जन्नत का किया दोज़ख़ सा हालः सुप्रीम कोर्ट भी बेअसर, इटंरनेट बंद में बिना ईलाज-दवा मर रहे लोग

कश्मीर में 5 अगस्त के बाद से कितने मरीजों की मौत सही इलाज और दवा के अभाव में हो गई, इसका कोई लेखा-जोखा नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने बेशक नेटबंदी को अस्वीकार्य माना हो, लेकिन देश की शीर्ष अदालत से फैसला आने के बाद भी कश्मीर की जमीनी हालत में कोई बदलाव नहीं है।

फोटोः सोशल मीडिया
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अमरीक

सुप्रीम कोर्ट के सीधे हस्तक्षेप के बावजूद कश्मीर में इंटरनेट सेवाएं बंद हैं। नेटबंदी के 5 महीने से ज्यादा समय बीतने के बाद जमीनी हालात में कोई फर्क नहीं। और तो और, सुप्रीम कोर्ट ने नेटबंदी की समीक्षा करने को कहा, उसकी कहीं खानापूर्ति होती भी नहीं दिख रही। सब वैसा ही है। हां एक फर्क है। एक समय था जब कश्मीर के लोग बारूदी गोलियों से मर रहे थे, आज वे वाजिब इलाज और दवा के अभाव में मर रहे हैं। 5 अगस्त के बाद ऐसे कितनों की जान गई, इसका कोई आंकड़ा नहीं। सरकार जो भी कहे, तमाम देशों के नुमाइंदों को घुमाकर हालात को सामान्य दिखाने की लाख कोशिश करे, कश्मीर के लोग जो हकीकत बयां कर रहे हैं, उससे साफ है कि वहां जिंदगी पूरी तरह पटरी से उतर चुकी है। सरकारी अस्पतालों में जरूर इंटरनेट सेवा चल रही है, लेकिन वह भी रुक-रुककर, और उस पर भी सुरक्षा एजेंसियों की कड़ी निगरानी।

डॉक्टर उमर शाद सलीम यूरोलॉजिस्ट हैं और मुंबई में अच्छी-खासी नौकरी छोड़ सेवा भाव के साथ श्रीनगर आए थे। उनके माता-पिता भी श्रीनगर के ख्यात डॉक्टर हैं। इस परिवार को लगता है कि कश्मीर इन दिनों दमन और गृह युद्ध जैसे दौर से गुजर रहा है। डॉक्टर उमर साइकिल से श्रीनगर से सटे गांवों में जाकर लोगों का प्राथमिक उपचार करते हैं। 'नवजीवन' से बातचीत में कहते हैं, 'इंटरनेट के अभाव से कश्मीर में तमाम स्वास्थ्य सुविधाएं ठप हो गई हैं। बहुप्रचारित प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना मृत प्राय है। इस योजना के कार्ड स्वाइप नहीं हो पा रहे और मरीज मारे-मारे फिर रहे हैं।'

एक अन्य एमबीबीएस डॉक्टर हसन गिलानी कहते हैं, 'पहले बारूदी गोलियों और दहशत से मरने वाले कश्मीरी आज जरूरी इलाज और दवा के अभाव में दयनीय मौत मर रहे हैं। सरकारी अस्पतालों में इंटरनेट सुविधा दी गई है, लेकिन एक डॉक्टर को परामर्श से लेकर मरीज की रिपोर्ट देखने और इलाज संबंधी तमाम औपचारिकताएं इंटरनेट के जरिए करनी होती हैं जबकि उनके घरों में नेट सुविधा नहीं है। गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोग वाट्सएप से डॉक्टर से सलाह नहीं ले सकते। 5 अगस्त के बाद जरूरी इलाज के अभाव में जो मरीज मरे हैं, उनके सही आंकड़े सामने आएं तो यहां की खौफनाक तस्वीर की असलीयत सामने आ सकेगी।'

गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज, श्रीनगर में उच्च पद पर रहे और इंडियन डॉक्टर्स एंड पीस डेवलपमेंट व ईएमए से जुड़े एक वरिष्ठ डॉक्टर ने श्रीनगर से फोन पर बताया कि घाटी में इंटरनेट बहाल करने का दावा छलावा है। दुनिया के सबसे बड़े इस लॉक डाउन ने आवाम की जिंदगी को नर्क बना दिया है। वह कहते हैं, 'आज के युग में डॉक्टर सिर्फ किताबी ज्ञान या पुराने अनुभव के आधार पर ही मरीज का इलाज नहीं करते। उन्हें देश-विदेश से नई सूचनाएं भी चाहिए होती हैं, जो सिर्फ नेट से संभव है और कश्मीर में यह बाधित है। लंदन से प्रकाशित 200 साल पुराने अतिप्रतिष्ठित मेडिकल जनरल 'लेमट' ने अपनी हालिया रिपोर्ट में लिखा है कि लॉक डाउन के चलते दुनिया में ऐसे हालात पहले कहीं दरपेश नहीं हुए, जैसे आज कश्मीर में हैं।


कुछ अस्पतालों में ब्रॉडबैंड शुरू कर दिए गए हैं लेकिन डॉक्टरों को अध्ययन पद्धति से लेकर जटिल बीमारियों की रिपोर्ट्स पर घर पर भी अध्ययन करना होता है तथा बाहर के डॉक्टरों से संपर्क करना होता है। नेटबंदी ने इस सिलसिले को खत्म कर दिया है। सरकारी दहशत ऐसी है कि कई डॉक्टर इस वजह से ब्रॉडबैंड नहीं लेना चाहते कि उनकी एक-एक गतिविधि पर नजर रखी जाएगी। इंटरनेट स्थगित होने से अस्त-व्यस्त हुईं मेडिकल सेवाओं के लिहाज से कश्मीर में हालात 1947 से भी बदतर हैं।' सरकारी मेडिकल कॉलेज, श्रीनगर में सेवारत एक डॉक्टर के अनुसार अगर संचार सेवाएं चलती हैं तो लोगों को सुविधाएं तो मिलेंगी ही, वे व्यस्त भी हो जाएंगे और उनकी मानसिक दुश्वारियां भी कम होंगीं। इंटरनेट पर पाबंदियां और उसके जरिए सूचनाओं का आदान-प्रदान न होना उन्हें मानसिक रोगी बना रहा है।

श्रीनगर में रह रहे सीपीआई, कश्मीर स्टेट काउंसिल के सदस्य मोहम्मद युसूफ भट्ट कहते हैं, 'कुछ सरकारी अस्पतालों और होटलों में इंटरनेट चल रहा है, लेकिन वह भी सुचारू नहीं। यही हाल बैंकों और शिक्षण संस्थानों का है। जहां-जहां इंटरनेट चल रहा है, वहां एजेंसियां बाकायदा निगरानी कर रही हैं। दिखावे के तौर पर जरूर 'कुछ-कुछ' किया जा रहा है लेकिन असल हालात अगस्त सरीखे ही हैं। लोग बैंक जाकर या एटीएम से पैसे तो निकाल सकते हैं लेकिन अपने मोबाइल से ट्रांसफर नहीं कर सकते। कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही।'

सोपोर के एक अध्यापक के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी आम कश्मीरी इंटरनेट सेवाओं से पूरी तरह वंचित हैं। इस आदेश के तीन दिन बाद कुछ सरकारी परीक्षाओं के परिणाम आए तो परीक्षार्थी उन्हें नेट पर नहीं देख पाए। सरकारी जगहों पर लगाए गए सूचनापट्टों पर परिणाम देखने लोगों की भीड़ उमर पड़ी। इसके फोटो मीडिया में भी आए। क्या यह मंजर नहीं दिखाता कि कश्मीर में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी इंटरनेट सेवाएं बंद हैं?

