आदर्श ग्राम योजनाः पीएम मोदी ने ग्रामीणों की किस्मत बदलने का सपना तो दिखाया, हकीकत में हुआ कुछ भी नहीं

सत्ता में आने के बाद जैसे ही पीएम मोदी ने आदर्श गांव योजना की घोषणा की तो कई सांसदों ने गांवों को गोद लेकर बड़े-बड़े वादे कर दिए। लेकिन सालों बीत जाने के बाद भी ऐसे कई गोद लिए गांवों में सामान्य योजनाएं तक नहीं पहुंच पाई हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब आदर्श गांव योजना की घोषणा की थी तो ऐसा लगा था कि इससे नेताओं में जिम्मेदारी का अहसास मजबूत होगा और कई गांवों का कायाकल्प हो जाएगा। तब लोगों को उम्मीद जगी कि इस योजना की सफलता से गांवों में विकास की बयार बहने लगेगी। यही सोच नितांत बुनियादी सुविधाओं के लिए भी संघर्ष करते गांववासियों की आंखों में सपने तैरने लगे, उनकी उम्मीदों को पंख लग गए। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि इन आदर्श गांवों को किसी भी कोण से आदर्श नहीं कहा जा सकता। सांसदों ने गोद लेकर बड़े-बड़े वादे तो कर दिए, लेकिन फिर इन्हें पूरा करने की जहमत नहीं उठाई। और तो और कई ऐसे गोद लिए गांव हैं जहां सामान्य योजनाएं भी नहीं पहुंचीं। अब स्थिति यह है कि सालों बीत जाने के बाद लोगों की आस ने दम तोड़ दिया है। उन्हें अंदाजा होने लगा है कि उनके हिस्से इस मामले में भी धोखा ही आया है। ऐसे ही गोद लिए गांवों की हालत से देश को रूबरू कराने के लिए नवजीवन 5 जनवरी से एक श्रंख्ला शुरू कर रहा है। पहली कड़ी में पेश है यूपी के वर्तमान सीएम और गोरखपुर के तत्कालीन सासंद योगी आदित्यनाथ और छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के बेटे और राजनांदगांव के सांसद अभिषेक सिंह के गोद लिए गांवों की आंखों देखी हकीकत।

गोरखपुरः योगी के गोद लिए गांव की सड़क साल भर में ही हो गई खस्ताहाल

गोरखपुर जिला मुख्यालय से महज आठ किमी दूर है गांव जंगल औराही। बतौर सांसद योगी आदित्यनाथ ने इस गांव को गोद लिया था। यह गांव कच्ची शराब, टूटी सड़कों और खुले में शौच जैसे अभिशाप से कुछ हद तक तो मुक्त हुआ लेकिन वह तस्वीर कहीं नहीं दिखती जिसका सपना इस गांव के लोगों को दिखाया गया था। हालत यह है कि लाखों की लागत से बामुश्किल साल भर पहले बनी सड़क टूट चुकी है। घरों के बाहर जल निगम की टोटियां तो लगी हैं, लेकिन पानी अमूमन पांच दिन में एक बार ही आता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली महत्वाकांक्षी योजना सांसद आदर्श गांव के तहत बतौर सांसद योगी आदित्यनाथ ने जंगल औराही को 2014 में गोद लिया था। जब तक सांसद थे, योगी का दौरा होता ही रहता था, लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद जैसे नाता ही टूट गया। गांव के प्रधान भगवान दास का कहना है कि योगी जी आते थे तो उन्हें अधिकारियों की लापरवाही दिख जाती थी। 14 टोलों में बंटे 25 हजार आबादी वाले गांव के लोगों का मुख्य पेशा खेती है। गांव को गोद लेते समय 865 घरों में शौचालय नहीं थे। अब 971 व्यक्तिगत शौचालय बन चुके हैं। लेकिन, हकीकत है कि 20 फीसदी से अधिक शौचालय शो-पीस बन गए हैं। साल भर पहले गांव की सड़क को नए सिरे से बनाया गया था, लेकिन इसकी गिट्टियां उखड़ चुकी हैं। शिवाला और छावनी टोले की सड़क तो अब भी कच्ची ही है।

योगी ने गांव में कन्या इंटर कॉलेज, खेल का मैदान और स्वास्थ्य केंद्र खोलने की घोषणा की थी। ग्राम प्रधान भगवान दास का कहना है कि इंटर कॉलेज के लिए 75 डिसमिल जमीन दी जा चुकी है, लेकिन और कोई काम नहीं किया गया। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का भी अता-पता नहीं। करीब 30 डिसमिल जमीन खेल के मैदान के लिए भी दी गई, लेकिन यह भी जमीन पर नहीं दिखता। विशुन टोला के लोग कम क्षमता के ट्रांसफार्मर के चलते लो-बोल्टेज की समस्या से जूझ रहे हैं। विधवा, विकलांग पेंशन को लेकर भी ग्रामीणों में शिकायत है। जरूरतमंद 78 लोगों के सापेक्ष 10 को ही पेंशन मिली। योगी सरकार के दावे के उलट गांव के प्राथमिक स्कूल के बच्चों को स्वेटर और जूता नहीं मिला है। पांचवीं की छात्रा तन्नू का कहना है कि आधे बच्चों को ही स्वेटर मिला है। जूता भी नहीं मिला। बीते 12 दिसंबर को पूरे दिन कक्षाओं में ताला लटका रहा।

