क्या चुनावी फायदे के लिए मुजफ्फरनगर दंगों के आरोपियों से केस वापस लेना चाहती है योगी सरकार?

जिन 131 मुकदमों को वापस करने की कोशिश चल रही है उनमें आरोपी बनाए गए आधे से ज्यादा लोग कैराना लोकसभा सीट से ताल्लुक रखते हैं जहां अब उपचुनाव होने की घोषणा होने वाली है।

फोटो: सोशल मीडिया 
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आस मोहम्मद कैफ

मुजफ्फरनगर दंगों के आरोपियों से केस वापस लेने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। स्थानीय सांसद संजीव बालियान की अगुवाई में कुछ बीजेपी नेताओं ने डेढ़ महीना पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक चिट्ठी सौंपी थी जिसमें 2013 के भीषण दंगों में दर्ज किए 131 मुकदमों को झूठा बताया गया था और आरोपियों से केस वापस लेने की अपील की गई थी। अब सरकार ने इन मुकदमों पर रिपोर्ट मांगी है।

लेकिन ऐसा होने में डेढ़ महीने लग गए। इससे पता चलता है कि उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार इस पूरे मसले को लेकर तनाव में है।

इसे मुकदमा वापसी की प्रारंभिक कार्रवाई मानी जा रही है। इससे पहले इस साल की शुरूआत में मुकदमा वापसी को लेकर इस तरह की ही एक रिपोर्ट स्थानीय प्रशासन से मांगी गई थी और उस आवेदन पर सांसद संजीव बालियान और बुढ़ाना विधायक उमेश मलिक सहित दर्जनों बीजेपी नेताओं के नाम थे।

मुजफ्फरनगर दंगों के दौरान 503 मुकदमे दर्ज हुए थे, जिनमें 1455 लोग नामजद हैं। ज्यादातर मुकदमों में पीड़ितों ने अपने बयान बदल दिए हैं और यह मुकदमे सरकार की तरफ से ही किए गए थे।

इस पूरी प्रक्रिया के पीछे कई बातें हैं, जिनमें से एक यह भी है कि कैराना सांसद हुकुम सिंह के निधन होने के बाद यहां अब उपचुनाव होने की घोषणा होने वाली है। जिन 131 मुकदमों को वापस करने की कोशिश चल रही है उनमें आरोपी बनाए गए आधे से ज्यादा लोग इसी लोकसभा सीट से ताल्लुक रखते हैं। गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीट की हार के बाद कैराना सीट जीतना अब बीजेपी के लिए नाक का सवाल बन गया है।

इसलिए वक्त और जरूरत के हिसाब से मुकदमा वापसी का जिन्न बाहर निकाल दिया गया है। इसे समझने के लिए बीजेपी नेताओं के बयानों को देखना काफी है। खुद सांसद संजीव बालियान ने मीडिया से हुई बातचीत में कहा था कि जिन लोगों के मुकदमे वापस हो रहे हैं वे सब हिन्दू हैं और वे सब निर्दोष हैं। बुढ़ाना के विधायक उमेश मलिक ने भी कहा कि उनमें से कोई मुसलमान नहीं है।

इस पूरे मामले को लेकर समाजवादी पार्टी के नेता अब्दुल्ला राणा कहते है, “इन्हीं दो बातों से अंदाजा लगा लीजिये कि उनका अगला चुनावी एजेंडा क्या होगा। वे कैराना में घर-घर जाएंगे और बताएंगे कि गुनहगारों को बेदाग साबित करने का महान काम किया है। यह वही लोग हैं जो पहले की सरकार पर पक्षपाती होने का आरोप लगाते थे। आज यह कातिलों की हिमायत में खड़े हैं, अगर यही होना है तो कौन इंसाफ मांगने के लिए अदालत में जाएगा।”

इस बीच मुजफ्फरनगर का राजनीतिक पारा गर्म है। पिछले कुछ समय से यहां जाटों में बीजेपी सरकार को लेकर गहरी नाराजगी है। जानकार इस मुकदमा वापसी प्रक्रिया को जाटों की नाराजगी दूर करने की कोशिश मान रहे हैं। पिछले कुछ महीने से यहां जाटों ने बीजेपी सरकार के प्रति नाराजगी जताई है। यह क्षेत्र जाट समुदाय का गढ़ है।

2013 में यहां जाटों और मुसलमानों के बीच भारी दंगा हुआ था, मगर पिछले कुछ समय से जाटों और मुसलमानों में दूरियां मिटने लगी थी। सरकार ने जिन मुकदमों को वापस करने की पैरवी की है, उनमें हत्या, लूट और साम्प्रदयिक हिंसा के गंभीर अपराध हैं और अगर ये मुकदमे वापस होते हैं तो एक-दूसरे के करीब आ रहे जाटों और मुसलमानों के बीच फिर दूरी बढ़ सकती है।

