लेखकों पर लगातार हो रहे हमले की साहित्य अकादमी ने की निंदा, अध्यक्ष ने कहा पीएम मोदी को लिखेंगे पत्र

देश में लेखकों पर लगातार हो रहे हमलों की निंदा करते हुए साहित्य अकादमी ने इस पर चिंता जाहिर की है। अकादमी के अध्यक्ष ने कहा है कि वह इस मामले पर पीएम मोदी को पत्र लिखेंगे।

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

गोवा के पुरस्कार विजेता लेखक दामोदर मौजो और मलयालम उपन्यासपकार एस हरीश को बार-बर मिल रही धमकियों के मद्देनजर साहित्य अकादमी ने सभी लेखकों के प्रति एकजुटता दिखाते हुए उन पर होने वाले हमलों की कड़ी निंदा की है। साहित्य अकादमी के अध्यक्ष चंद्रशेखर कंबार ने इस संबंध में कहा, "मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि अकादमी लेखकों के खिलाफ सभी हमलों की निंदा करती है। मैं मौजो व हरीश से जुड़ी खबरों से दुखी और चिंतित हूं। मैं कड़े शब्दों में इन धमकियों की निंदा करता हूं।" अकादमी ने एक विज्ञप्ति के माध्यम से कहा कि अकादमी न सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनिया में लेखकों, विचारकों और कवियों पर होने वाले सभी हमलों की निंदा करती है।

साहित्य अकादमी के 81 वर्षीय अध्यक्ष चंद्रशेखर कंबर ने कहा कि वह पीएम मोदी को पत्र लिखकर हरीश जैसे लेखकों को मिल रही धमकियों की ओर उनका ध्यान आकृष्ट करेंगे। उन्होंने बताया कि वह इस मामले को लेकर संस्कृति मंत्री महेश शर्मा से बात करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन वह उपलब्ध नहीं हैं। कंबर ने दृढ़ता के साथ कहा, "अकादमी स्वतंत्र आवाज का समर्थन करती है और मुझे इसमें कोई संकोच नहीं होगा।" हालांकि, इससे पहले लेखक और चिंतक एम एम कल्बुर्गी, गोविंद पनसरे और नरेंद्र दाभोल्कर की हत्या की निंदा करने में अकादमी को 54 दिन लगने की बात पर उन्होंने कहा कि बीती बात को छोड़ देना चाहिए क्योंकि अकादमी नवचेतना के दौर में है। विज्ञप्ति में कहा गया है कि साहित्य अकादमी इन हमलों की कड़ी निंदा करती है और लेखकों के साथ खड़ी है।

बता दें कि गोवा के अवार्ड विजेता लेखक दामोदर मौजो और मलयालम उपन्यासपकार एस हरीश को बार-बार मिल रही धमकियों पर 26 प्रमुख लेखकों ने पत्र लिखकर अकादमी से इन घटनाओं की निंदा करने का आग्रह किया था। भारतीय लेखक मंच के बैनर तले नयनतारा सहगल, केकी दारुवाला, के सच्चिदानंद, रीतू मेनन, जेरी पिंटो और मीना अलेक्जेंडर ने अकादमी से पत्र लिखकर हमलों की निंदा करने का आग्रह किया था। लेखक मंच का कहना है कि 2015 में अकादमी साहसिक और सार्वजनिक रुख अपनाने में विफल रही थी।

अकादमी के बयान पर कवि केकी दारुवाला ने इसे प्रशंसनीय कदम ठहराया और कहा कि वह प्रसन्न हैं कि 2015 जैसी स्थिति नहीं दोहराई गई। उन्होंने कहा, “हमने अपना काम कर दिया है। मैं अकादमी के मुखर होने की प्रशंसा करता हूं, खासतौर से श्री कंबार के कदम की सराहना करता हूं, जो 2015 की तरह चुप नहीं रहे बल्कि मुद्दे पर तत्काल संज्ञान लिया।"

इससे पहले गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने मलयालम लेखक एस हरीश की किताब 'मीशा' पर प्रतिबंध की मांग वाली याचिका पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा था कि किताबों पर प्रतिबंध लगाने की संस्कृति से विचारों के स्वतंत्र प्रवाह पर असर होगा और इसका सहारा तब तक नहीं लेना चाहिए जब तक वह भारतीय दंड संहिता की धारा 292 के तहत न आता हो, जिसमें अश्लीलता पर रोक का प्रावधान है। हालांकि प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने 'मीशा' से कुछ अंश हटाने की मांग वाली याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।

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