दिल्ली में वायु प्रदूषण में कमी के झूठे दावे, हरेक आपदा का इवेंट मैनेजमेंट कर किया जा रहा गुमराह!

हमारे देश में पिछले कुछ वर्षों में जो सबसे बड़ा बदलाव आया है, वह है हरेक आपदा का इवेंट मैनेजमेंट। प्रदूषण भी अब एक इवेंट मैनेजमेंट बन गया है। इस दौर में गुमराह करने का काम इवेंट मैनेजमेंट द्वारा किया जाता है।

फोटोः विपिन
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महेन्द्र पांडे

वर्ष 2014 के बाद से देश की हरेक समस्या का हल आंकड़ों की बाजीगरी में है– अधिकतर मामलों में सरकार के पास आंकड़े ही नहीं होते, और शेष मामलों में आंकड़ों को आधा-अधूरा पेश किया जाता है, जिससे समस्या का समाधान होता हुआ दिखे। देश में वायु प्रदूषण भी ऐसा ही मसला है, जिसके नियंत्रण के नामपर पिछले कुछ वर्षों के दौरान कई योजनाएं इवेंट मैनेजमेंट के तरीके से शुरू की गईं। इन योजनाओं का प्रचार खूब किया गया, पर वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ता रहा। हाल में ही केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बताया है कि वर्ष 2022 में दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स केवल 6 दिनों तक खतरनाक स्तर पर रहा, जो पिछले 7 वर्षों में सबसे का है। वर्ष 2021 में 24 दिन, वर्ष 2020 में 15 दिन, वर्ष 2019 में 24 दिन, वर्ष 2018 में 19 दिन, वर्ष 2017 में 9 दिन और वर्ष 2016 में 25 दिन एयर क्वालिटी इंडेक्स खतरनाक स्तर पर रहा। एयर क्वालिटी इंडेक्स जब 400 पार कर जाता है और 500 के बीच रहता है तब वायु प्रदूषण को खतरनाक स्तर पर माना जाता है।

केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बताया कि वर्ष 2022 में महज 204 घंटे ही वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर था, जबकि वर्ष 2021 में यह अवधि 628 घंटे थी। इसी तरह अच्छी वायु गुणवत्ता वर्ष 2022 में कुल 1096 घंटे देखी गई, जबकि वर्ष 2021 में यह अवधि 927 घंटे ही रही थी। पिछले वर्ष दिसम्बर में वायु गुणवत्ता केवल 2 दिनों के लिए खतरनाक श्रेणी में थी, जो वर्ष 2017 के बाद सबसे कम है। वर्ष 2022 के अक्टूबर-नवम्बर महीनों में पीएम 2.5 का स्तर हवा में वर्ष 2021 की तुलना में 38 प्रतिशत कम था। पीएम 2.5 का औसत स्तर वर्ष 2022 में 99.71, वर्ष 2021 में 107.78, वर्ष 2020 में 99.01 वर्ष 2019 में 109.18, वर्ष 2018 में 114.86 और वर्ष 2017 में 118.43 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर था। जाहिर है, जब पीएम 2.5 की सबसे कम सांद्रता भी देश के परिवेशी वायु में पीएम 2.5 के मानक, 40 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर से ढाई गुना अधिक रहती है।


केंद्र सरकार की संस्थाओं के अनुसार दिल्ली में पिछले वर्ष तथाकथित कम वायु प्रदूषण का कारण सरकार द्वारा इसके नियंत्रण के लिए लिए जाने वाले कदम हैं। यदि आप वायु प्रदूषण के जानकार नहीं हैं, तो यह सरकारी वक्तव्य आपको प्रभावित कर सकता है। दरअसल दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर कम और अधिक होना हवा की दिशा, गति और बारिश पर निर्भर करता है। सरकारी योजनाएं बस दुष्प्रचार तक ही सीमित हैं, इनका वायु प्रदूषण पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। सर्दियों के शुरू में दिल्ली में वायु प्रदूषण का एक बड़ा कारण पंजाब और हरयाणा के किसानों द्वारा खेतों में कृषि अपशिष्ट, या पराली, को खुले में जलाना है। पिछले वर्ष पंजाब में 30 प्रतिशत कम और हरयाणा में 48 प्रतिशत कम कृषि अपशिष्ट जलाया गया। जाहिर है, इसका सीधा असर दिल्ली की वायु गुणवत्ता पर पड़ा।

यह एक सामान्य अनुभव का विषय है कि सर्दी में वायु प्रदूषण का स्तर अधिक और गर्मी में अपेक्षाकृत कम रहता है। सर्दियों में हवा अधिक घनी होती है, इसलिए प्रदूषक पदार्थों का हवा में विलय कठिन होता है और वायु प्रदूषण का सबसे अधिक असर भूमि की सतह के पास ही रहता है। दूसरी तरफ जब तापमान अधिक रहता है तब प्रदूषक पदार्थ हवा में जल्दी मिलते है और दूर तक फ़ैल जाते हैं, जिनसे प्रदूषण की सांद्रता अपेक्षाकृत कम रहती है। हाल में ही मौसम विभाग ने बताया है कि देश में पिछले वर्ष दिसम्बर का महीन पिछले 122 वर्षों में सबसे गर्म रहा। देश में पिछले वर्ष दिसम्बर में औसत तापमान 21.49 डिग्री सेल्सियस रहा, जबकि इससे पहले के वर्षों में औसत तापमान 20.49 डिग्री सेल्सियस था। जाहिर है औसत तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई, जिस कारण वायु प्रदूषण का स्तर भी कम रहा होगा। देश में औसत न्यूनतम तापमान में भी दिसम्बर 2022 में 1.2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि देखी गई।

केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2021 और वर्ष 2022 में दिल्ली में औसत एयर क्वालिटी इंडेक्स बिल्कुल एक जैसा, यानि 209, रहा। वर्ष 2020 में यह औसत 185 था। एयर क्वालिटी इंडेक्स का निर्धारण कुल 8 पैरामीटरों – पीएम 10, पीएम 2.5, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, ओजोन, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, अमोनिया और लीड – के आधार पर किया जाता है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2021 की तुलना में पीएम10 और पीएम2.5 की औसत सांद्रता वर्ष 2022 में कम थी, पर एयर क्वालिटी इंडेक्स का औसत बिलकुल एक था। रिपोर्ट में तो नहीं बताया गया है, पर सामान्य ज्ञान वाले किसी भी व्यक्ति के मस्तिष्क में यह सवाल उठाना लाजिमी है कि वर्ष 2022 में किसी पैरामीटर का औसत मान वर्ष 2021 से अधिक रहा होगा, पर रिपोर्ट इस बारे में बिलकुल खामोश है।

पिछले कुछ वर्षों से दिल्ली की हवा में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड की सांद्रता बढ़ती जा रही है, और इसका कारण सीएनजी का बढ़ता उपयोग है। जब हवा में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ती है, तब ओजोन की सांद्रता भी बढ़ती है। दिल्ली की हवा में इन दोनों प्रदूषकों कीमात्रा लगातार बढ़ रही है, पर केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की हरेक रिपोर्ट पीएम10 और पीएम 2.5 से शुरू होकर इसी पर ख़त्म हो जाती है।


सबसे आश्चर्यजनक तथ्य तो यह है कि वर्ष 2020 में कोविड 19 के कारण जब पूरे देश में हरेक औद्योगिक और परिवहन से सम्बंधित गतिविधियां 6 महीने से भी अधिक समय तक पूरी तरह से ठप्प थीं, फिर भी खतरनाक श्रेणी में एयर क्वालिटी इंडेक्स 15 दिनों तक रहा। दूसरी तरफ पूरे वर्ष 2022 के दौरान जब हरेक आर्थिक और सामाजिक गतिविधियां पूरी तरह से सामान्य थीं, तब केवल 6 दिनों तक ही हवा खतरनाक स्तर पर रही। ये सभी आंकड़े एक जादू की तरह लगते हैं, जिनसे एक भ्रमजाल फैलता है और हम वायु प्रदूषण के कारण हांफते और खांसते हुए भी यकीन कर लेते हैं कि सरकार ने बहुत काम किया है और वायु प्रदूषण कम होने लगा है। वायु प्रदूषण बढ़ता रहेगा, हम मरते रहेंगें पर सरकारी आंकड़े इसे कम करते रहेंगें और प्रदूषण से कोई बीमार नहीं होता इसका प्रचार करती रहेगी।

हमारे देश में पिछले कुछ वर्षों में जो सबसे बड़ा बदलाव आया है, वह है हरेक आपदा का इवेंट मैनेजमेंट। प्रदूषण भी अब एक इवेंट मैनेजमेंट बन गया है। इस दौर में गुमराह करने का काम इवेंट मैनेजमेंट द्वारा किया जाता है, इसके माध्यम से सबसे आगे वाले को धक्का मारकर सबसे पीछे और सबसे पीछे वाले को सबसे आगे किया जा सकता है। अब तो प्रदूषण नियंत्रण भी एक विज्ञापनों और होर्डिंग्स का विषय ही रह गया है, जिसपर लटके नेता मुस्कराते हुए दिनरात गुबार में पड़े रहते हैं। पब्लिक के लिए भले ही वायु प्रदूषण ट्रेजिक हो, हमारी सरकार और नेता इसे कॉमेडी में बदलने में कोई कसर नहीं छोड़ते। सरकारें विरोधियों पर हमले के समय वायु प्रदूषण का कारण कुछ और बताती हैं, मीडिया में कुछ और बताती हैं, संसद में कुछ और बताती हैं और न्यायालय में कुछ और कहती हैं। दूसरी तरफ मीडिया कुछ और खबरें गढ़ कर महीनों दिखाता रहता है। न्यायालय हरेक साल बस फटकार लगाता है, मीडिया और सोशल मीडिया पर खबरें चलती हैं, फिर दो-तीन सुनवाई के बाद मार्च-अप्रैल का महीना आ जाता है और न्यायालय का काम भी पूरा हो जाता है।

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