ग्राउंड रिपोर्ट: बुंदेलखंड में विकास और जन-कल्याण योजनाओं के लाभ से लगातार वंचित हो रहे हैं लोग

इस इलाके में पिछले कई वर्षों से फसलों की काफी क्षति होती रही है। पिछली रबी और खरीफ दोनों फसलों में काफी नुकसान हुआ था। इसके बावजूद चारों गांवों के लोगों ने एक स्वर में कहा कि उन्हें फसल बीमा योजना का कोई लाभ नहीं मिला है।

फोटोः भरत डोगरा
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भारत डोगरा

बुंदेलखंड इलाके के लोगों की पिछले लंबे समय से शिकायत रही है कि सरकार की घोषित विकास और जन-कल्याणकारी योजनाओं का क्रियान्वयन ठीक से नहीं होता है। इलाके के तालबेहट प्रखंड (जिला ललितपुर, उत्तर प्रदेश) के चार गांवों का हाल ही में दौरा करने पर पता चला कि वाकई में हाल के समय में इन योजनाओं के क्रियान्वयन में बहुत तेजी से गिरावट आयी है। जिन चार गांवों में लेखक ने सामूहिक बैठकों में गांववासियों से बातचीत की, उनके नाम हैं- भरतपुर, लालोन, चक लालोन और गुलेंदा (सहरिया बस्ती)।

पेंशन की चर्चा प्रायः तीन वर्गों के पेंशन के संदर्भ में की जाती है, वृद्धावस्था पेंशन, विधवा पेंशन और विकलांगता प्रभावित व्यक्ति पेंशन। यह तीनों तरह की पेंशन पहले भी सभी जरूरतमंदों तक नहीं पहुंचती थीं, पर हाल के समय में तो इसमें और भी तेजी से गिरावट आई है। बहुत असहाय स्थिति में रह रहे पुरुषों और महिलाओं ने हमें बताया कि उन्हें पहले पेंशन मिलती थी, अब कट गई है। लोगों ने बताया कि समाजवादी पेंशन रोक दी गई पर उसकी जगह कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गई।

मनरेगा कार्य के बारे में चारों गांवों के लोगों ने एक स्वर से कहा कि लगभग एक वर्ष से या तो मनरेगा का कार्य आरंभ ही नहीं हुआ है या हुआ है तो बहुत मामूली सा काम हुआ है। मनरेगा के तहत बहुत पहले जो काम हुआ था उसका भुगतान कुछ मजदूरों को आज तक नहीं मिला है। कुछ लोगों ने यह भी कहा कि भ्रष्टाचार के चलते मशीनों से काम करवा कर उसे मजदूरों का काम दिखा दिया जाता है।

इस इलाके में पिछले कई वर्षों से फसलों की काफी क्षति होती रही है। पिछली रबी और खरीफ दोनों फसलों में काफी नुकसान हुआ था। इसके बावजूद चारों गांवों के लोगों ने एक स्वर में कहा कि उन्हें फसल बीमा योजना का कोई लाभ नहीं मिला है। इनमें से अधिकतर किसानों ने तो यहां तक कहा कि उन्हें तो फसल बीमा योजना के बारे में पता तक नहीं है और न ही किसी ने इस योजना के बारे में विस्तार से बताया है। उन्होंने कहा कि फसल की जितनी क्षति होती है उसे वे खुद ही सह रहे हैं।

मातृत्व लाभ योजना के तहत 5000 रुपये की सहायता पहले बच्चे के लिए घोषित हुई है। इन चार गांवों में चर्चा के दौरान पता चला कि इस गांव में किसी भी महिला को मातृत्व लाभ योजना के तहत किसी तरह की सहायता नहीं मिली है। केवल भरतपुर गांव में एक व्यक्ति ने बताया कि उनके परिवार को यह सूचना दी गई है कि यह सहायता उन्हें मिलेगी। लोगों ने बताया कि काफी पहले 1400 रुपए की सहायता बच्चों के जन्म पर मिलती थी जो बाद में रोक दी गई थी।

आंगनवाड़ी कार्यक्रम में भी हाल के समय में गिरावट आई है। दो गांवों में लोगों ने बताया कि अब तो पौष्टिक आहार नहीं आ रहा है और हमें बताया गया है कि पीछे से व्यवस्था नहीं हो पा रही है। यह एक गहरी चिंता का विषय है कि महत्त्वपूर्ण विकास व जन-कल्याण की योजनाओं में पिछले कुछ महीनों से इस तरह की गिरावट आती जा रही है।

यह क्षेत्र विविध कारणों से वैसे भी संवेदनशील दौर से गुजर रहा है। प्रतिकूल मौसम की बहुत मार रही है। जलवायु बदलाव अजीब स्थितियां उत्पन्न कर रहा है। इस साल तो जनवरी की अपेक्षा काफी अधिक गर्मी पाई गई। कभी ओलों की मार पड़ रही है तो कभी भीषण गर्मी की। इस स्थिति में सरकार को चाहिए कि यह विभिन्न विकास और जल-कल्याण की योजनाओं में सुधार करे, उन्हें बेहतर बनाए। क्योंकि इन चारों गांवों में जो स्थिति वास्तव में देखने को मिली, वह सरकार के दावे के ठीक विपरीत है और इन चार गांवों में बेहतरी के स्थान पर गिरावट नजर आई।

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