संवैधानिक संस्थाओं पर कब्जे की मोदी सरकार की कोशिश, बिना आवेदन जेटली के पूर्व सचिव को बनाया सूचना आयुक्त

मोदी सरकार ने जिन चार सूचना आयुक्तों की नियुक्ति की है, उनमें पूर्व विधि सचिव सुरेश चंद्रा का नाम भी शामिल है। खास बात ये है कि चंद्रा ने इस पद के लिए आवेदन ही नहीं किया था। साथ ही चंद्रा चयन समिति के सदस्य वित्त मंत्री अरुण जेटली के निजी सचिव भी रहे हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

केंद्रीय सूचना आयोग में लंबे समय से खाली पड़े पदों को भरने के लिए 20 दिसंबर 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में चयन समिति की हुई बैठक में चार लोगों को सूचना आयुक्त के पद पर नियुक्त करने की सिफारिश की गई थी। इसके बाद पहली जनवरी, 2019 को सूचना आयुक्त के पद पर नियुक्त होने वालों में पूर्व आईएफएस अधिकारी यशवर्द्धन कुमार सिन्हा, पूर्व आईएएस अधिकारी नीरज कुमार गुप्ता, पूर्व आईआरएस अधिकारी वनजा एन. सरना और पूर्व विधि सचिव सुरेश चंद्रा शामिल हैं।

लेकिन अब चंद्रा की नियुक्ति को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। आरोप है कि केंद्र की मोदी सरकार ने आवेदन किए बगैर ही सूचना आयुक्त के पद पर पूर्व विधि सचिव सुरेश चंद्रा को नियुक्त किया है। मिली जानकारी के अनुसार कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) द्वारा वेबसाइट पर अपलोड की गई नियुक्ति की फाइलों से खुलासा हुआ है कि सुरेश चंद्रा ने इस पद के लिए आवेदन ही नहीं किया था और इसके बावजूद उन्हें इस पद पर नियुक्त किया गया है। नये नियुक्त चारों अधिकारी साल 2018 में ही रिटायर हुए हैं और इनमें शामिल सुरेश चंद्रा वित्त मंत्री अरुण जेटली के निजी सचिव रह चुके हैं। और खास बात ये है कि अरुण जेटली चयन समिति के सदस्य भी थे।

देश के आरटीआई कार्यकर्ताओं ने सुरेश चंद्रा की केंद्रीय सूचना आयुक्त के रूप में नियुक्ति को मोदी सरकार की मनमानी करार दिया है। आरटीआई कार्यकर्ताओं का कहना है कि खुद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा था कि सर्च कमेटी सूचना आयुक्त के लिए आवेदन करने वाले उम्मीदवारों में से ही योग्य लोगों को शॉर्टलिस्ट करेगी। ऐसे में अगर अपने मन से ही सरकार को नियुक्तियां करनी थी तो फिर आवेदन क्यों मंगाए गए और हलफनामा क्यों दिया गया।

आरटीआई एक्ट के तहत केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) सर्वोच्च अपीलीय संस्था है। डीओपीटी के मुताबिक सूचना आयुक्त के पद के लिए कुल 280 लोगों ने आवेदन किया था, लेकिन इस सूची में सुरेश चंद्रा का नाम शामिल ही नहीं है।

सूचना आयुक्त के पद पर नियुक्ति के लिए 27 जुलाई 2018 को विज्ञापन जारी किये गए थे। इसके बाद आवेदन करने वालों में से योग्य उम्मीदवारों की नियुक्ति के लिए पीएम मोदी ने एक सर्च कमेटी बनाई थी। इस कमेटी में प्रधानमंत्री के साथ कैबिनेट सचिव पीके सिन्हा, मुख्य सचिव पीके मिश्रा, डीओपीटी सचिव सी. चंद्रमौली समेत अन्य कई अधिकारी और भी थे। कैबिनेट सचिव पीके सिन्हा को सर्च कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया था।

इसके बाद योग्य उम्मीदवारों को शॉर्टलिस्ट करने के लिए सर्च कमेटी की दो बैठकें 28 सितंबर 2018 और 24 नवंबर 2018 को हुई थी। 24 नवंबर को हुई अंतिम बैठक में सर्च कमेटी ने 14 लोगों के नाम को अंतिम रूप से शॉर्टलिस्ट किया, जिसमें से 13 पूर्व नौकरशाह थे और केवल एक रिटायर्ड न्यायाधीश थे। इतना ही नहीं, समिति ने जिन 14 लोगों के नाम की सिफारिश की थी उसमें भी सुरेश चंद्रा का नाम आवेदनकर्ताओं में शामिल नहीं है।

इस बीच द हिंदू की एक खबर के अनुसार सुरेश चंद्रा ने खुद भी इस बात की पुष्टि की है कि उन्होंने इस पद के लिए आवेदन नहीं किया था। जबकि 27 अगस्त, 2018 को डीओपीटी ने खुद सुप्रीम कोर्ट में दायर एक हलफनामे में कहा था कि जिन लोगों ने पद के लिए आवेदन किया है, सर्च कमेटी उन्हीं में लोगों को शॉर्टलिस्ट करेगी।

कहा जा रहा है कि सर्च कमेटी ने अपनी तरफ से चंद्रा के नाम की सिफारिश की हो सकती है। लेकिन आरटीआई पर काम कर रहे कार्यकर्ताओं का कहना है कि सर्च कमेटी के पास ऐसा कोई भी अधिकार नहीं है कि वो अपनी तरफ से नामों का सुझाव दे। आरटीआई पर काम करने वाले सतर्क नागरिक संगठन और सूचना के जन अधिकार का राष्ट्रीय अभियान (एनसीपीआरआई) की सदस्य अंजलि भारद्वाज का कहना है कि अगर सरकार को अपनी तरफ से ही नियुक्ति करनी थी तो फिर आवेदन क्यों मंगाए जाते हैं। कानून में ऐसा कहीं भी नहीं लिखा है और ये किसी को नहीं पता कि अपनी तरफ से किसी नाम की सिफारिश करने की शक्ति इन्हें कहां से मिली है।

आरटीआई कार्यकर्ताओं का मानना है कि किसी ऐसे व्यक्ति को नियुक्त किया जाना, जिसने आवेदन ही न किया हो, कानूनी रूप से बिल्कुल सही नहीं है। अंजलि भारद्वाज का कहना है कि सर्च कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट में डीओपीटी द्वारा दायर हलफनामे के खिलाफ जाकर आवेदकों की सूची से बाहर के लोगों को शॉर्टलिस्ट किया है, जो कि मनमाना व्यवहार है। इस तरह की प्रक्रिया को रोकने के लिए हर स्तर पर पारदर्शिता की आवश्यकता है। भारद्वाज ने कहा कि पूरी प्रक्रिया समाप्त होने के बाद उसकी सूचना जारी करने का क्या अर्थ है?

बता दें कि अंजलि भारद्वाज की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 13 दिसंबर को डीओपीटी को शॉर्टलिस्ट उम्मीदवारों और सर्च कमेटी की बैठकों के मिनट्स को सार्वजनिक करने का निर्देश दिया था। लेकिन विभाग ने जानबूझकर 18 जनवरी को इस निर्देश का अनुपालन किया, जब पूरी प्रक्रिया समाप्त हो गई और नियुक्तियां हो चुकी थीं। अंजलि भारद्वाज केंद्रीय सूचना आयोग में नियुक्ति के लिए अपनाई गई प्रक्रिया और गोपनीयता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाली हैं।

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