अयोध्या फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे कई बुद्धिजीवी, पुनर्विचार की मांग करते हुए कहा- कोर्ट के निर्णय से आहत

पुनर्विचार याचिका दायर करने वाले बुद्धिजीवियों ने सुप्रीम कोर्ट से अयोध्या विवाद पर अपने फैसले फिर से विचार करने का अनुरोध किया है। याचिका में दावा किया गया है कि बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद पर कोर्ट के फैसले में कई तथ्यात्मक और कानूनी त्रुटियां हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

अयोध्या के ऐतिहासिक भूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के 9 नवंबर के फैसले के खिलाफ देश के करीब 40 बुद्धिजीवियों ने शीर्ष कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों ने कोर्ट से अयोध्या मामले पर अपने फैसले पर पुर्निवचार करने का अनुरोध किया है। याचिका में दावा किया गया है कि बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद पर कोर्ट के फैसले में कई तथ्यात्मक और कानूनी खामियां हैं।

वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण द्वारा प्रख्यात इतिहासकार इरफान हबीब, जाने-माने अर्थशास्त्री और राजनीतिक विश्लेषक प्रभात पटनायक, मानवाधिकार कार्यकर्ता हर्ष मंदर, नंदिनी सुंदर और जॉन दयाल समेत करीब 40 बुद्धिजीवियों की ओर से दायर इस याचिका में कहा गया है कि वे कोर्ट के फैसले से बेहद आहत हैं। याचिकाकर्ताओं ने फैसले में कई तथ्यात्मक और कानूनी कमियों का जिक्र करते हुए कोर्ट से फैसले पर फिर से विचार करने का आग्रह किया है।

फिलहाल ये स्पष्ट नहीं है कि इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी कि नहीं, क्योंकि पिछले साल 14 मार्च को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने सुनवाई के दौरान कहा था कि इस मामले में केवल मूल मुकदमे के पक्षकारों को ही अपनी बात रखने की इजाजत होगी। साथ ही दीपक मिश्रा ने इस मामले में हस्तक्षेप की कोशिश कर रहे कुछ लोगों को इसकी इजाजत देने से इनकार कर दिया था।


इसी बीच अयोध्या विवाद के मूल पक्षकारों में शामिल अखिल भारत हिंदू महासभा ने भी फैसले में मस्जिद के लिए मुस्लिम पक्ष को पांच एकड़ जमीन देने के खिलाफ याचिका दायर कर फैसले पर ‘सीमित पुर्निवचार’ की मांग की है। महासभा ने कोर्ट से फैसले में विवादित ढांचे को मस्जिद बताने वाले निष्कर्षों को हटाने की भी मांग की है। महासभा ने कहा है कि कोर्ट के निष्कर्ष सही नहीं हैं और वे साक्ष्यों और रिकार्ड के विरूद्ध हैं, जिनमें विवादित ढांचे को मस्जिद बताया गया है। याचिका में कहा गया है कि विवादित ढांचे पर मुसलमानों का कोई अधिकार या मालिकाना हक नहीं है, इसलिए उन्हें 5 एकड़ जमीन आवंटित नहीं की जा सकती।

बता दें कि 9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अपने फैसले में पूरी 2.77 एकड़ विवादित भूमि राम मंदिर के लिए दे देते हुए सरकार को आदेश दिया था कि वह अयोध्या में ही कहीं पर एक मस्जिद के निर्माण के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ जमीन आवंटित करे।

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