तीन तलाक पर संसद के शीत सत्र में बिल लाने की तैयारी में मोदी सरकार :  क्या यह वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश है?

केंद्र की मोदी सरकार संसद के शीत सत्र में तीन तलाक को अपराध घोषित करने के लिए बिल लाने की तैयारी कर रही है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसे गुजरात में वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश करार दिया है।

फोटो : सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

गुजरात चुनाव से ऐन पहले केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने एक बार फिर वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश की है। सरकारी अफसरों के हवाले से यह खबर मीडिया को दी गई है कि मोदी सरकार तीन तलाक को खत्म कर इसे अपराध घोषित करने की तैयारी कर रही है, और इसके लिए संसद के शीतकालीन सत्र में बिल ला सकती है। इसके लिए एक मंत्रिस्तरीय समिति भी बना दी गई है।

एजेंसी की खबरों के मुताबिक एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि, "सरकार पुराने कानून में संशोधन करने या फिर नया कानून बनाने पर विचार कर रही है, जिसके तहत तीन तलाक को अपराध माना जाएगा। कानून बनाने के लिए मंत्रीस्तरीय समिति का गठन किया गया है।"

यहां यह जानना जरूरी है कि इसी साल 22 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एक साथ तीन तलाक कहने की प्रथा यानी तलाक-ए-बिद्दत असंवैधानिक और गैरकानूनी है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से इस बारे में 6 महीने में कानून बनाने को कहा था।

फिलहला जो व्यवस्था है इसके तहत अभी महिला स्पेशल मैरिज एक्ट-1954 के तहत हक मांग सकती है। आईपीसी की धारा-125 के तहत मेंटेनेंस यानी गुजारा भत्ता मांग सकती है। इसके अलावा दीवानी मुकदमा भी किया जा सकता है। इस अधिकारी का कहना है कि मौजूदा व्यवस्था में कोई पीड़ित महिला अगर पुलिस के पास जाती है, तो कानून में किसी तरह की दंडात्मक कार्रवाई ना होने की वजह से पुलिस भी पति के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर पाती।

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में केंद्र सरकार को 6 महीने के भीतर इस बारे में कानून बनाने का निर्देश दिया था, लेकिन कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा था कि, "भले ही दो जजों ने कानून बनाने की राय दी है, लेकिन बेंच के मेजॉरिटी जजमेंट में तीन तलाक को असंवैधानिक बताया गया है। लिहाजा, इसके लिए कानून बनाने की जरूरत नहीं है।"

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में तलाक-ए-बिद्दत यानी एक ही बार में तीन बार तलाक कह देने को गैरकानूनी ठहराया था। यह हनफी पंथ को मानने वाले सुन्नी मुस्लिमों के पर्सनल लॉ का हिस्सा है। इसे सुप्रीम कोर्ट ने अंसवैधानिक ठहराया था। इससे वॉट्सएप, ईमेल, एसएमएस, फोन, चिट्ठी जैसे तरीकों से तलाक देने पर रोक लगी है।

लेकिन तलाक-ए-बिद्दत गैकानूनी ठहराए जाने के बाद भी दो तरीके हैं जिनके द्वारा तलाक हो सकता है। पहला है- तलाक-ए-अहसन और दूसरा है- तलाक-ए-हसन। तलाक-ए-अहसन के तहत एक मुसलमान पुरुष अपनी पत्नी को महीने में एक बार तलाक कहता है। अगर 90 दिन में सुलह की कोशिश नाकाम रहती है तो तीन महीने में तीन बार तलाक कहकर पति अपनी पत्नी से अलग हो जाता है। इस दौरान पत्नी इद्दत (पति से अलग होने का वक्त) गुजारती है। इद्दत का वक्त पहले महीने में तलाक कहने से शुरू हो जाता है। तलाक-ए-हसन के तहत पति अपनी पत्नी को मासिक धर्म के चक्र के दौरान तलाक कहता है। तीन चक्र में तलाक कहने पर तलाक पूरा हो जाता है।

केंद्र सरकार के इस कदम पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसे चुनावी और सियासी कदम ठहराया है। बोर्ड के वरिष्ठ सदस्य कमाल फारूकी ने कहा कि गुजरात चुनावों में वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश के लिए ही ऐसी खबरें सामने लाई जा रही हैं। उनका कहना है कि अगर केंद्र की मोदी सरकार को मुस्लिम महिलाओं की इतनी ही चिंता है तो वे उनकी शिक्षा और उद्धार के लिए दूसरे कदम क्यों नहीं उठाते।

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