कानून बनने के बाद भी निर्माण मजदूरों को नहीं मिल रहा कोई लाभ

इस सर्वेक्षण से यह दुखद स्थिति सामने आई है कि 90 प्रतिशत या उससे भी अधिक निर्माण मजदूरों को कोई लाभ अभी तक नहीं मिले हैं। मात्र लगभग 10 प्रतिशत मजदूरों तक ही कोई लाभ पहुंच सका है।

फोटो: सोशल मीडिया
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भारत डोगरा

निर्माण मजदूरों को न्याय देने के लिए कानून बने हुए दो दशक से भी अधिक हो गए हैं पर निर्माण मजदूरों को अभी तक इन कानूनों के अन्तर्गत मिलने वाले लाभ नहीं मिल रहे हैं। दिल्ली में निर्माण मजदूरों की अनेक बस्तियों का सर्वेक्षण करने के बाद हाल ही में यह कड़वी सच्चाई सामने आई।

हालांकि, हमें बहुत थोड़े से ऐसे मजदूर भी मिले जिन तक यह लाभ पहुचे हैं, पर ऐसे मजदूरों की संख्या बहुत कम है।

अनेक वर्षों की देरी के बाद 1996 में हमारी संसद ने निर्माण मजदूरों की बहुपक्षीय भलाई के लिए दो महत्वपूर्ण कानून ‘भवन एवं निर्माण मजदूर (रोजगार व सेवा स्थितियों का नियमन) अधिनियम 1996’ और ‘भवन एवं अन्य निर्माण मजदूर कल्याण उपकर अधिनियम, 1996’ पास किए। विभिन्न केन्द्रीय श्रमिक संगठनों की भागेदारी से निर्माण मजदूरों की राष्ट्रीय अभियान समिति ने 12 वर्ष तक सतत् प्रयास किया था, तब जाकर यह अधिनियम बने थे। अन्य प्रावधानों के अतिरिक्त इन कानूनों में यह व्यवस्था है कि जो भी नया निर्माण कार्य हो, उसकी कुल लागत के एक प्रतिशत का उपकर लगाया जाए। इस तरह जो धनराशि उपलब्ध हो उसे निर्माण मजदूरों के कल्याण बोर्ड में जमा किया जाए और इस धनराशि से निर्माण मजदूरों की भलाई के बहुपक्षीय कार्य किए जाएं, जैसे पेंशन, दुर्घटना के वक्त सहायता, आवास कर्ज, बीमा, मात्तृत्व सहायता, बच्चों की शिक्षा आदि।

इन दो कानूनों के अन्तर्गत विभिन्न निर्माण मजदूरों का रजिस्ट्रेशन किया जाता है और उन्हें उपकर से प्राप्त धनराशि से सामाजिक सुरक्षा के विभिन्न लाभ उपलब्ध करवाए जाते हैं।

हाल ही में लेखक ने दिल्ली के अनेक क्षेत्रों जैसे बवाना, शाहबाद डेयरी, रोहिणी आदि में निर्माण मजदूरों से बातचीत कर यह जानने का प्रयास किया कि इस कानून के अंतर्गत पेंशन, छात्रवृत्ति, मातृत्व, इलाज, विवाह के समय सहायता आदि के लाभ उन्हें कहां तक प्राप्त हुए हैं।

इस सर्वेक्षण से यह दुखद स्थिति सामने आई है कि 90 प्रतिशत या उससे भी अधिक निर्माण मजदूरों को कोई लाभ अभी तक नहीं मिले हैं। मात्र लगभग 10 प्रतिशत मजदूरों तक ही कोई लाभ पहुंच सका है।

इनमें से सबसे महत्त्वपूर्ण लाभ पेंशन का लाभ बहुत ही कम मिल रहा है। यह लाभ मात्र 2 से 3 प्रतिशत मजदूरों तक ही पंहुच सका है। छात्रवृत्ति का लाभ कुछ अधिक मजदूर परिवारों तक पंहुचा है, पर इसमें भी हाल के समय में कुछ कठिनाईयां आ रही हैं।

यह स्थिति केवल सर्वेक्षण की बस्तियों तक सीमित नहीं है। उच्चतम न्यायालय ने भी हाल के समय में इस बारे में गहरी चिंता प्रकट की है कि निर्माण मजदूरों के लिए बनाए गए कोष का सही उपयोग अधिकतम मजदूरों को महत्त्वपूर्ण लाभ पहुंचाने के लिए नहीं किया गया है।

निर्माण मजदूरों की राष्ट्रीय अभियान समिति ने इन कानूनों को बनवाने के लिए अनेक वर्षों तक सतत् अभियान चलाया था। इस समिति के समन्वयक सुभाष भटनागर ने बताया कि निर्माण मजदूरी के विशेष कोष में लगभग 40000 करोड़ रुपए राष्ट्रीय स्तर पर एकत्रित हो गए, जबकि दिल्ली स्तर पर 2500 करोड़ रुपए एकत्रित हो गए हैं। उन्होंने बताया कि यदि इस धन का सदुपयोग हो तो बहुत से जरूरतमंद मजदूरों को महत्त्वपूर्ण राहत मिल सकती है, पर उसका उचित उपयोग नहीं हो रहा है।

निर्माण मजदूरों के संगठन से जुड़े कार्यकर्ता उमेश सिंह ने बताया कि मजदूरों के रजिस्ट्रेशन तक में भ्रष्टाचार हो रहा है। अनुचित लाभ प्राप्त करने के लिए फर्जी व्यक्तियों का रजिस्ट्रेशन किया जा रहा है, जबकि जो संगठन आरंभ से इस कानून और अधिक कल्याण से जुड़े रहे उनकी और उनसे जुड़े मजदूरों की उपेक्षा की जा रही है क्योंकि वे भ्रष्टाचार का विरोध करते हैं।

निर्माण मजदूरों के लिए जब विशेष कानून बने तो इनसे बहुत उम्मीदें जुड़ी थीं। इन उम्मीदों को जीवित रखने के लिए यह बहुत जरूरी है कि इन कानूनों के अंतर्गत स्थापित निर्माण मजदूरों के कोष का पूरा उपयोग मजदूरों के वास्तविक हित में किया जाए।

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