2017: व्यापमं घोटाले की जांच भी हुई और आरोप-पत्र भी हुए दाखिल, लेकिन सवाल बना हुआ है कि कौन था मास्टरमाइंड?

मध्य प्रदेश के व्यापमं घोटाले में सीबीआई ने दो आरोप-पत्र दाखिल किए जिनमें 1082 लोगों को आरोपी बनाया गया, लेकिन मामले के मास्टरमाइंड को लेकर आरोप-पत्र मौन है।

फोटो: सोशल मीडिया 
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आईएएनएस

मध्यप्रदेश के व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाले के लिए वर्ष 2017 इस मामले में खास रहा है कि सीबीआई ने दो आरोप-पत्र दाखिल किए, जिनमें 1082 लोग आरोपित हैं, मगर मामले के मास्टरमाइंड को लेकर आरोप-पत्र मौन है। इस बीच व्यापमं की कार्यशैली पर कैग ने भी सवाल उठाए हैं।

मामले को उजागर हुए चार साल पूरे हो चुके हैं। दो साल से यह मामला केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के पास है। सीबीआई ने 2017 में विशेष अदालत में दो आरोप-पत्र दाखिल किए। एक में 490 लोग और दूसरे में 592 लोग आरोपित हैं। इसमें चार निजी महाविद्यालयों के रसूखदार संचालकों के भी नाम हैं। लेकिन मामले का सरगना कौन है, इसपर आरोप-पत्र मौन है।

वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद मोहन माथुर कहते हैं, “व्यापमं घोटाले के सूत्रधार का ही पता नहीं है तो बाकी आरोपियों को सजा कैसे मिलेगी। उल्टे जेल में बंद लोग सीबीआई की लेटलतीफी के कारण जमानत पर छूटते जा रहे हैं। सीबीआई का आरोप-पत्र इतना लचर है कि कोई भी सजा नहीं पा सकेगा।”

माथुर ने कहा, “व्यापमं देश का बहुत बड़ा घोटाला है। लेकिन सीबीआई सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर महज औपचारिकता निभा रही है। जब बैंक में घोटाला होता है तो प्रबंधक तक को साजिश का आरोपी बनाया जाता है, मगर इस मामले में उन लोगों पर मामला तक दर्ज नहीं हुआ, जो महत्वपूर्ण पदों पर रहे।”

सागर विश्वविद्यालय अपराध विज्ञान विभाग में प्राध्यापक, अपराधशास्त्री डॉ. दीपक गुप्ता कहते हैं, “किसी भी बड़े और संगठित अपराध में मुख्य आरोपी का सामने आना जरूरी होता है। हजार लोगों के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल हुआ, जो सह-आरोपी, बिचौलिए हैं। यह तो दूसरी सीढ़ी है, पहली सीढ़ी तो मुख्य आरोपी है। जब तक उसका खुलासा नहीं होता, तब तक यह मामला ऐसे ही चलता रहेगा। अपराधियों की श्रृंखला में मुख्य कड़ी का होना आवश्यक है। सीबीआई को सबसे पहले उसका नाम सामने लाना चाहिए।”

मार्च में विधानसभा में राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान कांग्रेस ने इस मुद्दे पर खुलकर सरकार पर आरोप लगाए थे। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने कहा था कि व्यापमं में राज्य सरकार के कई मंत्रियों की संलिप्तता रही है, लिहाजा उनके खिलाफ मामला दर्ज होना चाहिए। इस पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने तरीके से जवाब दिया और कहा कि मामले का पता चलते ही उन्होंने जांच के आदेश दिए।

व्यापमं द्वारा आयोजित विभिन्न भर्ती और प्रवेश परीक्षाओं में गड़बड़ी के सिर्फ 1,378 मामले सामने आए हैं, जो कुल भर्ती और प्रवेश संख्या के मुकाबले काफी कम है।

भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की मार्च में आई रपट में व्यापमं की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए गए। रपट में कहा गया था कि व्यापमं की परीक्षाओं की विश्वसनीयता में गंभीर गिरावट आई है। रपट में यह भी कहा गया कि दो अधिकारियों डॉ योगेश उपरीत (2003, कांग्रेस सरकार) और पंकज त्रिवेदी (2011, भाजपा सरकार) की नियुक्तियां मंत्रियों के आदेश पर हुई थीं। ये दोनों अधिकारी विभिन्न मामलों में गिरफ्तार भी किए गए।

कैग की रपट में यह बात भी सामने आई है कि राज्य सरकार ने व्यापमं का ऑडिट महालेखाकार से कराने में कभी दिलचस्पी नहीं ली है। इतना ही नहीं सरकार (1983) ने कैग से ऑडिट यह कहते हुए नहीं कराया कि उनका कार्यालय (महालेखाकार) व्यस्त रहता है, जबकि महालेखाकार कार्यालय से इस बारे में कोई राय नहीं ली गई थी, और ऑडिट स्थानीय स्तर पर कराया गया।

सीबीआई ने 31 अक्टूबर को जो आरोप-पत्र दाखिल किए, वह 2013 में व्यापमं द्वारा आयोजित पीएमटी परीक्षा से संबंधित थे। इसमें कुल 490 आरोपी हैं, जिसमें तीन व्यापमं के अधिकारी, तीन गिरोहबाज, 17 दलाल, 297 सॉल्वर और लाभार्थी विद्यार्थियों के अलावा 170 परिजन हैं।

सीबीआई ने विशेष न्यायाधीश की अदालत में आरोप-पत्र दाखिल करते हुए कहा कि उसने तमाम आरोपों की पड़ताल कर पुलिस द्वारा जब्त हार्ड डिस्क का सीएफएसएल से परीक्षण कराया और अन्य जुटाए गए साक्ष्यों का परीक्षण करने के बाद पाया है कि हार्ड डिस्क से छेड़छाड़ नहीं हुई है।

पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर व्यापमं की हार्ड डिस्क से छेड़छाड़ का आरोप लगाया था। एक अन्य निजी याचिका के साथ पेन ड्राइव भी पेश की गई थी। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर सीबीआई ने इंदौर पुलिस द्वारा 2013 में जब्त हार्ड डिस्क की हैदराबाद की केंद्रीय फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (सीएफएसएल) से परीक्षण कराया था। निजी व्यक्ति द्वारा पेश पेन ड्राइव में कई बातें झूठी निकलीं।

सीबीआई ने दूसरा आरोप-पत्र 23 नवंबर को विशेष न्यायाधीश डीपी मिश्रा की अदालत में दाखिल किया। यह पीएमटी परीक्षा 2012 से संबंधित था। आरोप-पत्र में 592 आरोपित हैं, जिसमें चार चिकित्सा महाविद्यालयों के संचालक शामिल हैं। 20 आरोपियों ने अग्रिम जमानत के लिए आवेदन किया, जिसे न्यायाधीश मिश्रा ने खारिज कर दिया।

आरोप-पत्र में कहा गया है कि निजी चिकित्सा महाविद्यालयों में एमबीबीएस में दाखिले के एवज में 80 लाख रुपये और स्नातकोत्तर के लिए एक करोड़ रुपये से अधिक की रकम ली गई। अनुमान के मुताबिक, इस एक वर्ष में हजार करोड़ रुपये का घोटाला हुआ है।

कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव इन घोटालों में सरकार से जुड़े लोगों और खासकर मुख्यमंत्री चौहान के आसपास के लोगों का हाथ होने का आरोप लगाते रहे हैं। यादव ने कहा, “व्यापमं में बीते एक दशक में हजारों भर्तियां हुई हैं, जिनमें कितनी गड़बड़ी हुई, यह किसी से छुपा नहीं है। मामले में मुख्यमंत्री चौहान को आरोपी बनाया जाना चाहिए। इस दौरान चिकित्सा शिक्षा विभाग उन्हीं के पास था। नरोत्तम मिश्रा भी चिकित्सा शिक्षा मंत्री रहे हैं, वे भी आरोपों के घेरे में हैं।”

