मोदी की राह पर नीतीश सरकार, विज्ञापन पर लुटाए कई सौ करोड़ रुपए, चुनावी साल में खर्च किए सबसे ज्यादा 

नीतीश कुमार की सरकार ने पांच सालों में करीब 500 करोड़ रुपए विज्ञापनों पर खर्च किए हैं। खास बात यह है कि नीतीश सरकार ने चुनावी साल में टीवी, रेडियो, न्यूज पेपर और दूसरे माध्यमों में विज्ञापन पर काफी ज्यादा खर्च किए।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने पिछले पांच सालों में विज्ञापन पर पैसे पानी की तरह बहाए हैं। नीतीश सरकार की मीडिया पर काफी मेहरमान रही है। बीते पांच सालों में नीतीश कुमार की सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया को रिकॉर्ड विज्ञापन दिए गए। ‘द वायर’ सूचना के अधिकार के तहल मिली जानकारी के आधार पर रिपोर्ट छापी है, जिसमें कहा गया है कि नीतीश कुमार की सरकार ने पांच सालों में करीब 500 करोड़ रुपए विज्ञापनों पर खर्च किए हैं। खास बात यह है कि नीतीश सरकार ने चुनावी साल में टीवी, रेडियो, न्यूज पेपर और दूसरे माध्यमों में विज्ञापन पर काफी ज्यादा खर्च किए।

आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक कांग्रेस और आरजेडी के साथ महागठबंधन वाली नीतीश सरकार ने 2014-15 में विज्ञापन पर करीब 84 करोड़ रुपए खर्च किए थे। वहीं 2015-16 में नीतीश सरकार ने विज्ञापन पर करीब 99 करोड़ रुपए खर्च किए। जबकि इसके अगले वित्त वर्ष (2016-17) में विज्ञापन पर लगभग 87 करोड़ रुपए खर्च किए गए। वित्त वर्ष 2017-18 में भी विज्ञापन पर करीब 93 करोड़ रुपए खर्च कर दिए गए। वहीं 2018-19 में विज्ञापनों की खर्च सीमा ने बाकी वर्षों के रिकॉर्ड तोड़ डाले। जेडीयू और बीजेपी की साझा सरकार ने चुनावी साल में मीडिया के लिए खजाने खोल दिए। टीवी, रेडियो और न्यूज पेपर में विज्ञापन करीब 134 करोड़ रुपए का विज्ञापन दिया।

बता दें कि बिहार में एनडीए की सरकार आने के बाद विज्ञापनों पर किए जाने वाले खर्चे काफी बढ़ गए। 2010 के बाद मीडिया पर काफी दरियादिली दिखाई है। इसके पहले 2010 के मिले एक आरटीआई में बताया गया कि 2000-01 वित्त वर्ष में बिहार सरकार ने मीडिया को 4.96 करोड़ रुपए का विज्ञापन दिया। वहीं, 2001-02 में यह सीमा 4.89 करोड़ रुपये थी। नीतीश कुमार के पहले वाली सरकार (राबड़ी देवी के नेतृत्व वाली आरजेडी की सरकार) के कार्यकाल (2000-01 से 2004-05) में विज्ञापन पर कुल 23.48 करोड़ रुपये खर्च किए गए। अगर इसकी तुलना वर्तमान में पांच साल के 500 करोड़ रुपये से करें तो यह आंकड़ा बेहद ही मामूली है। इसका मतलब यह है कि मीडिया के ऊपर विज्ञापनों की मेहरबानी काफी ज्यादा रही है।

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