‘जिन्होंने नहीं दिया गुजरात में बीजेपी को वोट, वो कसाई, शराब तस्कर और कानून के विरोधी’

गुजरात के मंत्री प्रदीप जडेजा के मुताबिक गुजरात के साढ़े छह करोड़ लोगों और करीब साढ़े तीन करोड़ वोटरों में से सिर्फ वो 40 फीसदी लोग ही अच्छे हैं, जिन्होंने हाल के गुजरात चुनाव में बीजेपी को वोट दिया।

फोटो: सोशल मीडिया 
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तसलीम खान

बचपन से सुनते आए हैं कि छोटे वही करते हैं, जो वे अपने बड़ों से सीखते हैं। आचार-व्यवहार, भाषा, संस्कार, सज्जनता-विनम्रता...ये सब अपने बड़ों से ही सीखा जाता है। और जब सिखाने वाला देश के सर्वोच्च पद पर बैठा हो तो, फिर संवैधानिक भवन में खड़े होकर जनादेश को गालियां देना, क्यों किसी को असहज लगता है। हम बात कर रहे हैं गुजरात के गृह राज्यमंत्री प्रदीप सिंह जडेजा की।

जडेजा ने 22 फरवरी को गुजरात विधानसभा में खुलेआम कहा कि गुजरात के जिन लोगों ने उन्हें वोट नहीं दिया वे कसाई, अवैध शराब का धंधा करने वाले और तीन तलाक के समर्थक हैं। उनके इस वक्तव्य का अर्थ यह है कि गुजरात के साढ़े छह करोड़ लोगों और करीब साढ़े तीन करोड़ वोटरों में से सिर्फ वो 40 फीसदी लोग ही अच्छे हैं, जिन्होंने हाल के गुजरात चुनाव में बीजेपी को वोट दिया।

गुजरात विधानसभा के बजट सत्र में राज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के जवाब में बोलते हुए प्रदीप सिंह जडेजा ने कहा कि, “मैं बताता हूं कि किन लोगों ने हमें वोट नहीं दिया। ये वो कसाई थे, जो गौ-हत्या विरोधी कठोर कानून के कारण हमसे नाराज थे। ये अवैध शराब का धंधा करने वाले वो लोग थे जो गुजरात में कठोर मद्य निषेदय के कारण नाराज थे।” जडेजा यहीं नहीं रुके। उन्होंने कहा कि, “हमें वोट न देने वाले वो लोग थे जो मुस्लिम महिलाओँ के लिए लाए गए तीन तलाक कानून से नाराज थे।”

क्या इसे संसदीय भाषा कहा जाएगा? क्या यह जनादेश का अपमान नहीं हैं?

अभी पिछले सप्ताह गुजरात से ही सटे मध्यप्रदेश में भी बीजेपी नेताओं ने इसी तरह की बातें की। कोलारस उपचुनाव के प्रचार के दौरान बीजेपी सरकार के मंत्री खुलेआम वोटरों को धमका रहे हैं। मध्य प्रदेश की महिला और बाल विकास मंत्री माया सिंह ने साफ कहा, “जिन्होंने फूल को वोट दिया है उनका सबकुछ ठीक है। बीजेपी को वोट दीजिए सबको सबकुछ मिलेगा। अपना वोट खराब मत करना, जो अगर इस बार गलती करेंगे वो कुछ नहीं पाएंगे।”

बात सिर्फ एक मंत्री की नहीं थी। शिवराज सरकार की ही एक और मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया ने भी 17 फरवरी को कोलारस के पडोरा गांव में अपनी सभा के दौरान लोगों के दिलो-दिमाग में डर बैठाने की कोशिश की थी। उन्होंने धमकी दी थी, “चूल्हे की योजना, क्यों नहीं आई आपके पास? भारतीय जनता पार्टी, कमल की योजना है। आप लोग पंजे में वोट दोगे, तो आपके पास ये योजना नहीं आएगी। आप कमल को दोगे तो आपके पास ये योजना आएगी। सीधी बात है।”

इन बयानों से बीजेपी के संस्कार सामने आते हैं। जहां जनादेश का अपमान होता है, वोटरों को धमकाया जाता है, अहंकार का नग्न प्रदर्शन किया जाता है। हो भी क्यों न। आखिर प्रधानसेवक ने ही तो रास्ता दिखाया है।

गुजरात चुनाव की घोषणा से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात में कई योजनाओं की शुरुआत की थी। वड़ोदरा में कई परियोजनाओं की शुरुआत करते हुए मोदी ने एक तरह का सिंहनाद किया था। उन्होंने कहा था कि, “ जो राज्य ‘विकास’ विरोधी राज्य सरकारों को केंद्र की तरफ से एक पैसा नहीं मिलेगा।” यह प्रधानमंत्री के मुंह से निकला बयान नहीं, बल्कि सामंतवादी विचारधारा के अहंकार का उदघोष था। प्राचीन भारत की किसी रियासत या रजवाड़े के किसी राजे-महाराजे का घमंड था कि ‘मैं खुश तो अशर्फियों से लाद दूंगा, वर्ना फूटी कौड़ी नहीं दूंगा।’

प्रधानमंत्री का यह बयान सिर्फ एक घोषणा नहीं थी, बल्कि पूरे देश को धमकी थी कि अगर उन्हें वोट नहीं दिया तो कौड़ी-कौड़ी को मोहताज कर देंगे। प्रधानमंत्री की यह घोषणा उस संविधान का भी उल्लंघन करती थी जो केंद्र और राज्यों को बीच धन और संसाधनों को बंटवारे को सुनिश्चित करता है।

वडोदरा में प्रधानमंत्री के इसी भाषण की अनुगूंज अब गुजरात विधानसभा में सुनाई दे रही है, मध्य प्रदेश के उपचुनाव में नजर आ रही है।

यूं भी बीते कोई 10-12 वर्षों से गुजरात के गृह राज्यमंत्री के पद पर बैठे व्यक्ति की भाव-भंगिमा अलग ही रहती आई है। उसमें किसी के वरदहस्त का आत्मविश्वास होता है, सत्ताधिकारों के मनमाने इस्तेमाल का नशा होता है, विपक्षी दल ही नहीं, भीतरी विरोधियों को चेतावनी देने का भाव रहता है, प्रश्न के बदले प्रश्न पूछने का अहंकार होता है। यह संयोग है कि गुजरात में नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्रित्व काल में अमित शाह गृह राज्यमंत्री थे।

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