गुजरात दंगाः पूर्व ले. जनरल का दावा, बच सकती थीं सैकड़ों जानें, सरकार की वजह से एयरपोर्ट पर फंसी रही सेना

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और गुजरात दंगों के दौरान सेना का नेतृत्व कर रहे जमीर उद्दीन शाह ने अपनी आने वाली किताब में दावा किया है कि गुजरात दंगों पर नियंत्रण के लिए अहमदाबाद पहुंची सेना को एक दिन तक एयरपोर्ट पर ही रोके रखा गया था।

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

गुजरात दंगों के दौरान अगर सेना को समय से सभी संसाधन मिल जाते तो कम से कम 300 लोगों की जान बचायी जा सकती थी। ये दावा गुजरात दंगों के दौरान सेना का नेतृत्व कर रहे पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल जमीर उद्दीन शाह ने अपनी आने वाली किताब ‘द सरकारी मुसलमान’ में किया है। किताब में उन्होंने लिखा है कि गुजरात में भड़के दंगे को नियंत्रित करने के लिए भेजी गई सेना को जानबूझकर एक दिन तक अहमदाबाद एयरपोर्ट पर ही रोके रखा गया था। अगर उन्हें राज्य सरकार की तरफ से तत्काल वाहन और अन्य आवश्यक सुविधाएं मिल जातीं तो करीब 300 लोगों की जान बच सकती थी।

अपनी किताब में शाह ने लिखा है कि गुजरात दंगों के दौरान सेना के 3000 जवान 1 मार्च को सुबह सात बजे अहमदाबाद एयरपोर्ट पहुंच गए थे। लेकिन वहां उन्हें पूरे एक दिन तक हवाई अड्डे पर वाहन और अन्य संसाधनों का इंतजार करना पड़ा, क्योंकि राज्य सरकार द्वारा देर से सुविधाएं उपलब्ध कराई गईं। एक इंटरव्यू में पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल शाह ने कहा, “मैं और मेरे जवान करीब 34 घंटे तक अहमदाबाद एयरपोर्ट पर असहाय पड़े रहे। हम वहां गोलियों की आवाज सुन सकते थे, लेकिन कुछ नहीं कर सकते थे।”

जल्द ही जारी होने वाली अपनी किताब में शाह ने लिखा है कि वे एक मार्च की सुबह अहमदाबाद पहुंचने के बाद तत्कालिन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने उनके घर पहुंचे, तो पाया कि वहां रक्षा मंत्री जार्ज फार्नांडिज भी मौजूद थे। शाह ने कहा, “मेरे पास गुजरात का एक मानचित्र था, जिसमें मैंने अधिक प्रभावित और मुश्किल जगहों के बारे में जानकारी ली। मैंने राज्य में स्थिति को संभालने के लिए सेना को काम पर लगाने के लिए कुछ जरूरी संसाधनों से संबंधित एक लिस्ट भी सीएम को सौंपी और उन्हें तत्काल उपलब्ध कराने का आग्रह किया। इसके बाद मैं इस आश्वासन के साथ तुरंत वापस हवाई अड्डे पर अपनी सेना के पास लौट आया कि सभी चीजें तत्काल उपलब्ध करा दी जाएंगी।”

शाह ने बताया कि राज्य सरकार ने मांगी गई सभी जरूरी चीजें उपलब्ध करवाईं, लेकिन एक दिन के बाद। शाह ने इसे प्रशासनिक विफलता बताते हुए कहा कि 1 मार्च 2012 को सुबह 7 बजे तक सेना के 3000 जवान पहुंच चुके थे, लेकिन उन्हें आगे बढ़ने के लिए वाहन तक उपलब्ध नहीं करवाए गए। 2 मार्च को राज्य सरकार की तरफ से ट्रक, पुलिस गाइड, मजिस्ट्रेट और नक्शे उपलब्ध कराए गए। थे। उन्होंने कहा, “हमने कीमती समय को खो दिया। अगर समय पर सभी संसाधन मिल जाते तो हम एक दिन राज्य को दंगे से बचा लेते। तीन दिनों में 1044 जानें गई। हम कम से कम 300 लोगों की जानें तो बचा ही सकते थे।”

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Published: 10 Oct 2018, 10:31 PM