प्रत्येक साधु, गुरु को सार्वजनिक भूमि पर समाधि बनाने की इजाजत दी गई तो विनाशकारी परिणाम होंगे: अदालत

उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी महंत नागा बाबा शंकर गिरि द्वारा उनके उत्तराधिकारी के माध्यम से दायर याचिका खारिज करते हुए की।

फोटो: IANS
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पीटीआई (भाषा)

दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि यदि प्रत्येक साधु, बाबा और गुरु को सार्वजनिक भूमि पर मंदिर या समाधि स्थल बनाने और निजी लाभ के लिए इसका इस्तेमाल करने की अनुमति दी गई तो इसके विनाशकारी परिणाम होंगे तथा व्यापक जनहित खतरे में पड़ जाएगा।

उच्च न्यायालय ने कहा कि भगवान शिव के भक्त नागा साधु को सांसारिक मामलों से पूरी तरह विरक्त जीवन जीने की दीक्षा दी जाती है और उनके नाम पर संपत्ति का अधिकार मांगना उनकी मान्यताओं एवं प्रथाओं के अनुरूप नहीं है।

न्यायमूर्ति धर्मेश शर्मा ने कहा, "हमारे देश में, हमें विभिन्न स्थानों पर हजारों साधु, बाबा, फकीर या गुरु मिल जाएंगे और यदि उनमें से प्रत्येक को सार्वजनिक भूमि पर मंदिर या समाधि स्थल बनाने की अनुमति दी गई और निहित स्वार्थी समूह इसका निजी लाभ के लिए उपयोग करना जारी रखें, तो इसके विनाशकारी परिणाम होंगे एवं व्यापक सार्वजनिक हित खतरे में पड़ जाएगा।’’


उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी महंत नागा बाबा शंकर गिरि द्वारा उनके उत्तराधिकारी के माध्यम से दायर याचिका खारिज करते हुए की, जिसमें जिला मजिस्ट्रेट को यहां त्रिवेणी घाट, निगमबोध घाट पर नागा बाबा भोला गिरि की समाधि की संपत्ति का सीमांकन करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।

याचिकाकर्ता ने दावा किया कि दिल्ली विशेष कानून अधिनियम के तहत निर्धारित समयसीमा (वर्ष 2006) से काफी पहले ही उसे संपत्ति पर कब्जा मिल गया था।

याचिकाकर्ता की शिकायत थी कि फरवरी 2023 में दिल्ली सरकार के बाढ़ नियंत्रण एवं सिंचाई विभाग के अधिकारियों ने उक्त संपत्ति के आसपास की विभिन्न झुग्गियों और अन्य भवनों को ध्वस्त कर दिया, जिसके कारण उसे समाधि ढहाये जाने का खतरा सता रहा है।

अदालत ने याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि इसमें कोई दम नहीं है और याचिकाकर्ता के पास संपत्ति का उपयोग एवं कब्जा जारी रखने का कोई अधिकार, हक या हित नहीं है।


उच्च न्यायालय ने कहा, "यह स्पष्ट है कि उसने जमीन पर अवैध कब्जा किया है और केवल इस तथ्य के आधार पर कि वह 30 साल या उससे अधिक समय से खेती कर रहा है, उसे संबंधित संपत्ति पर कब्जा जारी रखने के लिए कोई कानूनी अधिकार, मालिकाना अधिकार नहीं मिल जाता।’’

अदालत ने कहा, ‘‘ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता ने पूजनीय बाबा की समाधि के अलावा एक टिन शेड और अन्य सुविधाओं के साथ दो कमरे बनाए हैं। बाबा का 1996 में निधन हो गया था। हालांकि फिर, रिकॉर्ड पर ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे यह पता चले कि उक्त स्थान किसी ऐतिहासिक महत्व का है या पूजा के लिए या श्रद्धेय दिवंगत बाबा की प्रार्थना के लिए जनता को समर्पित है।’

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