बिहार: मधुबनी में जमीन अधिग्रहण के दस्तावेज नहीं दे पा रही नीतीश सरकार, गरीबों के घर-जमीन दांव पर

तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट के हस्ताक्षर के साथ मौजूद नक्शे के अलावा बिहार सरकार के पास कोई सबूत नहीं है कि उसने 1972 में मधुबनी के 5 पंचायतों में फैली जमीन का अधिग्रहण किया था और उसकी रकम चुकाई थी।

फोटो: नवजीवन
फोटो: नवजीवन
user

विक्रांत झा

तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट के हस्ताक्षर के साथ मौजूद एक नक्शे के अलावा बिहार सरकार के पास इस बात का कोई सबूत नहीं है कि उसने 1972 में मधुबनी के 5 पंचायतों में फैली जमीन का अधिग्रहण किया था और उसकी रकम चुकाई थी। जब उन्हें सबूत दिखाने को कहा गया तो उन्होंने दावा किया कि सारे रिकार्ड 2012 में भीड़ द्वारा लगाई गई आग में जल गए। राष्ट्रीय उच्चमार्ग 104 को विस्तृत करने का काम इस गतिरोध की वजह से रुका हुआ है जो शिवहर, सीतामढ़ी, जयनगर और नरहिया को 179.95 किलोमीटर लंबे सड़क से जोड़ती है। प्लॉट संख्या सहित जारी की गई गजट अधिसूचना को 2 बार संशोधित करना पड़ा जब से कमर्शियल और आवासीय इलाके को कृषि भूमि का तरह दिखाया गया है। 2015-16 में जब इसकी प्रक्रिया और इसे लेकर प्रतिरोध चल रहे थे तो अधिकारियों ने पहले दावा किया कि 1972 में पहली बार जमीन का अधिग्रहण किया गया था।

बिहार: मधुबनी में जमीन अधिग्रहण के दस्तावेज नहीं दे पा रही नीतीश सरकार, गरीबों के घर-जमीन दांव पर

5 गांवों के कई दलित और महादलित परिवारों समेत 100 से ज्यादा परिवार इससे प्रभावित होने वाले हैं। सिर्फ पदमा में 20 दलित और महादलित परिवारों को इससे नुकसान होगा। इनमें से ज्यादातर के पास अपने घर के अलावा कोई और जमीन नहीं है। वे कैसे एक नए घर का निर्माण करेंगे? वे कैसे जमीन खरीदेंगे?

जुगल किशोर झा ने कहा, “मेरे पिता का निधन 1972 से पहले ही हो गया था और मैं ही पूरे परिवार को चलाता था। अगर उन्होंने हमें पैसे दिए थे तो उनके पास मेरे हस्ताक्षर होने चाहिए थे, जो उनके पास नहीं हैं।” उन्हें संदेह है कि नौकरशाही इस मामले को उलझा रही है कि सड़क के किनारे की जमीन को खोदने के लिए मुआवजे के तौर पर उस जमीन के लिए कोई रकम दी गई थी। मिथिलेश झा ने बताया, “क्या सिर्फ एक कार्यालय में जमीन से जुड़े रिकार्ड रखे जाते हैं? निश्चित रूप से राष्ट्रीय उच्चमार्ग विभाग, राजस्व कार्यालय और जिला प्रशासन के पास इसकी प्रति होनी चाहिए।” नाम नहीं बताने की शर्त पर एक अन्य ग्रामीण ने कहा, “जब वे सूची को सुधार रहे थे तो हमें इसके लिए रिश्वत देनी पड़ी कि हमारे कमर्शियल जमीन को कृषि भूमि के तौर पर नहीं, बल्कि कमर्शियल जमीन की श्रेणी में रखें।”

फोटो: नवजीवन
फोटो: नवजीवन
एक प्रमुख अखबार में प्रकाशित गजट (बाएं); इस मामले में मिली आरटीआई प्रतिक्रिया (दाएं)

जब नवजीवन ने स्थानीय भूमि अधिग्रहण अधिकारी मो. अतीकुद्दीन से यह पता करने के लिए संपर्क साधा कि क्या उनके पास जमीन अधिग्रहण के सबूत हैं तो उनका जवाब था, “बिल्कुल हैं, यह कार्यपालक अभियंता, सीतामढ़ी के पास हैं।” सीतामढ़ी के कार्यपालक अभियंता प्रभा शंकर कोकिल ने कहा, “भूमि अधिग्रहण विभाग के पास जरूर सबूत होगा क्योंकि उन्होंने ही जमीन का अधिग्रहण किया था। हमारे पास सिर्फ एक नक्शा है जो उन्होंने हमें दिया है और उस पर जिलाधिकारी के हस्ताक्षर हैं, इसलिए हमें भरोसा है कि अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। हमें दिल्ली से एक पत्र मिला है कि गांव वालों को क्यों नहीं अधिग्रहण का प्रमाण दिखाया जा रहा है। निश्चित तौर पर गांव वालों को मुआवजा दिए जाने का प्रमाण मिलना चाहिए।”

सैकड़ों गांव वाले इस खतरे को झेल रहे हैं कि कभी भी उनके घर को तोड़ा जा सकता है और उनकी जमीन छिन सकती है। और वह भी बिना किसी मुआवजे के। एक गांव वाले का कहना है, “हम में से कितने लोग नया घर बना पाने की हैसियत रखते हैं?” गांव वालों का कहना है कि 1972 के आसपास एक सर्वेक्षण हुआ था, लेकिन सरकार ने राज्य की भूमि पर सर्वेक्षण में कोई जिक्र नहीं किया और किसान और दूसरे पट्टेदार लगातार कर देते रहे। क्या वे सरकार को उस जमीन का कर चुकाते रहे जो सरकार की थी। सरकार के कर लिया ही क्यों? इसका अभी तक कोई जवाब नहीं है।

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia


Published: 05 Dec 2017, 7:56 PM