तीन तलाक बिल: अभी राज्यसभा की परीक्षा पास बाकी है

तीन तलाक का बिल लोकसभा ने तो ध्वनिमत से पारित कर दिया। लेकिन राज्यसभा में इस पास कराना मोदी सरकार के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकता है, क्योंकि वहां एनडीए अल्पमत में है।

फोटो : सोशल मीडिया
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तसलीम खान

मोदी सरकार ने तीन तलाक को गैरकानूनी बनाने वाला मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक-2017 पर पहला पड़ाव तो लोकसभा में पार कर लिया, लेकिन अभी इसे राज्यसभा की परीक्षा से गुजरना है। राज्यसभा से पास होने के बाद इसे राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा और फिर यह विधेयक कानून बन जाएगा.

लेकिन राज्यसभा में मोदी सरकार को मशक्कत करना होगी। राज्यसभा में बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए का बहुमत नहीं है। यूं भी तीन तलाक के खिलाफ इस बिल में सजा के प्रावधान को लेकर कई विपक्षी दल विरोध कर रहे हैं, साथ ही इसमें संशोधन की मांग कर रहे हैं। ऐसे में इस बिल को राज्यसभा से पारित कराना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है।

हालांकि, मोदी के कई मंत्री और कई वरिष्ठ नेता इस बिल पर सहमति बनाने के लिए विपक्षी दलों से बातचीत में जुटे हुए हैं। सरकार की कोशिश इसी शीत सत्र में बिल को राज्यसभा से पारित कराने की है। हालांकि राज्यसभा में यह टेढ़ी खीर है, लेकिन सरकार को उम्मीद है कि राज्यसभा से भी ये बिल पास हो जाएगा।

लोकसभा से बिल पारित होने के बाद कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा था कि, “हमें पूरा विश्वास है कि कांग्रेस लोकसभा की तरह ही राज्यसभा में भी तीन तलाक बिल पर हमारा साथ देगी और हम बिल को संसद से पारित कराने में कामयाब रहेंगे।”

इस बिल का बीजू जनता दल-बीजेडी, एडीएमक, समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस समेत कई राजनीतिक दल विरोध कर रहे हैं। लेकिन यह भी रोचक रहा कि इन दलों के सांसद लोकसभा में तीन तलाक बिल में संशोधन प्रस्ताव पर वोटिंग के दौरान गैरहाजिर रहे। लेकिन राज्यसभा में बीजेपी को बिल पास कराने के लिए दूसरे दलों के साथ की जरूरत है।

245 सदस्यीय राज्यसभा में एनडीए के 88 सांसद हैं, इनमें बीजेपी के 57 और बाकी सहयोगी दलों के हैं। कांग्रेस के 57, समाजवादी पार्टी के 18, बीजेडी के 8 सांसद, एडीएमके के 13, तृणमूल कांग्रेस के 12 और एनसीपी के 5 सांसद हैं। ऐसे में अगर सरकार को अपने सभी सहयोगी दलों का साथ भी मिल जाता है, तो भी बिल को पारित कराने के लिए कम से कम 35 और सांसदों के समर्थन की जरूरत होगी।

संभावना है कि राज्यसभा में विपक्षी दल जोरशोर से बिल का विरोध करेंगे। इन दलों का कहना है कि बिल में संशोधन किया जाना चाहिए और तीन साल की सजा का प्रावधान बदला जाना चाहिए। राज्यसभा में बीजेपी का बहुमत भी नहीं है. ऐसे में बिल को संसदीय समिति के पास समीक्षा के लिए भेजा जा सकता है। अगर ऐसा हुआ, तो संसद के इस शीतकालीन सत्र में बिल का पारित होना मुश्किल हो जाएगा.

वैसे इस बिल का सबसे मुखर विरोध एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी कर रहे हैं और कांग्रेस ने भी बिल में संशोधन की मांग की है। ओवैसी ने तो लोकसभा में बिल पर छह संशोधन प्रस्ताव पेश किए, लेकिन उनमें से सिर्फ तीन संशोधन प्रस्ताव को ही सदन ने स्वीकार किया और वह भी खारिज हो गए।

इस बीच खबरे हैं कि तीन तलाक बिल के लोकसभा में पारित होने के बाद से मुस्लिम महिलाएं जश्न मना रही हैं। हालांकि अभी इस बिल को कानून बनने में वक्त हैष

दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को कानून बनाने के लिए छह महीने का वक्त दिया था। सुप्रीम कोर्ट, तीन तलाक यानी तलाक-ए-बिद्दत को पहले ही असंवैधानिक करार दे चुका है। 22 अगस्त को शीर्ष अदालत की पांच जजों की बेंच ने बहुमत से तीन तलाक को असंवैधानिक और गैर कानूनी बताया था और केंद्र सरकार से मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए कानून बनाने को कहा था। लोकसभा में तीन तलाक बिल पर चर्चा के दौरान भी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया.

तीन तलाक बिल में ये हैं प्रावधान:

  • एक साथ तीन बार तलाक (बोलकर, लिखकर या ईमेल, एसएमएस और व्हाट्सएप जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से) कहना गैरकानूनी होगा
  • ऐसा करने वाले पति को तीन साल की जेल हो सकती है। यह गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध माना जाएगा
  • यह कानून सिर्फ 'तलाक ए बिद्दत' यानी एक साथ तीन बार तलाक बोलने पर लागू होगा
  • तलाक की पीड़िता अपने और नाबालिग बच्चों के लिए गुजारा भत्ता मांगने के लिए मजिस्ट्रेट से अपील कर सकेगी
  • पीड़ित महिला मजिस्ट्रेट से नाबालिग बच्चों के संरक्षण यानी कस्टडी का भी अनुरोध कर सकती है। मजिस्ट्रेट इस मुद्दे पर अंतिम फैसला करेंगे
  • यह प्रस्तावित कानून जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू होगा है

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Published: 29 Dec 2017, 10:15 AM