बिहार में हद से गुजर गया है अपराध का बोलबाला, क्यों शर्म नहीं आती सुशासन बाबू को !

बिहार के समाज की परिपक्व समझ और प्रशासन के अपने लंबे अनुभव के बावजूद मंझे हुए राजनेता नीतीश कुमार का अपराध की समस्या पर काबू न पाना लोगों को उलझन में डाल देता है। आखिर कानून-व्यवस्था की स्थिति सुधारने के लिए वे किस चीज का इंतजार कर रहे हैं?

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

इन दिनों बिहार की कानून-व्यवस्था राष्ट्रीय विमर्श का हिस्सा है। जिस तेजी से बिहार में आपराधिक घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है, वह न सिर्फ प्रदेश की जनता के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए चिंता की बात है। आए दिन राज्य में हत्याएं हो रही हैं। दिन-दहाड़े अपहरण और डकैती की जा रही है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा में भी तेजी आई है। प्रदेश की जनता में इन घटनाओं को लेकर बेचैनी व्याप्त है। विपक्षी पार्टियों, व्यापारियों, स्वतंत्र संगठनों और आम लोगों का निरंतर विरोध प्रदर्शन जारी है। लेकिन राज्य सरकार की तरफ से आपराधिक घटनाओं पर काबू पाने की कोई गंभीर कार्रवाई नहीं दिख रही है।

जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्ष के नेता हुआ करते थे तो प्रदेश में लालू-राबड़ी की सरकार के दौरान होने वाले अपराध की घटनाओं पर उनकी कड़ी प्रतिक्रिया हुआ करती थी। सत्ता में आने के लिए बिहार की जनता को सुशासन का जो सपना उन्होंने दिखाया था, उसमें अपराध नियंत्रण प्रमुख मुद्दों में शामिल था। आखिर उस वादे का क्या हुआ?

नीतीश कुमार 13 सालों से प्रदेश की सत्ता पर काबिज हैं। बीच में जीतनराम मांझी कुछ महीनों के लिए मुख्यमंत्री तो बने, लेकिन सरकार तो नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू की ही थी। इस दौरान वे बीजेपी से पाला बदलकर आरजेडी-कांग्रेस और आरजेडी-कांग्रेस से पाला बदलकर फिर से बीजेपी के साथ जा चुके हैं। बड़ी बात यह है कि बीजेपी के साथ उनकी दूसरी पारी में न सिर्फ आपराधिक घटनाओं को बोलबाला बढ़ा है, बल्कि सांप्रदायिक हिंसा में भी तेजी आई है। बिहार के समाज की परिपक्व समझ और प्रशासन के अपने लंबे अनुभव के बावजूद इतने मंझे हुए राजनेता का इस समस्या पर काबू न पाना लोगों को उलझन में डाल देता है। आखिर कानून-व्यवस्था की स्थिति सुधारने के लिए वे किस चीज का इंतजार कर रहे हैं?

निश्चित रूप से, इस पूरी स्थिति ने उनके चेहरे की चमक छीन ली है और देश के सबसे असफल नेताओं-प्रशासकों की सूची में उन्हें उच्च स्थान पर ला दिया है। कई तथ्य और आंकड़े इसकी गवाही देते हैं। 2018 तो इस लिहाज से काफी अहम साल रहा है। सिर्फ दिसंबर के महीने में ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिससे किसी भी सरकार का सिर शर्म से झुक जाना चाहिए।

अभी दो दिन पहले 25 दिसंबर को हाजीपुर में पटना के एक बड़े ट्रांसपोर्टर दीनानाथ राय की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इससे पहले हाजीपुर में ही एक सनसनीखेज हत्याकांड में 20 दिसंबर को अपराधियों ने बीजेपी नेता और पटना के बड़े कारोबारी गुंजन खेमका को मार दिया था। उसके 2 दिन बाद ही 22 दिसंबर को दरभंगा में राष्ट्रीय राजमार्ग-57 निर्माण कार्य में लगे ठेकेदार केपी शाही की हत्या कर दी गई थी।

21 दिसंबर को मुजफ्फरपुर में अपराधियों ने ठेकेदार लड्डू सिंह को मौत के घाट उतार दिया था। 21 दिसंबर को ही बेगूसराय में महेश सिंह नाम के एक प्रॉपर्टी डीलर की अपराधियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। इससे पहले 5 दिसंबर को राजधानी में अपराधियों ने पटना हाईकोर्ट के वकील जितेंद्र कुमार मार दिया था। ये सारी वारदातें हाई प्रोफाइल हैं। इससे समझा जा सकता है कि प्रदेश में आम लोगों का क्या हाल होगा।

2018 में संगठित अपराध की सबसे बड़ी घटना मुजफ्फरपुर शेल्टर होम में नाबालिग लड़कियों के यौन शोषण के रूप में सामने आई, जो बिहार के चेहरे पर बदनुमा दाग की तरह है। इसमें ब्रजेश ठाकुर जैसे राजनीतिक रूप से रसूखदार लोगों के अलावा बिहार सरकार की महिला मंत्री मंजू वर्मा के पति की संलिप्पता भी उजागर हुई।

बिहार पुलिस की वेबसाइट पर सितंबर, 2018 तक के आंकड़े मौजूद हैं। उन आधिकारिक आंकड़ों की ही मानें को स्थिति की गंभीरता का अंदाजा लग सकता है। सिर्फ 9 महीनों में ही संज्ञान लेने योग्य 197148 आपराधिक घटनाओं को राज्य में अंजाम दिया जा चुका है। सबसे ज्यादा आपराधिक घटनाएं - 25946 इस साल मई के महीने में हुई हैं। इसी महीने में सबसे ज्यादा 322 हत्याओं को दर्ज किया गया, जबकि सितंबर तक कुल 2295 हत्याएं हो चुकी हैं। सबसे ज्यादा घटनाएं अपहरण और चोरी-डकैती की हुई हैं।

बिहार पुलिस की वेबसाइट से साभार
बिहार पुलिस की वेबसाइट से साभार

नीतीश कुमार की असहायता का सितंबर में दिए उनके बयान से पता चलता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि वे पुलिस के आधुनिकीकरण पर हज़ार करोड़ रुपये खर्च करने को तैयार हैं, लेकिन क्राइम कंट्रोल होना चाहिए। यहां तक कि सितंबर में ही अपराधियों पर लगाम कसने की बजाय बिहार के डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी ने उनसे यह अपील की कि वे पितृपक्ष में अपराध न करें।

एक तो पहले से ही बिहार पिछड़े राज्यों की सूची में अग्रणी है। क्या हिंसा की यह स्थिति उसे और पिछड़ा नहीं बना देगी? ऐसी खबरें भी सामने आई हैं कि बड़ी संख्या में राज्य के व्यापारी प्रदेश छोड़कर जाने की सोच रहे हैं।

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