कश्मीर के कुछ और लोगों ने बताया कि सरकार जो भी 'समीक्षा रिपोर्ट' सुप्रीम कोर्ट में फाइल करे लेकिन फिलवक्त अगस्त से जारी लॉक डाउन बदस्तूर जारी है। श्रीनगर के एक पत्रकार कहते हैं, 'सरकार के भरोसेमंद बड़े अधिकारियों और सुरक्षा एजेंसियों के लोगों को पहले दिन से ही इंटरनेट सेवाएं हासिल हैं। उसके आधार पर शायद आंकड़ें पेश कर दिए जाएं कि इतने ब्रॉडबैंड और इंटरनेट कनेक्शन कश्मीर में काम कर रहे हैं। समीक्षा रिपोर्ट या तो लीपापोती होगी या फिर नईं बहानेबाजियों के साथ और समय मांगा जाएगा। जिन 48 सरकारी अस्पतालों में ब्रॉडबैंड शुरू करने के दावे किए गए हैं उनकीआड़ भी ली जाएगी।'

मोहम्मद युसूफ भट्ट कहते हैं, '5 महीने बाद भी कश्मीर खामोश तो है पर सामान्य नहीं। रोजमर्रा की जिंदगी चलाने के लिए छोटे-मोटे कारोबार अथवा दुकानदारी वाले धंधे तो चल रहे हैं लेकिन कश्मीर की आंतरिक अर्थव्यवस्था की रीढ़ पूरी तरह टूट चुकी है। आज से भी शुरू किया जाए तो इसे ठीक होने में दशकों लग जाएंगे। सरकार न तो खुद कश्मीरियों की आवाज सुनना चाहती है और न यह चाहती है कि कोई और उनकी बात सुने। नहीं तो अभी भी इंटरनेट इस तरह बंद करने और इसे लेकर झूठ पर झूठ की क्या वजह है?'


उधर, जम्मू में रहते सीपीआई के राज्य सचिव नरेश मुंशी ने बताया कि जम्मू में भी इंटरनेट को लेकर काफी भ्रम है। ज्यादातर सरकारी दफ्तरों और अफसरों के ब्रॉडबैंड तथा इंटरनेट तेज गति से चलते हैं जबकि आम नागरिकों के धीमी रफ्तार से। आम नागरिकों को 2जी की ही सुविधा हासिल है और उसमें भी अक्सर व्यवधान आता है। कुछ डाउनलोड नहीं हो पाता। नरेश मुंशी जम्मू के ताजा हालात के बारे में कहते हैं, '5 अगस्त को जम्मू वासियों में जो लड्डू बांटे गए थे, वे अब यहां के बाशिंदों को कड़वे लगने लगे हैं।

जम्मू का अधिकांश कारोबार कश्मीर घाटी पर निर्भर था। वहां से जम्मू के व्यापारियों को पैसा मिलना बंद हो गया है और इस खित्ते का बहुत बड़ा तबका अब मानता है कि अनुच्छेद 370 निरस्त करना उनके लिए बहुत ज्यादा नुकसानदेह है। वैसे भी जम्मू को दबाव में लिया गया था। सरकार यह जानकारी भी छुपा रही है कि 5 अगस्त के बाद जम्मू की कठुआ, पुंछ और राजौरी सीमा पर भारत-पाक के बीच लगातार फायरिंग हो रही है, जिसमें आम नागरिक, महिलाएं और बच्चे तक मारे जा रहे हैं। इसे सरकार जाहिर नहीं होने दे रही। समूची कश्मीर घाटी के भीतर तो लावा है ही, जम्मू भी धीरे-धीरे गहरे असंतोष की जद में आ रहा है। हम रोज इसे फैलते देख और महसूस कर रहे हैं। जम्मू इलाके में लोग महसूस करने लगे हैं कि धारा 370 का इस तरह रद्द होना उनके लिए भी खासा नागवार है।

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Published: 18 Jan 2020, 9:07 PM