देश की संसद में संविधान के पथ पर चलने की कसमें खा रही मोदी सरकार ने शंभू बार्डर को बनाया जंग का मैदान!

पुलिस के कानून-व्यवस्था खराब होने के तर्क पर किसानों का सवाल था कि 101 किसान लॉ एंड ऑर्डर के लिए समस्या कैसे बन सकते हैं। क्या दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में 101 किसान अपने हक के लिए दिल्ली में प्रदर्शन नहीं कर सकते।

शंभू बार्डर पर प्रदर्शन कर रहे किसान
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धीरेंद्र अवस्थी

देश की संसद में जिस वक्त 75 वर्ष पूरे होने पर संविधान पर चर्चा हो रही थी ठीक उसी वक्त यहां से महज 200 किलोमीटर दूर लोकतांत्रिक तरीके से अपने हक की बात करने पैदल दिल्ली आना चाह रहे निहत्थे 101 किसानों के हकों को कुचला जा रहा था। सर्द मौसम में भी उन पर वाटर कैनन, आंसू गैस और मिर्च स्प्रे का इस्तेमाल हो रहा था। शंभू बार्डर भारत-पाकिस्तान सीमा की मानिंद जंग का मैदान बना हुआ था। किसान पुलिस को अपने अन्नदाता होने की दुहाई देते हुए उन्हें लोकतांत्रिक हक देने की गुहार लगा रहा था। शर्मनाक है कि लोकसभा में सत्ताधारी दल जैसी जुबान बोल रही पुलिस उन्हें किसान मानने से ही इनकार कर रही थी।

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भारत की संसद में संविधान के पथ पर चलने की कसम खा रहे सत्ताधारी दल का चरित्र हरियाणा-पंजाब की सीमा पर बेनकाब हो रहा था। 14 दिसंबर की तारीख इसलिए भी याद की जाएगी। शंभू बार्डर करीब 2 घंटे जंग का मैदान बना रहा। सर्द मौसम में अनवरत अन्नदाता पर वाटर कैनन चलती रही। इसमें सारी हदें पार कर दी गईं। घग्घर नदी के गंदे केमिकल युक्त पानी की धार से लगातार किसानों को निशाना बनाया गया, जिससे बचने के लिए वह जूझ रहे थे। कुछ तस्वीरें तो विचलित करने वाली थीं। इतनी ठंड में पानी की बारिश उन पर की जा रही थी। भारी तादाद में आंसू गैस के गोले किसानों पर छोड़े गए, जिनसे किसान घायल होते रहे। उनके साथी इन घायल किसानों को उठाकर एंबुलेंस पर डालते रहे। एक वक्त ऐसा भी आया कि घायलों की तादाद एक साथ इतनी अधिक हो गई कि मौके पर एक भी एंबुलेंस नहीं बची। घायलों को ले जाने के लिए किसानों को अपनी गाड़ियां लगानी पड़ीं। मीडिया के लोग भी नहीं बख्शे गए। यहां तक कि खेतों में जमा किसानों पर भी आंसू गैस के गोले छोड़े गए। किसान-मजदूर संघर्ष मोर्चा के प्रमुख सरवन पंधेर ने कहा कि किसानों पर एक्सपायर्ड आंसू गैस के गोले दागे गए। तकरीबन दर्जन भर किसान घायल हैं, जिन्हें राजपुरा के अस्पताल ले जाया गया।

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एक किसान ने सल्फास निगल लिया। मिर्च स्प्रे का प्रयोग भी किसानों पर अनवरत किया गया। आश्चर्य यह कि पुलिस किसानों को किसान मानने के लिए ही तैयार नहीं थी। शायद इन आंदोलनकारी किसानों को लेकर सत्ताधारी दल की ओर से तय की परिभाषा से आगे जाने की वह जुर्रत भी कैसे कर सकती थी। पुलिस कह रही थी कि आप का मकसद दिल्ली बातचीत करने के लिए जाना नहीं है। आप का मकसद कानून-व्यवस्था को भंग करना है। पैदल दिल्ली जाना चाह रहे 101 निहत्थे किसान कैसे कानून-व्यवस्था के लिए समस्या बन सकते हैं, इस बात का जवाब उसके पास नहीं था। शंभू बार्डर पर राज्य और केंद्रीय पुलिस बलों की तैनाती बढ़ा दी गई है। घग्घर नदी के ऊपर पक्के सीमेंटेड बैरिकेड्स के साथ पुलिस के मोर्चे को भी और मजबूत कर दिया गया है। देश की सीमा की तरह शंभू बार्डर पर पंजाब-हरियाणा की सीमा को मजबूत किया गया है। चंद किसान किसी भी हालत में इन बेरिकेड्स पार नहीं कर सकते। इस हालत में भी कंपकपाती ठंड में बीजेपी सरकार की पुलिस की ओर से किसानों पर की गई बर्बरता की इंतहा किसी के गले नहीं उतर रही है।

