मध्य प्रदेश: बीजेपी में टिकट को लेकर कलह, विजयवर्गीय के बेटे, गौर की बहू को मिला टिकट, महाजन के बेटे को नहीं

उम्मीदवारों के विवादित चयन के बाद बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं की आपसी तकरार गंभीर स्थिति में पहुंच गई है। इस वजह से नवंबर के आखिरी महीने में होने वाले विधानसभा चुनावों में पार्टी विरोधी गतिविधियों में बीजेपी कार्यकर्ताओं के शामिल होने की संभावना है।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया
user

संजीव आचार्य

चुनाव पूर्व सर्वे 2 महीने पहले ही जनता के मूड को भांपकर यह अनुमान लगा चुके हैं कि कांग्रेस सत्ता में आ सकती है। अब यह लगभग तय हो चुका है कि मध्य प्रदेश में बीजेपी का 15 साल का शासन खत्म होने के कगार पर है।

जनता के मूड के अलावा, उम्मीदवारों के विवादित चयन के बाद बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं की आपसी तकरार भी गंभीर स्थिति में पहुंच गई है। इन्हीं वजहों से नवंबर के आखिरी महीने में होने वाले विधानसभा चुनावों में पार्टी विरोधी गतिविधियों में बीजेपी कार्यकर्ताओं के शामिल होने की संभावना है। कम से कम दो पूर्व मुख्यमंत्रियों समेत दर्जन भर ताकतवर नेताओं ने कई मुद्दों को लेकर सीएम शिवराज सिंह चौहान और केंद्रीय नेतृत्व के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। उमा भारती और उनके समर्थक चुपचाप यह सुनिश्चित करने में लगे हैं कि शिवराज सिंह चौहान हार जाएं। दूसरी तरफ, बाबूलाल गौर खुले तौर पर राज्य और केंद्रीय नेतृत्व की आलोचना कर रहे हैं। 44 साल से विधायक रहने के बावजूद इस बार उन्हें बढ़ी उम्र का कारण बताकर टिकट नहीं दिया गया है। लेकिन गौर छोड़ने के मूड में नहीं हैं। वे जिद पर अड़े हुए थे और यह मांग कर रहे थे कि भोपाल की पूर्व मेयर और उनकी बहु कृष्णा गौर को उनकी जगह टिकट दिया जाए। पार्टी अपने वरिष्ठ नेता को खुश करने के लिए तैयार नहीं थी। फिर उन्होंने कृष्णा गौर को स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में खड़ा करने की धमकी दी अगर बीजेपी ने उनकी मांग नहीं मानी। आखिरकार उनकी धमकी रंग लाई और पार्टी ने उनकी जगह कृष्णा गौर को टिकट देने की घोषणा कर दी।

यह मामला यह समझने के लिए काफी है कि कितने खुले रूप में नेता पार्टी के उच्च नेतृत्व को चुनौती दे रहे हैं।

उसी तरह, लोकसभा की स्पीकर सुमित्रा महाजन और उनके विरोधी पार्टी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय खुले तौर पर उन नियमों को मानने से इंकार कर रहे थे जो बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने बनाई थीं कि पार्टी टिकट के लिए नेताओं के बच्चों और परिवारवालों की उम्मीदवारी पर विचार नहीं किया जाएगा। महाजन और विजयवर्गीय दोनों इस बात पर अड़े हुए थे कि उनके बेटों को टिकट दिया जाए। चूंकि महाजन एक वक्त में पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के काफी करीब थीं, इसलिए मोदी और शाह से उनकी अच्छी नहीं बनती है। शाह ने अपने करीबी विजयवर्गीय पर मेहरबानी करते हुए उनके बेटे को टिकट दे दिया, लेकिन महाजन के आग्रह को मानने से इंकार कर दिया। इस बात से वे काफी नाराज हैं और उनके इलाके में मौजूद उनके समर्थक बीजेपी उम्मीदवारों की जीत की संभावना पर पानी फेर सकते हैं।

