जम्मू-कश्मीर: घुसपैठ रोकने के लिए बिछाई गईं बारूदी सुरंगों से मारे जा रहे अपने ही सैनिक और नागरिक

ऑपरेशन पराक्रम के तहत पाकिस्तान से लगी सीमा पर बिछाई गई बीस लाख सुरंगें जवानों समेत आम लोगों के लिए आत्मघाती साबित हो रही हैं।

फोटो: सोशल मीडिया
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आशुतोष शर्मा

अभी पिछले शनिवार 1 दिसंबर को दो सैनिकों के पैर दुर्घटनावश बारूदी सुरंग पर पड़ गए। उसमें हुए विस्फोट में वे घटनास्थल पर ही शहीद हो गए। वे दोनों कुमाऊं रेजिमेंट के थे और वे अखनूर सेक्टर में रूटीन पेट्रोलिंग करने वाले सैन्य दस्ते के सदस्य थे।

लेकिन जम्मू में तैनात रक्षा प्रवक्ता लेफ्टिनेंट कर्नल देवेन्दर आनंद ने मीडिया में छपी ऐसी खबरों से इंकार किया। उन्होंने कहा कि अनाम सैनिक शहीद तो जरूर हुए हैं, लेकिन वे कालिथ क्षेत्र में प्रशिक्षण के दौरान एक दुर्घटना में तब मारे गए जब वहां फायरिंग फिर से शुरू किए जाने के खिलाफ लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे थे।

लेकिन मीडिया रिपोर्टों में सुरंग विस्फोटों में सिर्फ नवंबर माह में सुरक्षा बलों के आधे दर्जन जवानों के हताहत होने की बात कही गई। इनमें सेना के दो अफसरों और बीएसएफ के एक असिस्टेंट कमांडर के शहीद होने की जानकारी भी दी गई। पर बीएसएफ ने बारूदी सुरंग विस्फोट की घटनाओं की रिपोर्ट का आधिकारिक तौर पर खंडन किया और दावा किया कि सांबा जिले में ट्रेनिंग सेशन के दौरान दुर्घटनावश फट गए ग्रेनेड के कारण बीएएफ के तीन जवान घायल हो गए, जबकि असिस्टेंट कमांडेंट शहीद हो गए।

संसद भवन पर हुए आतंकी हमले के बाद 2001 में ऑपरेशन पराक्रम के तहत पाकिस्तान से लगी सीमा पर बीस लाख सुरंगें बनाई गई थीं। घुसपैठ रोकने की दृष्टि से उन्हें बनाए रखा गया है। लेकिन इसे विडंबना ही कहें कि ये निर्दोष नागरिकों और हमारे अपने ही सुरक्षाकर्मियों की मौत का कारण बन रही हैं।

जम्मू-कश्मीर: घुसपैठ रोकने के लिए बिछाई गईं बारूदी सुरंगों से मारे जा रहे अपने ही सैनिक और नागरिक

इस साल हर माह इस तरह की वारदातों में मारे गए लोगों की खबरें स्थानीय मीडिया में आती रही हैं। दो दर्जन विस्फोटों की खबरें स्थानीय मीडिया में आई हैं। सेना के कम-से-कम 23 जवानों के घायल होने की सूचनाएं आई हैं। माना जाता है कि एक लेफ्टिनेंट कर्नल, तीन जेओसी और 11 आम लोगों के या तो अंग भंग हुए हैं या वे गंभीर रूप से घायल हुए हैं। कुपवाड़ा और अखनूर में बारूदी सुरंग विस्फोटों में सेना के जवानों के शहीद होने की खबरें भी आई हैं। उनमें पूंछ जिले के मोहम्मद दीन भी शामिल हैं जिन्हें बारूदी सुरंग विस्फोट में अपना पैर गंवाना पड़ा।

फोटो: आशुतोष शर्मा
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पूंछ जिले के मोहम्मद दीन जिन्हें बारूदी सुरंग विस्फोट में अपना पैर गंवाना पड़ा

क्या ये बारूदी सुरंग आत्मघाती साबित हो रही हैं? अगर इन दावों को देखें जिनमें कहा गया है कि सीमा पार से घुसपैठ में बढ़ोतरी हुई है, तो इसका मतलब हुआ कि ये बारूदी सुरंगें कारगर साबित नहीं हो रही हैं। सेना के एक बड़े अधिकारी ने अपना नाम जाहिर न करने की शर्त पर हिचकिचाते हुए कहा कि ‘एलओसी पर इस साल कोई पाकिस्तानी घुसपैठिया न तो मारा गया, न घायल हुआ।’ मीडिया रिपोर्ट्स में भी किसी घुसपैठिये या आतंकी के हताहत होने की खबरें नहीं हैं। इस स्थिति में परेशान करने वाला यह सवाल तो उठता ही है कि हमने आखिरकार ये सुरंगें क्यों बिछा रखी हैं।

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Published: 07 Dec 2018, 3:08 PM