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6 और 8 दिसंबर की तरह दोपहर 12 बजे 101 किसानों के जत्थे ने दिल्ली जाने का तीसरी बार प्रयास किया। पुलिस के पक्के मोर्चे के पास पहुंच किसानों ने उन्हें दिल्ली जाने देने की गुहार लगाई। पुलिस के अनुमति न होने के तर्क पर किसानों का कहना था कि दिल्ली व केंद्र की मोदी सरकार को दिल्ली आने की परमिशन देने के लिए उन्होंने आवेदन दिया हुआ है, लेकिन कोई जवाब नहीं आया है।

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पुलिस के कानून-व्यवस्था खराब होने के तर्क पर किसानों का सवाल था कि 101 किसान लॉ एंड ऑर्डर के लिए समस्या कैसे बन सकते हैं। क्या दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में 101 किसान अपने हक के लिए दिल्ली में प्रदर्शन नहीं कर सकते। आखिर दुनिया को पता तो चले कि मोदी सरकार हमारे साथ क्या कर रही है। इस देश में जमहूरियत के हालात क्या हैं। किसानों का कहना था कि हम ईमानदारी से शांतिपूर्वक आंदोलन करने वाले लोग हैं। हमारी खेती, किसानी व फसलों का सवाल है। मानो सरकार पुलिस की जुबान से वहां तर्क दे रही थी। पुलिस कहने लगी कि कोर्ट ने किसानों से बात करने के लिए हाई पावर कमेटी बनाई हुई है। इस पर किसानों का कहना था कि कोई भी हाई पावर कमेटी हमें फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी नहीं दे सकती। हमारी फसल मंडियों में आने पर कौड़ियों के भाव बिकती है। जब यही फसल बिचौलियों के पास चली जाती है तो कई गुणा दाम पर बिकती है। ये बढ़ा हुआ पैसा किसान के खाते में आना चाहिए। किसान पुलिस से यह कहते हुए गुहार लगा रहे थे कि आप भी किसानों के ही बच्चे हो। हमें दिल्ली जाने दो।

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शंभू बार्डर पर स्टेटस-को बनाए रखने की बात पर किसानों का कहना था कि अदालत ने दिल्ली जाने के लिए किसानों को 4 फीट रास्ता देने के लिए भी कहा था, जिसका जवाब पुलिस के पास नहीं था। जब यह बात हो रही थी तो बड़े पुलिस अधिकारियों के साथ डीसी भी वहां मौजूद थे। शर्मनाक यह कि उनकी मौजूदगी में ही किसानों पर आंसू गैस के गोले दागे जाने लगे। वाटर कैनन चलने लगी। अंत में तकरीबन 2 घंटे किसानों और पुलिस के बीच हुई जद्दोजहद के बाद तीसरे जत्थे को भी वापस बुला लिया गया। अब किसानों में गुस्सा बढ़ रहा है। खनौरी बार्डर पर मरण वृत पर बैठे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल की गंभीर होती स्थित आक्रोश का और सबब बन रही है। 14 दिसंबर को शंभू बार्डर पर किसानों की भारी तादाद में मौजूदगी इस बात की तस्दीक कर रही थी। किसी अनहोनी की आशंका किसानों में साफ दिख रही है। हरियाणा विस चुनाव जीतने के बाद विजय रथ पर सवार बीजेपी की सरकार यदि नहीं चेती तो बनने वाले हालात के लिए वही पूरी तरह जिम्मेदार होगी।            

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