दरअसल मुकदमे वापसी की इस सारी कोशिश के पीछे 22 नवंबर को समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव के आवास पर हुई पंचायत है। उस दिन जाटों और मुसलमानों के दोनों पक्षों ने बैठकर सुलह की अपील पर सहमति जताई। इसके अलावा एक शांति समिति का गठन हुआ और उसने शामली और मुजफ्फरनगर के दंगा पीड़ितों से बात कर जाटों और मुसलमानों में खाई को पाटने का काम किया।

माहौल ऐसा बन गया कि जब जनवरी महीने में सरकार ने बीजेपी नेताओं के मुकदमा वापसी का मूड बनाया तो शामली के बधेव गांव में जाटों के चौधरी इकट्ठा हुए और बीजेपी सरकार को खलनायक बता दिया। उन्होंने कहा कि इसका मतलब है कि सदियों से साथ रहते आ रहे जाटों और मुसलमानों को बीजेपी ने दूर करने की साजिश रची थी।

रालोद के प्रवक्ता अभिषेक गुर्जर कहते हैं, “जाटों और मुसलमानों को नजदीक लाने में बहुत बड़ी भूमिका रालोद सुप्रीमो अजित सिंह की है। उन्होंने 2 दिन मुजफ्फरनगर और 2 दिन शामली में रात गुजारी और जाटों और मुसलमानों के घर गए। इसके बाद जाटों और मुसलमानों में नजदीकी बढ़ रही थी। बीजेपी इससे डर गई तो उसने यह चाल चल दी।”

खास बात यह है कि 5 फरवरी को मुख्यमंत्री से मिलने वाले बीजेपी नेताओं की चिट्ठी को इतना समय क्यों लग गया। शामली के पूर्व कांग्रेस विधायक पंकज मलिक कहते हैं, “अब यह तो बीजेपी सरकार ही बता सकती है कि सूबे में उनकी एक साल से सरकार है, इसके बावजूद इन बेगुनाहों की सुध उन्हें चुनाव के समय ही क्यों आई । दरअसल दिल जब जुड़ते हैं तो बीजेपी वेंटिलेटर पर आ जाती है और दिल टूटने पर इन्हें ऑक्सीजन मिल जाती है।”

उन्होंने आगे कहा कि दिल तोड़ने के लिए बीजेपी बहुत कुछ करती है जैसे इस मुकदमा वापसी में बाधक बने डीजीसी क्रिमिनल दुष्यन्त त्यागी को हटवा दिया गया। दुष्यंत त्यागी को समाजवादी पार्टी की सरकार में डीजीसी क्रिमिनल बनाया गया था। दुष्यन्त त्यागी के पिता प्रमोद त्यागी ने बुढ़ाना के विधायक उमेश मलिक के विरुद्ध समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा था। प्रमोद त्यागी कहते हैं, “चूंकि मेरा बेटा निष्पक्ष होकर दंगा पीड़ितों की पैरवी कर रहा था तो इन्हें लगा इसके रहते हम दंगा आरोपियों को बचा नही पाएंगे। इसलिए उमेश मलिक की झूठी शिकायत पर मेरे बेटे को डीजीसी क्रिमिनल के पद से हटा दिया गया। नए डीजीसी यशपाल सिंह बीजेपी नेताओं के नजदीकी है।”

क्या चुनावी फायदे के लिए मुजफ्फरनगर दंगों के आरोपियों से केस वापस लेना चाहती है योगी सरकार?

दुष्यन्त त्यागी के खिलाफ स्थानीय विधायक उमेश मलिक ने आय से अधिक संपत्ति होने की शिकायत की और उसके बाद उन्हें हटा दिया गया। दुष्यन्त त्यागी अपने पिता की बात की पुष्टि करते हुए कहते है, “जिन मुकदमों को वापस लेने की कोशिश चल रही है, उनमें सब गंभीर प्रवृति के अपराधी हैं। इन मुकदमों की वापसी का सीधा मतलब है कि सरकार अपराधियों के पक्ष में खड़ी है और उन्हें बचाना चाहती है। यह भी संभव है कि बीजेपी को इसका चुनावी फायदा दिख रहा हो।” उन्होंने आगे कहा,“जो वे चाहते थे, वह मैं नहीं कर सकता था। उनके पास मुझे हटवाने के सिवा कोई रास्ता नही था।”

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