खेल मंत्रालय योग को खेल नहीं मानता, फिर भी डीयू कॉलेजों में कोटा 

खेल मंत्रालय ने 21 दिसम्बर, 2016 को भारतीय ओलंपिक संघ और राष्ट्रीय खेल संघों को लिखे एक पत्र में कहा था कि योग के कई आयाम हैं, जिसमें प्रतियोगिताएं संभव नहीं हैं। इसलिए इस पर स्वीकृति जताई गई है कि योग कोई खेल नहीं है।

फोटो: सोशल मीडिया 
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आईएएनएस

खेल मंत्रालय योग को खेल नहीं मानता, इसके बावजूद दिल्ली विश्वविद्यालय के 11 कॉलेजों में खेल कोटा के तहत इस साल योग के लिए सीटें आरक्षित रखी गई हैं। इस मामले पर विश्वविद्यालय और कॉलेज एक-दूसरे पर दोष मढ़ रहे हैं। खेल मंत्रालय ने 2015 योग को खेल की मान्यता दी थी, लेकिन अगले साल ही अपने इस फैसले पर रोक लगा दी।

खेल मंत्रालय ने 21 दिसम्बर, 2016 को भारतीय ओलंपिक संघ और राष्ट्रीय खेल संघों को लिखे एक पत्र में कहा, “काफी विस्तार की चर्चा के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया है कि योग के कई आयाम हैं, जिसमें प्रतियोगिताएं संभव नहीं हैं। इसीलिए, इस पर स्वीकृति जताई गई है कि योग कोई खेल नहीं। ऐसे में इसके लिए राष्ट्रीय खेल संघ का निर्माण उचित नहीं है।” पत्र में यह भी लिखा गया, “इस पर भी स्वीकृति जताई गई कि योग से संबंधित सारा मामला आयूष मंत्रालय द्वारा देखा जाएगा।”

कॉलेजों की तरफ से खेल कोटा के लिए केंद्रीकृत परीक्षण आयोजित करने वाले विश्वविद्यालय खेल परिषद के निदेशक अनिल कालकाल ने कहा, “हां, योग को खेल कोटे के तहत रखा गया है और यह पिछले कई वर्षो से है। पिछले साल, 19 कॉलेजों ने खेल कोटा के तहत योग के परीक्षण का आवेदन किया था। यह फैसला कॉलेजों द्वारा लिया गया था।”

अनिल ने आगे कहा, “कॉलेजों के पास स्वत्व अधिकार है कि वह उन खेलों का चयन कर सकते हैं, जिसके तहत वह दाखिले कराना चाहते हों। डीयू इस मामले में किसी भी कॉलेज को कुछ नहीं कह सकता। कॉलेजों द्वारा चुने गए खेल किसी भी प्रकार से खेल मंत्रालय के तहत नहीं आते और न ही उसके द्वारा विनियमित किए जाते हैं।”

एआईयू कहेगा तो दाखिले बंद करेंगे

कॉलेजों द्वारा भले ही परीक्षणों के लिए खेल का चयन किया जाता हो और उसके लिए सीटें आरक्षित रखी जाती हों, लेकिन जिन खेलों का चयन कॉलेज करते हैं उनकी सूची विश्वविद्यालय द्वारा संकलित की जाती है। अनिल का कहना है कि भारतीय विश्वविद्यालय संघ (एआईयू) द्वारा अंतर-विश्वविद्यालय प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। एआईयू एक गैर-सरकारी शाखा है, जो सोसाइटी अधिनियम के तहत आती है। ऐसे में यह तथ्य योग को खेल की मान्यता देने वाले कारणों में से एक है।

उन्होंने कहा, “अगर इसे अस्वीकृत करने जैसी कोई बात होती, तो फिर एआईयू क्यों योग प्रतियोगिता का आयोजन करता? जिस दिन एआईयू बोल देगा कि योग कोई खेल नहीं है और प्रतियोगिता का आयोजन रोक दो, हम इसके तहत दाखिले बंद कर देंगे।”

कालेज की मांग, विवि क्या करेगा?

