्क, टोपी, सैनेटाइजर ही मिल रहा है।

फोटो: सोशल मीडिया
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के संतोष

वाराणसी के माधोपुर मोहल्ले में रहने वाले परमानंद श्रीवास्तव एक बैंक में अधिकारी हैं। कोरोना संक्रमित होने के बाद होम आइसोलेशन में गए तो उन्हें भरोसा था कि घर बैठे चिकित्सकीय सलाह मिलेगी। चार दिन गुजरने के बाद भी न तो चिकित्सकों की टीम पहुंची और न ही फोन आया। प्राइवेट चिकित्सक के परामर्श से इलाज कराने वाले बैंक मैनेजर कहते हैं कि ‘सरकारी व्यवस्था के भरोसे जिंदगी नहीं बचती।'

गोरखपुर में मुख्यमंत्री आवास से बमुश्किल 1,000 मीटर दूरी पर रहने वाले दीपक सिंघल और मनीष मिश्रा के परिवार के चार-चार सदस्य संक्रमित हुए। दीपक बताते हैं कि ‘पॉजिटिव की सूचना मिलने के तीन दिनों बाद तक स्वास्थ्य विभाग या प्रशासन की तरफ से कोई फोन नहीं आया। चौथे दिन कंट्रोल रूम में फोन करने के बाद चिकित्सकीय टीम पहुंची। इलाज के नाम पर कुछ नहीं मिला।’ नगर निगम में राजस्व निरीक्षक के पद पर तैनात अवध श्रीवास्तव गोरखपुर में लेबल थ्री मानक के निजी अस्पताल में इलाज करा रहे थे। सरकारी दावे के मुताबिक, वेंटिलेटर के मरीजों से प्रतिदिन 13 हजार से अधिक नहीं लिया जा सकता लेकिन 10 दिन में अस्पताल ने पांच लाख रुपये खर्च करा डाला। इससे भी सुधार नहीं हुआ तो निजी चिकित्सकों की सलाह पर घर आ गए। आठ लाख खर्च हो चुके हैं। सांस की दिक्कत बनी हुई है।


दरअसल, होम आइसोलेशन के मरीजों को लेकर रैपिड रिस्पांस टीम तो बना दी गई है लेकिन उनके पास न तो दवाएं हैं, न ही सुरक्षा उपकरण। गोंडा जिले के एक सीएचसी के प्रभारी बताते हैं कि ‘कोरोना संक्रमित के संपर्क में जाने से पहले पीपीई किट अनिवार्य है। लेकिन टीम को सिर्फ मास्क, टोपी, सैनेटाइजर ही मिल रहा है। इनकी भी उपलब्धता मुश्किल से ही होती है।’ लखनऊ, गोरखपुर सेलेकर वाराणसी में आरआरटी के सदस्य उपकरणों की कमी को लेकर जिम्मेदारों से गुहार लगा चुके हैं। उपकरणों की उपलब्धता के सवालपर गोरखपुर के ब्रह्मपुर ब्लॉक में तैनात चिकित्सक डॉ. सिद्धार्थ शंकर बताते हैं कि ‘मरीजों को ऑक्सीमीटर देने से पहले फोटो खींचते हैं, ताकि ठीक होने के बाद इसे लौटाने की बात पर मरीज मुकर न जाए। बाद में ऑक्सीमीटर दूसरे मरीज को दी जाती है।’ होम आइसोलेशन में मरीज खुद इलाज कर मुश्किल में फंस रहे हैं। चेस्ट फिजिशियन डॉ. वीएन अग्रवाल बताते हैं कि ‘तमाम मरीजों ने घर पर ऑक्सीजन सिलेंडर रख लिया है। मानक के विपरीत ऑक्सीजन लेने से वे अन्य बीमारियों से ग्रस्त हो रहे हैं।’

खरीद में भ्रष्टाचार

कई जिलों में मरीजों को दिए जाने वाले मेडिकल किट से लेकर अन्य उपकरणों की खरीद में भ्रष्टाचार के मामले उजागर हो रहे हैं। सुल्तानपुर के डीएम सी.इंदुमति पर ऑक्सीमीटर और थर्मामीटर की खरीद में भ्रष्टाचार का आरोप खुद स्थानीय भाजपा विधायक देव मणि द्विवेदी ने लगाया है। इस पर मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव संजय प्रसाद ने पंचायती राज के अपर मुख्यसचिव से रिपोर्ट मांगी है। राज्यसभा सांसद संजय सिंह आरोप लगाते हैं कि ‘2,800 रुपये में किट खरीदने के शासनादेश को दर किनार कर डीएम ने 9,950 रुपये में खरीद कराई।’ रायबरेली के जिलाधिकारी वैभव श्रीवास्तव ने अपने सीएमओ संजय शर्मा के लिए अपमानित करने वाली भाषा का उपयोग कर विवाद खड़ा कर दिया। वैसे, इसकी असली वजह चिकित्सकीय उपकरणों की खरीदारी बताई जा रही है।

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