डल झील की सैर के साथ यूरोपीय सासंदों ने किया श्रीनगर का ‘सरकारी’ दौरा, लेकिन देश के सांसदों पर क्यों है पाबंदी !

यूरोपीय सांसदों का एक दल मंगलवार को कड़ी सुरक्षा के बीच एक दिन के श्रीनगर दौरे पर पहुंचा। अनुच्छेद 370 हटने के बाद से पहले विदेशी प्रतिनिधिमंडल के घाटी के दौरे को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। विपक्ष ने भारतीय सांसदों पर रोक को देश की संसद का अपमान बताया है।

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

कश्मीर में जारी प्रतिबंधों के बीच मंगलवार को यूरोपीय सांसदों के प्रतिनिधिमंडल का एक दिवसीय घाटी का दौरा ‘सरकारी लंच’ और डल झील की सैर के साथ संपन्न हो गया। मंगलवार सुबह यूरोपीय संघ में शामिल देशों के करीब 28 सांसदों का दल श्रीनगर पहुंचा। वहां पहुंचने पर दल को श्रीनगर एयरपोर्ट से कड़ी सुरक्षा के बीच पहले होटल ले जाया गया और फिर वहां से उन्हें स्थानीय प्रशासन द्वारा आयोजित लंच में शामिल होने के लिए ले जाया गया। इसके बाद सेना के 15 कोर मुख्यालय में प्रतिनिधिमंडल को कश्मीर के हालात की जानकारी दी गई। दौरे के दौरान विदेश प्रतिनिधिमंडल ने डल झील की सैर भी की।

हालांकि, यूरोपीय संघ के सांसदों के इस दौरे के बीच भी कश्मीर में बंद लागू रहा। बाजारों में दुकानें बंद रहीं और सड़कों से सार्वजनिक परिवहन नदारद रहे। सड़कों पर निजी वाहनों की संख्या भी ना के बराबर देखी गई। मंगलवार को श्रीनगर के ज्यादातर बाजार बंद रहे। हालांकि, कश्मीर में मंगलवार से शुरू मैट्रिक की परीक्षा की वजह से स्कूलों और परीक्षा केंद्रों पर कुछ छात्र जरूर नजर आए, लेकिन कई इलाकों से प्रदर्शनों और झड़पों की खबरें भी आईं। इस दौरे की वजह से घाटी में सुरक्षा और कड़ी की गई है, जिससे पहले से प्रतिबंध झेल रहे स्थानीय लोगों में इसे लेकर आक्रोश देखा गया।

इस बीच यूरोपीय सासंदों के इस दौरे को लेकर सवाल उठ गए हैं। विपक्ष ने इन इसे मोदी सरकार की छवि चमकाने की कोशिश बताते हुए देश के सांसदों के कश्मीर जाने पर प्रतिबंध और विदेशी सांसदों को सरकार द्वारा घाटी का दौरा कराने पर सवाल उठाए हैं। कश्मीर की पार्टियों ने विदेशी दल के राज्य के नेताओं और स्थानीय लोगों से मुलाकात नहीं करने पर सवाल उठाया है। नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी ने प्रतिनिधिमंडल से आम लोगों और नेताओं से मुलाकात करने की मांग भी की थी। हिरासत में कैद राज्य की पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती की ओर से उनकी बेटी ने ट्वीट कर सवाल उठाया कि यह प्रतिनिधिमंडल जम्मू-कश्मीर के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों से क्यों नहीं मिल सकता?


कांग्रेस ने भी मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए बीजेपी सरकार को आड़े हाथों लिया। सोमवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने दौरे पर सवाल उठाते हुए भारतीय सांसदों पर रोक को लेकर मोदी सरकार को घेरते हुए कहा था कि यह गलत है। कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने कहा कि इस दौरे को भारतीय संसद की संप्रभुता का अपमान बताते हुए मांग रखी कि सरकार को बताना चाहिए कि उसने संसदीय विशेषाधिकारों का उल्लंघन क्यों किया। संसदीय समिति को इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई। इस मामले पर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने भी सरकार पर निशाना साधा। उन्होंनें ट्वीट में कहा कि “कश्मीर में यूरोपियन सांसदों को सैर-सपाटा और हस्तक्षेप की इजाजत, लेकिन भारतीय सांसदों और नेताओं को हवाई अड्डे से ही वापस भेजा गया। बड़ा अनोखा राष्ट्रवाद है यह!

विपक्षी दलों ने यूरोपीय सांसदों के इस दौरे को मोदी सरकार का पीआर अभियान करार देते हुए भारतीय सांसदों और हाल ही में अमेरीकी सेनेटर के प्रतिनिधिमंडल को कश्मीर दौरे की अनुमति नहीं दिए जाने पर सवाल खड़े किए हैं। सभी दलों ने विदेशी प्रतिनिधिमंडल के दौरे को अतंरराष्ट्रीय स्तर पर छवि सुधारने की मोदी सरकार की कोशिश करार दिया है। दौरे पर आम लोगों और स्थानीय नेताओं से मिलने के बजाय प्रतिनिधिमंडल के श्रीनगर की मशहूर डल झील की सैर की खबरें भी इस दौरे की गंभीरता पर सवाल उठाती हैं।

इस बीच बता दें कि यूरोपीय सांसदों का यह दौरा आधिकारिक नहीं है, बल्कि यूरोप की एक एनजीओ द्वारा आयोजित किया गया है। खास ये है कि इस दल के ज्यादातर सदस्य अपने-अपने देश की घोर दक्षिणपंथी पार्टियों से हैं। इस दल में इटली, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, चेक और पोलैंड के सांसद शामिल हैं। बताया जा रहा है कि दल के कुल 27 सदस्यों में से 22 घोर दक्षिणपंथी हैं। इनमें वैसे नेता शामिल हैं जो इटली में प्रवासियों के बसने के घोर विरोधी हैं और यूके में ब्रेक्जिट के प्रबल समर्थक हैं और कई तो मुस्लिम विरोधी विचारधारा के भी बताए जा रहे हैं।

गौरतलब है कि मोदी सरकार ने 5 अगस्त को संसद से जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन बिल पारित कराकर अनुच्छेद 370 को खत्म करने के साथ ही राज्य को दो नये केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया। इसके बाद से बने हालात को काबू करने के लिए सरकार ने 5 अगस्त से राज्य में कड़ प्रतिबंध लगा रखे हैं। राज्य के तमाम बड़े नेताओं को हिरासत में नरबंद रखा गया है और मोबाइल और इंटरनेट सेवाएं लगातार बंद हैं। अब 31 अक्टूबर से जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दो अलग-अलग नए केंद्र शासित प्रदेश अस्तित्व में आ जाएंगे।

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Published: 29 Oct 2019, 7:33 PM
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