अनिल कालकाल ने आगे कहा, “अगर कॉलेज योग के तहत दाखिले कराने का आग्रह कर रहे हैं, तो इसमें विश्वविद्यालय क्या कर सकता है? आपको कॉलेजों से पूछना चाहिए कि वे हमें योग के परीक्षणों का आयोजन करने के लिए क्यों कहते हैं?”

इस साल योग के लिए सीटें आरक्षित रखने वाले कॉलेजों में से एक के अधिकारी से जब संपर्क किया गया, तो उन्होंने इसका बीड़ा विश्वविद्यालय पर डाल दिया। हंसराज कॉलेज के खेल संयोजक एमपी शर्मा ने बताया, “हम इस मामले पर डीयू और एआईयू शासी निकाय से विचार-विमर्श करते हैं। अगर विश्वविद्यालय द्वारा किसी गतिविधि को खेल सूची में रखा गया है, तो हम उसका अनुसरण करते हैं। अगर डीयू हमें कहेगा कि वह योग के परीक्षण आयोजित नहीं करेगा, तो हम इसके तहत दाखिले नहीं करेंगे।”

एआईयू स्वयं योग को खेल नहीं मानता

योग के लिए कोटा की कानूनी मंजूरी पर अस्पष्टता तब और भी खराब हो गई, जब एआईयू के एक अधिकारी ने कहा कि एआईयू स्वयं योग को खेल नहीं मानता। एआईयू के संयुक्त सचिव (खेल) गुरदीप सिंह ने कहा, “प्रतियोगिता इसमें इसलिए है, क्योंकि यह शरीर, मस्तिष्क और चेतना की स्थिरता को बनाए रखता है। हम इसे खेल नहीं मानते। हालांकि, हम प्रदर्शन के स्तर में सुधार के लिए योग की प्रतियोगिता आयोजित करते हैं।”

गुरदीप ने यह भी कहा कि एआईयू के फैसले विश्वविद्यालय के लिए बाध्यकारी नहीं हैं।

उन्होंने कहा, “हमारा डीयू के खेल कोटे से कुछ लेना-देना नहीं है। वह अपने ही संविधान का पालन करते हैं। आप इस मामले में उनसे बात कर सकते हैं। हमारे खेल बोर्ड द्वारा एक सामूहिक निर्णय लिया जाता है। व्यापक रूप से विद्यार्थियों के हित में जो होता है, हम वहीं करते हैं। यह खेल नहीं, लेकिन एक गतिविधि है। यह शरीर के संतुलन को बनाए रखने में मदद करती है। पूरे विश्व ने योग की अहमियत को माना है। मुझे समझ में नहीं आता कि लोगों को इससे परेशानी क्यों है?”

एआईयू की वेबसाइट पर योग को खेल का दर्जा

गुरदीप भले ही योग को खेल न मान रहे हों, लेकिन एआईयू की वेबसाइट पर इसे पिछले साल खेल सूची में शामिल किया गया है। यह मामला कई वर्षों से चला आ रहा है। डीयू के कुछ अध्यापकों का कहना है कि योग को विश्वविद्यालय द्वारा मनमाने फैसले से खेल की मान्यता दी गई है। उनका कहना है कि इसे अकादमी या विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद द्वारा कभी प्रस्तुत नहीं किया गया। कार्यकारी परिषद के सदस्य और डीयू के प्रोफेसर राजेश झा ने कहा, “खेल कोटे के तहत सीटों के आरक्षण की बात है, तो केवल ओलम्पिक संघ द्वारा मान्यता प्राप्त खेलों के लिए ऐसा किया जाना चाहिए। किस आधार पर योग को इसमें रखा गया है। यह मनमाना फैसला है।"

इस माह के अंत में योग के लिए परीक्षणों का आयोजन किया जाएगा। हंसराज के अलावा, गार्गी, देशबंधु, कॉलेज ऑफ वोकेशनल स्टडीज, कालिंदी कॉलेजों ने इन परीक्षणों के लिए आवेदन किए हैं।

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