भगवा प्रेम के बजाय स्वास्थ्य सेवाओं पर देते योगी ध्यान, तो बच जाते रायबरेली हादसे के कुछ घायल

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार का पूरा ध्यान प्रदेश को भगवा रंगने में है। सचिवालय से लेकर, बसों तक को रंगा जा रहा है। अगर इतना ही ध्यान स्वास्थ्य सेवाओं पर होता तो शायद रायबरेली हादसे के कुछ घायल बच जाते

भगवा प्रेम के बजाय  स्वास्थ्य सेवाओं पर  देते योगी ध्यान, तो  बच जाते रायबरेली हादसे के कुछ घायल
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IANS

उत्तर प्रदेश रायबरेली में ऊंचाहार एनटीपीसी प्लांट में बॉयलर फटने की घटना ने उत्तर प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं की भी पोल खोलकर रख दी है। हादसे में गंभीर रूप से झुलसे मरीजों को आनन-फानन में लखनऊ इस उम्मीद से लाया गया था कि मरीजों का बेहतर इलाज हो सकेगा। लेकिन, उत्तर प्रदेश स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली का आलम यह है कि यहां एक से बढ़कर एक अस्पताल तो हैं, लेकिन इनमें अभी तक एक बर्न यूनिट भी नहीं खुल पाई है।

संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई), किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज (केजीएमयू), राम मनोहर लोहिया अस्पताल जैसे नामी अस्पताल यहां मौजूद हैं, लेकिन इनमें अभी तक बर्न यूनिट नहीं है। एनटीपीसी में हुए हादसे के बाद मरीजों को यहां बेहतर इलाज के लिए लाया तो गया, लेकिन वहां भी जैसे-तैसे ही इनका इलाज चल रहा है।

भगवा प्रेम के बजाय  स्वास्थ्य सेवाओं पर  देते योगी ध्यान, तो  बच जाते रायबरेली हादसे के कुछ घायल

लखनऊ के इन अस्पतालों के अधिकारी दबी जुबान से कहते हैं कि काफी समय से बर्न यूनिट की जरूरत महसूस की जा रही है, लेकिन पिछले दो दशकों से यूपी में शासन करने वाली सरकारों के ढुलमुल रवैये की वजह से इन अस्पतालों में बर्न यूनिट नहीं खुल पाई।

केजीएमयू के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "पिछले 10 वर्षो से केजीएमयू में बर्न यूनिट बनाने का प्रस्ताव अटका हुआ है। अभी तक इसे शासन की मंजूरी नहीं मिल पाई है। इसकी वजह से ही आग में झुलसे मरीजों का उचित इलाज नहीं हो पाता है। बेहतर इलाज के अभाव में वे निजी अस्पतालों का रुख कर लेते हैं।"

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अधिकारी ने बताया कि मेडिकल कॉलेज होने के बावजूद यहां एक भी बर्न यूनिट नहीं है। लिहाजा कई बार मरीज लौट जाते हैं। एक प्रस्ताव बनाकर शासन के पास भेजा गया है, लेकिन अभी यह ठंडे बस्ते में है।

राजधानी में स्थित श्यामा प्रसाद मुखर्जी सिविल अस्पताल में ही एक बर्न यूनिट है। सिविल अस्पताल की बर्न यूनिट 40 बिस्तरों की है। यहां मरीजों के इलाज के लिए दो चिकित्सक और 10 पैरामेडिकल स्टॉफ हैं। इस यूनिट को छोड़ दें, तो लखनऊ में एक भी अस्पताल नहीं है, जहां आग में झुलसे मरीजों का इलाज हो सके।

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अधिकारियों के मुताबिक, पूरी तरफ से झुलसे मरीजों को इंफेक्शन का ज्यादा खतरा रहता है, लिहाजा बर्न यूनिट में ही उनका बेहतर तरीके से इलाज हो सकता है।

एनटीपीसी में हुए हादसे ने उप्र की स्वास्थ्य सेवाओं को सही मायने में आईना दिखाया है। उप्र की राजधानी लखनऊ में जब बड़े अस्पतालों की यह हालत है तो बाकी का अंदाजा लगाया जा सकता है।

केजीएमयू की तरह ही एसजीपीजीआई में भी इलाज के लिए दूर-दूर से मरीज आते हैं। लेकिन आज तक इस अस्पताल में बर्न यूनिट स्थापित नहीं हो सकी है। एसजीपीजीआई प्रशासन का कहना है कि यहां बर्न यूनिट का होना बहुत जरूरी है। लेकिन यह फैसला शासन स्तर पर होना है, लिहाजा इस बारे में कुछ भी बोलना सही नहीं है।

केजीएमयू और एसजीपीजीआई के बाद राममनोहर लोहिया अस्पताल में भी काफी संख्या में मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं। लोहिया अस्पताल के निदेशक डॉ. डी एस नेगी के मुताबिक, बर्न यूनिट को लेकर पहले ही कई अस्पतालों का प्रस्ताव लंबित पड़ा हुआ है। लिहाजा अभी बर्न यूनिट से संबंधित कोई प्रस्ताव शासन के पास नहीं भेजा गया है।

अस्पतालों में बर्न यूनिट के अभाव को लेकर उत्तर प्रगेश के स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ पद्माकर सिंह ने कहा, "राजधानी के कुछ अस्पतालों में बर्न यूनिट नहीं हैं। यहां बर्न वार्ड से काम चल रहा है। लोहिया अस्पताल सहित कुछ प्रमुख अस्पतालों में बर्न यूनिट शुरू करने की दिशा में काम चल रहा है।"

ऊंचाहार में लगे एनटीपीसी प्लांट में बुधवार को बॉयलर फटने से कम से कम 35 लोगों की मौत हो गई थी, और करीब 100 लोग बुरी तरह से झुलस गए थे। इनमें से अधिकांश लोगों को इलाज के लिए लखनऊ के मेडिकल कॉलेज, एसजीपीजीआई और सिविल अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

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