कल आ जाएगा एनआरसी का आखिरी ड्राफ्ट, जानें कौन बचेगा और किसे छोड़ना होगा घर-बार

एक दिन बाद 31 अगस्त को असम में एनआरसी के अंतिम ड्राफ्ट के प्रकाशन के बाद इसकी तारीख नहीं बढ़ाई जाएगी। पिछले ड्राफ्ट में 40 लाख लोगों के नाम शामिल नहीं थे। अब आखिरी ड्राफ्ट के बाद स्पष्ट होगा कि इनमे से कितने लोगों को घर-बार छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।

फोटोः सोशल मीडिया
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दिनकर कुमार

असम के लिए एनआरसी कोई नई बात नहीं है। असम में सबसे पहले 1951 में नागरिकों के नाम, निवास और उनकी जमीन के ब्यौरों के आधार पर एनआरसी का प्रकाशन किया गया था। उसके बाद 1979 से 1985 तक असम में जो विदेशी बहिष्कार आंदोलन चला, उसी समय एनआरसी को अपडेट कर घुसपैठ की समस्या को हल करने की मांग उठाई गई। इसके बाद इस मुद्दे पर कई बार राजनीति तेज हुई, लेकिन इस मुद्दे को हवा 2014 में केंद्र और राज्य में बीजेपी की सरकार आने पर मिला।

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर राज्य में एक बार फिर एनआरसी लिस्ट तैयार करने का फैसला हुआ। इस बार एनआरसी के लिए 24 मार्च, 1971 को कट ऑफ तिथि के तौर पर स्वीकार किया गया, जब बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के समय 1971 में पाकिस्तानी सेना के दमन से बचने के लिए भारी तादाद में बांग्लादेश के लोगों ने असम में आकर शरण ली। बीजेपी का हमेशा से दावा रहा है कि 1971 के बाद भी बांग्लादेश से भारत में लगातार घुसपैठ जारी है। और इनमें से ज्यादातर शरणार्थी असम में आकर बसे हैं। केंद्र और असम की बीजेपी सरकारों का दावा है कि ताजा एनआरसी के जरिये असम में बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ की समस्या का समाधान होगा।

क्यों चुना गया 24 मार्च, 1971 को कट ऑफ तिथि?

ऐसा माना जाता है कि ब्रिटिश शासन काल से ही पूर्वी बंगाल से लोग आकर असम में बसते रहे हैं। लेकिन बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के समय 1971 में पाकिस्तानी सेना के दमन से बचने के लिए भारी तादाद में बांग्लादेशी शरणार्थी असम में आए। असम में लगभग 6 साल तक चले विदेशी बहिष्कार आंदोलन का समापन 1985 में असम समझौते के जरिये हुआ। उसी समझौते में 24 मार्च, 1971 को कट ऑफ तिथि के तौर पर स्वीकार किया गया।

किसे माना जाएगा असम का नागरिक?

असम समझौते के बाद नागरिकता अधिनियम-1955 में संशोधन कर 1 जनवरी, 1966 से पहले असम आए तमाम बांग्लादेशियों को भारत की नागरिकता प्रदान की गई। यह प्रावधान भी किया गया कि 1 जनवरी, 1966 से 25 मार्च, 1971 के बीच बांग्लादेश से आए लोगों को दस साल तक असम में रहने पर पंजीकृत किया जाएगा और उनको नागरिकता दी जाएगी। 25 मार्च, 1971 के बाद आए बांग्लादेशियों को विदेशी मानकर वापस भेजा जाएगा।


किसे कहते हैं डी वोटर?

जिन लोगों के पास अपनी नागरिकता साबित करने के लिए पर्याप्त दस्तावेज नहीं हैं, उनको सरकार ने संदिग्ध मतदाता की श्रेणी में डाल दिया है। ड्राफ्ट एनआरसी के प्रकाशन के बाद ऐसे डी वोटर्स की तादाद असम में 2.48 लाख घोषित की गई है।

घोषित विदेशी नागरिक किसे कहते हैं?

विदेशी अधिनियम के तहत गठित विदेशी ट्रिब्यूनल में डी वोटर के मामले की सुनवाई की जाती है। अगर कोई डी वोटर सुनवाई के दौरान अपनी नागरिकता साबित करने में असमर्थ होता है तो उसे पकड़कर डिटेन्शन कैंप में कैद कर दिया जाता है। असम में इससे पहले 6 डिटेन्शन कैंप चल रहे हैं जो विभिन्न जेल परिसर के अंदर ही बनाए गए हैं, जहां घोषित विदेशी नागरिकों को अपराधियों के साथ ही रखा जाता है।

एनआरसी ड्राफ्ट का प्रकाशन कब हुआ?

असम में एनआरसी अपडेट करने की प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट (मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली बेंच) की देखरेख में 2013 में शुरू हुई। आईएएस अधिकारी प्रतीक हाजेला को इसका समन्वयक बनाया गया। कुल 3.29 करोड़ लोगों ने इसमें नाम शामिल करवाने के लिए आवेदन किया। प्रथम ड्राफ्ट एनआरसी का प्रकाशन 31 दिसंबर, 2017 को किया गया। उस समय 1.9 करोड़ लोगों के नाम शामिल नहीं किए गए। ऐसे लोगों को फिर से आवेदन करने का समय दिया गया।

दूसरे और अंतिम ड्राफ्ट एनआरसी का प्रकाशन 30 जुलाई, 2018 को किया गया। उस समय लगभग 40 लाख लोगों के नाम शामिल नहीं किए गए। फिर 26 जून, 2019 को एक अतिरिक्त सूची का प्रकाशन कर ड्राफ्ट एनआरसी में शामिल हो चुके लोगों में से भी लगभग एक लाख लोगों के नाम काट दिए गए। अब 41 लाख लोगों में से 36 लाख लोगों ने नए सिरे से दस्तावेज देकर अपने नाम को सूची में शामिल करने का दावा किया है। कल 31 अगस्त, 2019 को एनआरसी का प्रकाशन किया जाएगा।


एनआरसी प्रक्रिया की मॉनिटरिंग कर रहे सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि आगामी 31 अगस्त को असम में एनआरसी का प्रकाशन होगा और अब इसकी तारीख नहीं बढ़ाई जाएगी। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये है कि केवल कागजात के आधार पर नाम दर्ज होने की शर्त के कारण लाखों गरीब लोगों के नाम इसमें शामिल नहीं हो पाएंगे। जानकार मानते हैं कि लगभग 15 लाख लोगों के नाम सूची में शामिल नहीं होंगे और उनकी नागरिकता खत्म हो जाएगी। ऐसे में सालों से इसी देश में रह रहे, खेती-बाड़ी, कारोबार या नौकरी कर रहे लाखों लोग अचानक से देश से बेदखल हो जाएंगे।

ऐसे में इन नागरिकता विहीन लोगों के साथ क्या सलूक किया होगा, इसको लेकर राज्य और केंद्र की बीजेपी सरकार ने अभी तक कोई कारगर योजना नहीं बनाई है, जबकि अब बिल्कुल भी समय नहीं बचा है। विशेषज्ञों का मानना है कि लाखों लोगों को उनकी संपति के अधिकार, मताधिकार आदि से वंचित कर डिटेन्शन कैंपों में कैद करना एक आत्मघाती कदम होगा जो अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार नियमों का उल्लंघन भी समझा जाएगा। इधर राज्य में अब तक न तो लाखों लोगों को कैद करने लायक डिटेन्शन कैंप बनाए गए हैं, न ही पर्याप्त संख्या में विदेशी ट्रिब्यूनलों का गठन ही हो पाया है।

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