मध्य प्रदेश: सियासी अखाड़े में बीजेपी को ललकार रहे हैं साधु-संत, सीएम शिवराज के लिए बने बड़ी चुनौती

मध्य प्रदेश में इस बार प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर कई साधु-संत चुनावी मैदान में उतर गए हैं। शिवराज सरकार में राज्य मंत्री का दर्जा हाल ही में छोड़ने वाले कंप्यूटर बाबा ने मुख्यमंत्री के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। कंप्यूटर बाबा इस समय प्रदेश में जगह-जगह संत समागम कर रहे हैं।

फोटो: सोशल मीडिया
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रोहित गुप्ता

मध्य प्रदेश के चुनावी अखाड़े में छोटे-मोटे और चुनाव के समय पैदा होने वाले मौसमी राजनीतिक दलों की बाढ़ तो आती रहती थी, लेकिन इस बार साधु-संतों ने भी चुनावी अखाड़े में ताल ठोक दी है। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की ताजपोशी, तेलंगाना में बीजेपी की ओर से परिपूर्णानंद को मिल रही तवज्जो और मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्बारा पांच साधु-संतों को राज्यमंत्री का दर्जा देने के साथ ही अब साधु-संतों की राजनीतिक महत्वांकाक्षा भी हिलोरे मारने लगी हैं। प्रदेश में साध्वी उमा भारती भी कुछ महीनों के लिए मुख्यमंत्री रह चुकी हैं, लेकिन उस समय उनके अलावा कोई साधु-संत विधानसभा में प्रवेश नहीं कर पाया था। इस विधानसभा चुनाव में साधु-संतों को बीजेपी द्बारा टिकट में कोई तवज्जो नहीं दी जा रही है, इसलिए वे अपनी-अपनी पार्टी बनाकर चुनावी रण में ताल ठोक रहे हैं। महामंडलेश्‍वर की पदवी से वंचित किए गए कम्प्यूटर बाबा जगह-जगह शिवराज सरकार को उखाड़ने के लिए बैठकें कर रहे हैं। देखने की बात यही होगी कि अभी तक साधु-संतों के लिए उर्वर नहीं रहने वाली मध्य प्रदेश की राजनीतिक धरा अब उन्हें कितना प्रश्रय देती है।

मध्य प्रदेश में इस बार प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर कई साधु-संत चुनावी मैदान में उतर गए हैं। शिवराज सरकार में राज्य मंत्री का दर्जा हाल ही में छोड़ने वाले कंप्यूटर बाबा ने मुख्यमंत्री के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। कंप्यूटर बाबा इस समय प्रदेश में जगह-जगह संत समागम कर रहे हैं। बाबा के समागम में हजारों की संख्या में भीड़ जमा हो रही है। समागम में बाबा 'मन की बात' करके शिवराज सरकार के खिलाफ माहौल तैयार कर रहे हैं।

कंप्यूटर बाबा के अलावा कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर और पंडोखर सरकार के नाम से मशहूर गुरुशरण महाराज ने भी प्रदेश से बीजेपी सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए पूरी ताकत लगा दी है।
देवकीनंदन ठाकुर ने 'सर्व समाज कल्याण पार्टी' की घोषणा की है और प्रदेश की सभी 230 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। एससी-एसटी एक्ट में संशोधन के बाद सरकारों के खिलाफ मुखर हुए अखंड भारत मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष देवकीनंदन ठाकुर ने कहा, "हम कब से राम मंदिर बनाने को कह रहे हैं। बीजेपी ने मंदिर तो नहीं बनाया, लेकिन एससी-एसटी अत्याचार निवारण कानून बना दिया। सरकार न तो धारा 370 खत्म कर पाई और न ही गौ-हत्या बंद करा पाई।"

पंडोखर सरकार ने भी नए राजनीतिक दल ’सांझी विरासत पार्टी’ का ऐलान किया है। इस दौरान गुरुशरण महाराज ने बताया कि ये पार्टी प्रदेश की 50 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी। वहीं, बाकी सीटों पर समान सोच वाले राजनैतिक दलों का समर्थन करेगी। बता दें कि पंडोखर सरकार भी शिवराज सरकार में संतों की उपेक्षा और एससी-एसटी एक्ट पर सरकार के कदम के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरे हैं।

चुनावी मैदान में क्यों उतरे साधू-संत?

मध्यप्रदेश में पहली बार संत समाज इतने बड़े पैमाने पर राजनीति में दखल दे रहा है। इसका एक बड़ा कारण एससी-एसटी एक्ट पर सरकार का कदम है। साथ ही बीजेपी द्वारा संतों को सत्ता में बैठाने से भी संत समाज के भीतर राजनैतिक महत्वाकांक्षाएं बढ़ी हैं।

दरअसल, साध्वी उमा भारती, राज्य मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति, साक्षी महाराज और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को देखकर संत समाज का राजनीति के प्रति आकर्षण बढ़ा था। वहीं, इसी साल अप्रैल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भय्यूजी महाराज समेत पांच संतों को राज्य मंत्री का दर्जा प्रदान करके प्रदेश के संतों की महत्वाकांक्षाओं को और बढ़ा दिया। जिन संतों को राज्य मंत्री का दर्जा दिया गया था उनमें नर्मदानंदजी, हरिहरानंदजी, कंप्यूटर बाबाजी, भय्यूजी महाराज और योगेंद्र महंतजी शामिल थे। शिवराज सरकार द्वारा इन संतों को राज्य मंत्री का दर्जा देने के बाद कई और संतों ने बीजेपी से टिकट की मांग कर दी थी।

इन संतों में रायसेन जिले के संत रविनाथ महीवाले, उज्जैन जिले के बाबा अवधेशपुरी और सिवनी जिले के संत मदन मोहन खड़ेश्‍वरी महाराज बीजेपी से टिकट मांगने वालों में प्रमुख हैं। यह सभी संत बीजेपी से टिकट न मिलने पर कांग्रेस या निर्दलीय चुनाव लड़ने की धमकी भी दे रहे थे।

चुनाव पर क्या पड़ेगा असर?

प्रदेश के विधानसभा चुनाव में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर उतरे लगभग सभी संत या तो एससी-एसटी एक्ट या फिर आरक्षण के मुद्दे पर सरकार के रुख से नाराज हैं। वहीं, कई संत बीजेपी शासन में हुए नर्मदा घोटाले और नर्मदा में चल रहे अवैध उत्खनन के मुद्दे पर चुनाव मैदान में उतरे हैं। ऐसे एक बात साफ है कि चुनावी रण में उतरे लगभग सभी संत या तो बीजेपी के खिलाफ हैं या फिर उससे नाराज है, इसलिए उनके राजनीति में प्रवेश करने से सीधा नुकसान बीजेपी को होगा। यह संत चुनाव बाद चाहे सरकार न बना पाएं, लेकिन चुनाव में इनकी उपस्थिति से बीजेपी के सवर्ण वोट बैंक को भारी नुकसान होगा।

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