सामाजिक कार्यकर्ता और पूर्व विधायक पारस सखलेचा कहते हैं, “कोयला घोटाले में सीबीआई तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से लिखित में सवाल-जवाब कर सकती है, तो व्यापमं घोटाले में तत्कालीन चिकित्सा शिक्षामंत्री से क्यों नहीं। वर्ष 2008 से जुलाई 2012 तक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पास चिकित्सा शिक्षा विभाग का प्रभार रहा, उसके बाद नरोत्तम मिश्रा इस विभाग के मंत्री बने।”

सखलेचा आगे कहते हैं कि वह विधायक रहते हुए विधानसभा में वर्ष 2008 से 2013 तक व्यापमं गड़बड़ी के मामले उठाते रहे, जिसमें 117 और 319 मामले पकड़े गए। एसटीएफ ने वर्ष 2013 में पीएमटी परीक्षा में गड़बड़ी का खुलासा किया था। कुल 2100 लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है, 50 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। लेकिन संबंधित मंत्री से सीबीआई ने पूछताछ करना मुनासिब नहीं समझा।

नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने सीबीआई निदेशक को इसी माह (दिसंबर 2017) पत्र लिखकर पूछा है कि पीएमटी 2013 की परीक्षा में जब प्रमुख सचिव (चिकित्सा शिक्षा) को आरोपी बनाया जा सकता है तो तत्कालीन चिकित्सा शिक्षा मंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा और मुख्यमंत्री के निजी सचिव प्रेमसिंह को आरोपी क्यों नहीं बनाया गया?

राज्य में चिकित्सा महाविद्यालयों में प्रवेश के लिए पीएमटी आयोजित करने के लिए व्यावसायिक परीक्षा मंडल 1970 में अस्तित्व में आया था। इंजीनियरिंग महाविद्यालयों में प्रवेश परीक्षा के लिए 1980 में प्री इंजीनियरिंग बोर्ड बना था। बाद में 1982 में प्री इंजीनिरिंग बोर्ड को भी व्यापमं में मिला दिया गया।

व्यापमं 2004 तक सिर्फ पीएमटी और पीईटी आयोजित करता था, मगर इसी वर्ष से इसे सरकारी नौकरियों में भर्ती का जिम्मा भी दे दिया गया। वर्तमान में व्यापमं का नाम बदलकर पेशेवर परीक्षा बोर्ड कर दिया गया है।

व्यापमं में गड़बड़ी का बड़ा खुलासा सात जुलाई, 2013 को पहली बार पीएमटी परीक्षा के दौरान तब हुआ, जब एक गिरोह इंदौर की अपराध शाखा की गिरफ्त में आया। यह गिरोह पीएमटी परीक्षा में फर्जी विद्यार्थियों को बैठाने का काम करता था। मुख्यमंत्री चौहान ने इस मामले को अगस्त 2013 में एसटीएफ को सौंप दिया।

उच्च न्यायालय ने मामले का संज्ञान लिया और उसने उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश, न्यायमूर्ति चंद्रेश भूषण की अध्यक्षता में अप्रैल 2014 में एसआईटी गठित की, जिसकी देखरेख में एसटीएफ जांच करता रहा। नौ जुलाई, 2015 को मामला सीबीआई को सौंपने का फैसला हुआ और 15 जुलाई से सीबीआई ने जांच शुरू की।

सरकार के पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा, उनके ओएसडी रहे ओपी शुक्ला, बीजेपी नेता सुधीर शर्मा, राज्यपाल के ओएसडी रहे धनंजय यादव, व्यापमं के नियंत्रक रहे पंकज त्रिवेदी, कंप्यूटर एनालिस्ट नितिन मोहिंद्रा जेल जा चुके हैं।

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