जल निगम ने 2.11 करोड़ के खर्च से करीब 2 हजार घरों के बाहर टोटी लगा दी। ज्ञानती कहती हैं कि साल भर पहले टोटी लगी थी, लेकिन अब तक पानी नहीं आया। वहीं, गांव के कोईल, धर्मदेव चौधरी आदि का कहना है कि पांच-छह दिन में एक बार चंद घंटों के लिए पानी आता है। पूछो तो अधिकारी यह कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं कि पाइप लाइन टूट गई है। वहीं, गांव के राम नयन, दुलारी देवी जैसे 200 से अधिक लोग झोपड़ी या जर्जर मकान में रह रहे हैं। राम नयन बताते हैं कि चार साल पहले आवास के लिए सर्वे करने आए कर्मचारी को 500 रुपये दिया था। दुलारी देवी कहती हैं कि वह कई बार ग्राम प्रधान से गुहार लगा चुकी हैं, फिर भी कुछ नहीं हुआ। ग्राम प्रधान भगवान दास का कहना है कि 2011 के सर्वे में 13 लोग ही योग्य मिले और उन सभी को पीएम आवास की सुविधा मिल गई है। मुख्यमंत्री आवास योजना के तहत नए सिरे से सूची प्रशासन को सौंपी गई है।

छत्तीसगढ़ः अभिषेक सिंह के गोद लिए गांव का हाल, बजबजाती नालियां, सड़क पर शौच का पानी

गंदगी से बजबजाती नालियां, कच्ची सड़कें, सड़कों पर बहता शौच का पानी, पीने के पानी की जर्जर हो रही एकमात्र टंकी, पानी बिना बेकार पड़े घरेलू शौचालय, बंद पड़ी प्राथमिक पाठशाला, दिव्यागों के लिए बनाए गए रैंप वाले शौचालय में बनने के बाद से ही जड़ा ताला। यह हाल है गोटाटोला गांव का। राजनांदगांव जिला कैंप मुख्यालय से महज आठ किलोमीटर दूर है यह गांव। माओवादी प्रभावित गोटाटोला को 15 साल तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे डॉ. रमन सिंह के सांसद बेटे अभिषेक सिंह ने 2014 में गोद लिया था। अभिषेक सिंह राजनांदगांव क्षेत्र ही सांसद चुने गए हैं।

अभिषेक सिंह ने लगभग दो हजार मतदाताओं वाले गोटाटोला गांव को विकास के सैंकड़ों सपने दिखाए, लेकिन चार साल से अधिक समय बीतने के बाद भी केवल दो बार इस गांव में आने का समय निकाल सके।

गांव में बीजेपी के सरपंच सेवाराम पटेल भी बेहद निराश हैं। वह कहते हैं कि विकास की बड़ी आशा थी लेकिन हुआ कुछ नहीं। पूरे पांच साल में पंचायत को कुल 20 लाख रुपये की ही राशि स्वीकृत हुई उससे एक सीसी रोड बना पाए। इसके अलावा सारे सपने हवा हो गए। इसीलिए हालिया विधानसभा चुनाव में बीजेपी इस गांव में लगभग देढ़ सौ वोट से पीछे रह गई। पटेल इस बात से भी दुखी हैं कि बार-बार बोलने के बाद भी सांसद ने प्राथमिक पाठशाला नयापारा का बंद पड़ा स्कूल चालू नहीं करवाया।

स्कूल जाने वाली गीता साहू ने कहा कि दो बार साइकिल देने वाली लिस्ट में उसका नाम शामिल किया गया लेकिन आज तक साइकिल नहीं मिली। स्मार्ट कार्ड के तो बहुत से हितग्राही आज भी कार्ड की बाट जोह रहे हैं। राशन कार्ड की जांच के नाम पर कई गरीबों के कार्ड निरस्त कर दिए गए हैं और तमाम अपात्र सस्ते अनाज का लाभ उठा रहे हैं। गांव के जागरूक युवा मोहन का मानना है कि इन्ही कारणों से बीजेपी को पराजय का मुंह देखना पड़ा है और आने वाले चुनाव में भी बीजेपी को ऐसी ही शर्मनाक हार का सामना करना पड़ेगा।

गांव के खानपारा, नवापारा,कोतरीपारा,पालीपारा, में गंदगी के कारण बीमारियां फैल रही हैं। बड़ी संख्या में लोग दूषित पानी से होने वाली त्वचा संबंधी बीमारियों की चपेट में हैं लेकिन सरकारी स्वास्थ्य केंद्र में न तो डॉक्टर हैं और न दवाइयां। जिला मुख्यालय से मात्र आठ किलोमीटर दूरी पर स्थित इस सांसद गांव में घोषणाओं के मुताबिक तो काफी कुछ हो जाना चाहिए था, लेकिन अफसोस कि आज भी यह अविकसित भ्रूण जैसी हालत में है।

(गोरखपुर से पूर्णिमा श्रीवास्तव और राजनांदगांव से प्रमोद अग्रवाल की रिपोर्ट)

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