“किसान मुक्ति यात्रा: कर्ज से मुक्ति है किसानों का अधिकार”

किसान मुक्ति यात्रा के नेताओं ने इस बात पर जोर दिया कि देश और सरकार किसानों की कर्जदार है, किसान उनके कर्जदार नहीं हैं।

किसान मुक्ति यात्रा के दौरान खम्मम, सूर्यपेटा में उमड़ा जनसैलाब/ फोटो: Twitter
किसान मुक्ति यात्रा के दौरान खम्मम, सूर्यपेटा में उमड़ा जनसैलाब/ फोटो: Twitter
user

नवजीवन डेस्क

किसान मुक्ति यात्रा का दक्षिण भारत का दौरा 16 सितम्बर से हैदराबाद में शुरू हुआ था और तेलंगाना के कई हिस्सों से होता हुआ यह कारवां 17 सितम्बर को आंध्र प्रदेश पहुंचा। सोमवार को यात्रा ने अनंतपुर और मदनपल्लै में सभाएं कीं। 19 सितम्बर को यह यात्रा तमिलनाडू पहुंचेगी और 23 सितम्बर को बेंगलुरु में यह यात्रा संपन्न हो जाएगी। इस यात्रा का आयोजन अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति ने किया है जिसमें भारत के 160 से भी ज्यादा किसान संगठन शामिल हैं।

किसान मुक्ति यात्रा के नेताओं ने इस बात पर जोर दिया कि देश और सरकार किसानों की कर्जदार है, किसान उनके कर्जदार नहीं हैं। अखिल भारतीय संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) ने अपने बयान में कहा कि कर्ज से मुक्ति की मांग किसानों की पूरी तरह से उचित और वैध मांग है और यह सिर्फ कर्ज माफी तक ही सीमित नहीं। किसानों को सरकार की सीमाओं और उन कर्ज माफी योजनाओं की निरर्थकता की समझ है जिन्हें अभी लागू किया जा रहा है। हम कर्ज से राहत के लिए एक नीति आधारित और वैधानिक संस्थागत तंत्र की मांग कर रहे हैं।

17 सितम्बर की सुबह तेलंगाना से आंध्रप्रदेश पहुंची इस यात्रा का कई जगह स्वागत किया गया। फिर यह विजयवाड़ा पहुंची जहां बड़ी तादाद में किसान यात्रा का इंतजार कर रहे थे। देश में किसानों के हकों की हिफाजत करने में अहम योगदान देने वाले वरिष्ठ किसान नेता कोल्ली नागेश्वर राव का राष्ट्रीय और स्थानीय किसान नेताओं ने अभिनन्दन किया। उन्हें एक प्रशंसा-पत्र भेंट किया गया जिसमें पिछले कई दशकों में उनके अनेक संघर्षों और उपलब्धियों का जिक्र था। इस मौके पर वद्दे सोभानाद्रीस्वरा राव की दो किताबों का विमोचन भी किया गया।

इस कार्यक्रम में हजारों किसान शामिल हुए। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए रैथु रक्षणा वेदिका के वद्दे सोभानाद्रीस्वरा राव ने देश के किसानों के सामने खड़े तीन बड़े मुद्दों की बात की – जमीन जैसे संसाधनों पर किसानों का हक; उत्पाद का लाभकारी मूल्य, जिसमें यह तथ्य भी शामिल था कि सरकारें मुक्त व्यापार समझौते करती जा रही हैं, इसलिए किसानों को उचित मूल्य नहीं मिल पाता; और कर्ज से एक व्यापक और सार्थक राहत।

एआईकेएससीसी के राष्ट्रीय कार्यकारी दल के सदस्य योगेन्द्र यादव ने कहा, “शुरुआती आकलन बताते हैं कि पिछले दस सालों से किसान आयोग की लाभकारी मूल्यों पर की गयी सिफारिश (खेती की लागत + 50%) के लागू न होने से किसानों को 15 लाख करोड़ रुपये नहीं मिले, जिन पर कानूनन उनका हक है।” उन्होंने हाल में ही सीकर में किसानों को उनके कठिन संघर्ष के लिए बधाई दी जिसमें उन्होंने समाज के अन्य वर्गों का समर्थन भी जुटाया और इस विरोध प्रदर्शन के परिणामस्वरूप सरकार न सिर्फ कर्ज माफी के लिए मान गई, बल्कि उनकी अन्य दूसरी मांगों को मानने पर भी राजी हो गयी। योगेन्द्र यादव ने महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के प्रेरक और स्वतःस्फूर्त संघर्षों का भी जिक्र किया और सभी राज्यों के किसानों को आह्वान किया कि वे न्याय के लिए ऐसे ही संघर्षों का आगाज करें और एकजुट होकर न्याय के लिए लड़ें।

एआईकेएससीसी संयोजक के वी एम सिंह और उपाध्यक्ष मल्ला रेड्डी ने कहा कि बीजेपी को यह एहसास होना चाहिए कि अगर किसानों से किये गए वायदे को वह पूरा नहीं करती है और किसानों को धोखा देती है तो अगले चुनावों में किसान उन्हें वोट नहीं देंगे। वी एम सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि किसान मुक्ति यात्रा का मकसद सिर्फ बैंक के कर्ज की माफी ही नहीं है। आंध्र प्रदेश जैसे राज्य में तो बंटाई पर खेती करने वाले किसानों का एक बड़ा तबका है जिनकी अपनी जमीन नहीं है और वे औपचारिक तौर पर बैंक से कर्ज नहीं लेते, उन्हें इस सीमित उद्देश्य वाली कर्ज माफी योजना से कोई फायदा नहीं होगा।

संसद सदस्य और पूर्व में एनडीए का साथ रहे राजू शेट्टी ने कहा कि सरकार किसानों की आमदनी को दोगुना करने के अपने वायदों को जोर-शोर से पेश कर रही है, जबकि आधिकारिक आंकड़ों से साफ जाहिर है कि किसानों की आय नहीं, बल्कि उनके कर्जे दोगुने हो गए हैं। उन्होंने यह भी आगाह किया कि अभी तो वे एनडीए गठबंधन से बाहर निकले हैं क्योंकि मोदी सरकार यह कह रही है कि वह किसान आयोग का मूल्य निर्धारण वाला फॉर्मूला लागू नहीं कर सकती, लेकिन अगर सरकार किसान मुक्ति यात्रा की मांगों को नहीं मानती है तो वे बीजेपी और नरेन्द्र मोदी के खिलाफ सक्रिय तौर पर आन्दोलन छेड़ देंगे ताकि वे दोबारा सत्ता में न आ सकें।

सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज जस्टिस गोपाल गौड़ा ने जबरन भू-अधिग्रहण के खिलाफ नागरिकों और किसानों के संवैधानिक और कानूनी अधिकारों के बारे में विस्तार से बात की और कोर्ट के अनेक प्रगतिशील फैसलों का हवाला भी दिया। वे आंध्र प्रदेश की नयी राजधानी अमरावती के लिए भू-अधिग्रहण के सन्दर्भ में बोल रहे थे।

सेवानिवृत्त कैबिनेट सचिव ई ए एस सरमा ने मांग की कि देश के किसानों और कृषि से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करने के लिए कम से कम सात दिनों का संसद का एक अलग सत्र बुलाना चाहिए। उन्होंने किसानों से अपील की कि वे अपने लिए एक स्पष्ट और सशक्त घोषणा-पत्र तैयार करें और उसे लागू करवाने की पूरी कोशिश करनी चाहिए।

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia