बीएसएफ जवान की मौत के बाद इमरान का न्योता स्वीकार करना भारत के लिए कांटों भरी राह

1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान के हीरो मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) अशोक मेहता ने कहा कि पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा कांस्टेबल नरेंद्र सिंह की हत्या का जवाब आंख के बदले आंख होना चाहिए।

फोटोः सोशल मीडिया
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धैर्य माहेश्वरी

भारत ने एक तरफ पाकिस्तान के साथ बातचीत की प्रधानमंत्री इमरान खान की पेशकश मंजूर कर ली है, तो दूसरी तरफ बीएसएफ कांस्टेबल नरेंद्र सिंह की निर्मम हत्या ने केंद्र सरकार को मुसीबत में डाल दिया है। नरेंद्र सिंह की पाकिस्तान की बदनाम टुकड़ी बॉर्डर एक्शन टीम यानी बैट ने जम्मू के रामगढ़ सेक्टर में अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर हत्या कर दी थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक नरेंद्र सिंह की हत्या से पहले पाकिस्तानी फौजियों ने उसे करीब 9 घंटे तक यातानाएं दीं और हत्या के बाद उसके शव को क्षत-विक्षत कर दिया।

नरेंद्र सिंह का शव सीमा के पास बरामद हुआ। उसकी हत्या ने समूचे विपक्ष और देश के सैन्य समुदाय को हिलाकर रख दिया। सबने सरकार से इस हत्या का बदला लेने की अपील की। हरियाणा में नरेंद्र सिंह के परिवार से मिलने के बाद कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, “कहां गया वह 56 इंच का सीना और कहां गई लाल आंख? कहां गया एक के बदले 10 सिर लाने का वादा? सरकार सिर्फ भ्रष्ट लोगों की चिंता करती है, जवानों की नहीं। मोदी जी ने सिर्फ राजनीतिक फायदे के लिए सेना का इस्तेमाल किया है। देश जवाब मांग रहा है, क्या वे जवाब देंगे।” मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक नरेंद्र सिंह के बेटे ने भी कहा है, “हम सरकार से इस मामले में एक्शन चाहते हैं।”

1956 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में हिस्सा ले चुके मेजर जनरल अशोक मेहता (रिटायर्ड) का कहना है, “नरेंद्र सिंह की हत्या के लिए सरकार को आंख के बदले आंख वाली कार्रवाई करनी चाहिए।” लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि, “इस घटना का साया शांति प्रक्रिया पर नहीं पड़ना चाहिए।” उन्होंने कहा कि हो सकता है यह हत्या लोकल कमांडर ने की हो। सुरक्षा पर कई किताबें लिख चुके मेजर जनरल अशोक मेहता ने कहा, “कई बार लोकल कमांडर ऐसी घटनाओं में शामिल रहते हैं। शांति प्रक्रिया में ऐसी घटनाओं का प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए।” उन्होंने कहा कि इमरान खान ने सत्तासीन होने के बाद भारत की तरफ कई अच्छी पहल की हैं।

वहीं सेना के पूर्व कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) सैयद अता हसनैन का कहना है, “इमरान खान शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के इच्छुक लगते हैं। लेकिन उन्हें आने वाले महीनों में यह ध्यान रखना होगा कि पाकिस्तान की तरफ से कोई प्रॉक्सी वार की शुरुआत न हो।” उन्होंने कहा कि इमरान खान अगर वाकई भारत के साथ अमन चाहते हैं तो उनके पास आतंकी नेताओं पर अंतर्राषट्रीय पाबंदी लगाने का विकल्प है।

गौरतलब है कि इमरान खान ने 14 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर विदेश मंत्री स्तर की बातचीत शुरु करने की अपील की है। पत्र में कहा गया है कि इस महीने न्यूयॉर्क में होने वाली संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के दौरान विदेश मंत्री सुषमा स्वराज पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी से मुलाकात कर लें तो बेहतर होगा। पत्र के मुताबिक, “पाकिस्तान और भारत के रिश्ते बहुत ही चुनौतीपूर्ण रहे हैं। लेकिन हमें अपने लोगों, खासतौर से आने वाली पीढ़ी के लिए हमें जम्मू-कश्मीर सहित अपने सभी मुद्दो को शांतिपूर्वक सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए। आतंकवाद के मुद्दे पर भी बात के लिए पाकिस्तान दृढ़संकल्प है।” इमरान खान ने अपने पत्र में उम्मीद जताई कि विदेश मंत्रियों की बातचीत से वह जमीन तैयार होगी जिससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पाकिस्तान आकर सार्क सम्मेलन में हिस्सा ले सकें।

गुरुवार को इमरान खान के पत्र का मसौदा मीडिया में आने के कुछ घंटे बाद ही भारत के विदेश मंत्रालय ने बताया कि सुषमा स्वराज न्यूयॉर्क में पाकिस्तानी विदेश मंत्री से मुलाकात करेंगी। इस मुलाकात में कई मुद्दों पर चर्चा होगी। लेकिन विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने यह कहकर पीएम मोदी की किसी संभावित यात्रा या किसी द्विपक्षीय दौरे पर विराम लगा दिया कि, “पाकिस्तान में सार्क सम्मेलन के लिए माहौल सही नहीं है।”

गौरतलब है कि भारत-पाकिस्तान के बीच पिछली उच्च स्तरीय बातचीत 25 दिसंबर 2015 को तब हुई थी जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अचानक बिन बुलाए तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को जन्मदिन की बधाई देने पहुंच गए थे।

रक्षा विशेषज्ञ कर्नल (रिटायर्ड) जैबंस सिंह कहते हैं कि भारत को इमरान खान की पहल के कुछ हिस्सों को मानते हुए एक संकेत तो देना ही चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि इमरान खान के पाकिस्तान के कट्टरपंथी संगठनों के साथ गहरे रिश्ते भी हैं।

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