केन्द्र से हाई कोर्ट का सवाल, रेप पर मौत की सजा का अध्यादेश लाने से पहले क्या कोई अध्ययन किया गया? 

हाई कोर्ट एक पुरानी जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें रेप के दोषी को कम से कम 7 साल की सजा देने का प्रावधान है और उससे कम सजा देने के कोर्ट के अधिकार को खत्म कर दिया गया है।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

दिल्ली हाई कोर्ट ने केन्द्र सरकार से आज पूछा कि क्या इसने 12 साल से कम की लड़कियों से रेप पर मौत की सजा का प्रावधान करने वाला अध्यादेश लाने से पहले कोई शोध या वैज्ञानिक आकलन किया है।

दो दिन पहले ही केन्द्रीय कैबिनेट ने अपराध कानून (संशोधन) अध्यादेश को मंजूरी दी है, जिसके अनुसार 12 साल से कम की लड़की से रेप करने पर कम से कम 20 साल से लेकर आजीवन कारावास और मौत की सजा का प्रावधान किया गया है।

दिल्ली हाई कोर्ट की कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और जस्टिस सी हरि शंकर की पीठ ने सरकार से पूछा, “क्या आपने कोई अध्ययन या वैज्ञानिक आकलन किया है मौत की सजा के प्रावधान से रेप में कमी आएगी? क्या आपने पीड़ित पर पड़ने वाले इसके प्रभाव के बारे में सोचा है? कितने अपराधी रेप पीड़ित को जिंदा छोड़ेंगे अगर हत्या और रेप में मिलने वाला दंड समान हो जाएगा?”

दरअसल, हाई कोर्ट 2013 के अपराध कानून अधिनियम को लेकर दायर पुरानी जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें रेप के दोषी को कम से कम 7 साल की सजा देने का प्रावधान है और उससे कम सजा देने के कोर्ट के अधिकार को खत्म कर दिया गया है।

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