मध्य प्रदेश में कम से कम दर्जन भर ऐसे बीजेपी नेता हैं जो पार्टी के फैसले लेने के तौर-तरीके से काफी खफा है। जब कुछ महीनों पहले पार्टी उपचुनाव में चारों सीटें हार गई थी तो वरिष्ठ आरएसएस विचारक और पूर्व सांसद रघुनंदन शर्मा ने खुले तौर पर शिवराज सिंह चौहान की आलोचना की थी और उन्हें हार के लिए जिम्मेदार ठहराया था। उमा भारती, प्रहलाद पटेल, प्रभात झा, बाबूलाल गौर, कैलाश विजयवर्गीय, अनूप मिश्रा आदि शिवराज विरोधी खेमे के प्रमुख सदस्य माने जाते हैं।

इस बात से सब वाकिफ हैं कि शिवराज सिंह चौहान इनमें से किसी नेता को महत्व नहीं देते हैं। जब उन्होंने बाबूलाल गौर के हाथों से प्रदेश की सत्ता की कमान ली थी तब प्रभात झा प्रदेश पार्टी अध्यक्ष थे। झा उस पद तक इसलिए पहुंच पाए थे क्योंकि उनकी निकटता ताकतवर आरएसएस नेता सुरेश सोनी के साथ थी। चौहान और झा के बीच नहीं बनती थी। चौहान ने नितिन गडकरी के जरिये उन्हें हटा दिया। तब से झा चौहान के और खिलाफ हो गए हैं। कैलाश विजयवर्गीय के साथ भी यही हुआ। वे उमा भारती की सरकार में कैबिनेट मंत्री थे और उनके काफी वफादार थे। वे मुख्यमंत्री बदलने के बाद भी ताकतवर बने रहे। लेकिन चौहान जानते थे कि विजयवर्गीय सीएम बनना चाहते हैं, इसलिए उन्हें सफलतापूर्वक हटा दिया और अपने रसूख के जरिये ऐसा प्रबंध किया कि विजयवर्गीय राज्य से बाहर रहें। विजयवर्गीय ने चौहान की कई बार आलोचना की है।

प्रहलाद पटेल, उमा भारती के बाद एक मजबूत लोध नेता हैं औक राज्य के कई हिस्सों में उनकी अच्छी पकड़ है। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में वे केंद्रीय मंत्री थे। इस बार चौहान ने पार्टी में अपने सारे संपर्कों का इस्तेमाल कर यह सुनिश्चित किया कि पटेल को मोदी सरकार की कैबिनेट में जगह नहीं मिल सके। पटेल काफी खुलकर चौहान की विभाजनकारी राजनीति की आलोचना करते हैं। मुरैना से सांसद अनूप मिश्रा, अटल बिहारी वाजपेयी के भतीजे हैं। वे भी उमा भारती सरकार में कैबिनेट मंत्री थे, लेकिन शिवराज सिंह चौहान को हमेशा उनसे खतरा महसूस होता था। इसलिए उन्होंने मिश्रा को राज्य की राजनीति से बाहर कर दिया और यह सुनिश्चित किया कि वे मोदी कैबिनेट में शामिल नहीं हो पाएं। मिश्रा तब से नाक-भौं सिकोड़े बैठे हैं और चुपचाप चौहान के खिलाफ काम कर रहे हैं। वे जानते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें टिकट नहीं मिलेगा।

सुषमा स्वराज विदिशा से सांसद हैं तो स्वाभाविक है कि उनके तीन-चार अपने वफादार होंगे। उनके लिए वे पार्टी टिकट चाह रही थीं लेकिन एक भी टिकट नहीं मिला।

मध्य प्रदेश में कांग्रेस की मीडिया कमिटी की मुखिया और राष्ट्रीय प्रवक्ता शोभा ओझा ने बताया, “बीजेपी पूरी तरह से विभाजित पार्टी है और हर जिले में नेता एक-दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं। शिवराज सरकार सभी क्षेत्र में विफल रही है। हर तरफ भ्रष्टाचार है। इसलिए जनता उनसे नाराज है। वे उन्हें सत्ता से बाहर निकालने का इंतजार कर रहे हैं।”

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia


Published: 09 Nov 2018, 6:59 AM