लड़कियों की आजादी की पक्षधर हैं एएमयू गर्ल्स कॉलेज छात्र संघ की नवनिर्वाचित अध्यक्ष आफरीन फातिमा

एएमयू की पूर्व छात्रा शादाब बानो के मुताबिक हालात के साथ यहां पढ़ने वाली लड़कियों की सोच में भी बदलाव आया है। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ समय से यहां की लड़कियां बराबरी जैसे मुद्दों पर लड़ रही हैं। इसे सोच की क्रांति कह सकते हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
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आस मोहम्मद कैफ

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के अब्दुल्लाह गर्ल्स कॉलेज में हुए छात्र संघ चुनाव में इलाहाबाद यानी अब प्रयागराज की आफरीन फातिमा ने अध्यक्ष पद पर जीत हासिल की है। उन्होंने अपनी प्रतिद्वंद्वी सिदरा इशरत को 98 वोटों से हराया। गर्ल्स कॉलेज में लगभग 3 हजार छात्राएं है, जिनमें से 2 हजार ने मतदान में भाग लिया था। आफरीन फातिमा ने इस जीत के बाद अपने शपथ ग्रहण समारोह में कहा कि वह अपनी बहनों की उम्मीदों पर खरा उतरेंगी और तमाम मुद्दों पर काम करेंगी। आफरीन के अनुसार उसने छात्रसंघ का चुनाव मजबुरी में लड़ा, क्योंकि प्रबंधन में कोई सुधार नही हो रहा था। उन्होंने कहा कि चुनकर आ रहे लोग गलत नहीं थे, लेकिन वे दबाव नहीं बना पा रहे थे।

आफरीन महज 19 साल की हैं और बेहद मासूम दिखती हैं। लेकिन जैसा हम जानते हैं कि काबिलियत में मासूममियत कभी आड़े नहीं आती। इस बात पर वह भी कहती हैं, “ठीक है मैं बच्ची जैसी दिखती हूं, लेकिन मुझे एएमयू के वीमेन्स कॉलेज की अध्यक्ष मासूम चेहरे की वजह से नहीं चुना गया। मैंने हर दरवाजे पर दस्तक दी है, अपनी बहनों को अपना मकसद समझाया, उन्हें भरोसा दिया कि मैं उनके लिए लड़ना चाहती हूं। अक्सर यही होता आया है कि लड़कियां मैनेजमेंट के पास कोई बात लेकर गईं और बात नहीं मानी गई तो वापस आ गईं। मैं ऐसा नहीं करूंगी। मैं वहीं पालथी मारकर बैठ जाऊंगी। एक दिन, दो दिन या फिर सौ दिन अपनी मांग मनवा कर ही दम लूंगी। मैंने कहा है मेरे चेहरे की मासूमियत पर मत जाना, मैंने जो वादे किये हैं, मुझे वो पुरे करने हैं।"

गौरतलब है कि पिछले कुछ सालों से एएमयू के वीमेन्स कॉलेज में मुख्य कैंपस के लड़कों से कमतर नहीं होने का एक द्वंद चल रहा है। पिछले साल के चुनाव में बुलेट मोटरसाइकिल पर लड़कियों का चुनाव प्रचार भी इसी मुहीम का हिस्सा था। उस चुनाव में नबा नसीम छात्राओं के सातों दिन आउटिंग करने के मुद्दे के साथ चुनाव जीत गई थीं। अब कॉलेज की लड़कियां 3 दिन आउटिंग पर जा सकती हैं। आफरीन कहती हैं, “मैं बालिग हूं। यह कौन जानना चाहता है कि मैं बाहर क्यों जाना चाहती हूं!”

आफरीन कहती हैं कि उन्होंने चुनाव गैर-बराबरी के मुद्दे पर नहीं लड़ा है, लेकिन उनके पूरे चुनाव अभियान में उनका 'सौतेला' शब्द छाया रहा। प्रचार के दौरान वह कहा करती थीं, “सारी गलतियां मैनजमेंट की हैं। वो हमारे साथ सौतेला व्यवहार करती है। हमें कमतर समझा जाता है। मुशायरे में हमें आने की अनुमति नहीं होती। मुख्य कैंपस वाले जब चाहें, इम्तेहानों की तारीख बदलवा लेते हैं। कार्यक्रमों में चार लड़कियां तराना गाने के लिए बुला ली जाती हैं।” उन्होंने कहा, “हम चाहते हैं कि हमारे साथ वही बर्ताव हो, जो मुख्य कैंपस के छात्रों के साथ होता है। हम किसी से कम नहीं हैं। हमारे मुद्दे सुविधाओं को लेकर हैं।”

आफरीन की दोस्त इफतेशाम के मुताबिक आफरीन ने गर्ल्स कॉलेज की लड़कियों के दिल की बातों को समझा और निश्चित तौर पर वो सबसे योग्य उम्मीदवार थी। इफतेशाम ने कहा, “जाहिर है हम उनसे यहां होने वाले 'सौतेले' व्यवहार को खत्म करने की उम्मीद कर रहे हैं।”

विमेन्स कॉलेज में बीए (भाषा) की छात्रा आफरीन के पिता जावेद एक कारोबारी हैं। अब वो 'प्रयागराज' की रहने वाली हैं। प्रदेश में नाम बदलने की राजनीति से इतर वह कहती हैं कि देश में मुसलमानो को बेहद पीड़ादायक स्तिथि से गुजरना पड़ रहा है। उन्होंने कहा, “उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार हो रहा है। आखिर हमें सफाई क्यों देनी पड़ रही है।”

एएमयू की पूर्व में छात्रा शादाब बानो के मुताबिक हालात के साथ यहां पढ़ने वाली लड़कियों की सोच में भी बदलाव आया है। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ समय से यहां की लड़कियां बराबरी जैसे मुद्दों पर लड़ रही हैं। इसे सोच की क्रांति कह सकते हैं।

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Published: 14 Nov 2018, 6:59 PM