मोदी सरकार का मूलमंत्र- विपक्ष हो या कोई असहमति जताने वाला, किसी की आवाज नहीं निकलने दी जाएगी

देश में ऐसा बहुत कुछ हो रहा है जिसे देखते हुए कहा जा सकता है कि इनके पीछे राजनीत है। इस समय देश में ऐसा माहौल है जिसमें विरोधियों और असहमति के स्वर को दबाने के लिए सरकारी तंत्र को हथियार बनाया जा रहा है। इसे समझने के लिए कुछ ताजा उदाहरण ही काफी हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया
user

नवजीवन डेस्क

डी के शिवकुमारः दक्षिण में कांग्रेस के संकटमोचक माने जाने वाले डीके शिवकुमार पहली बार मोदी सरकार के निशाने पर तब आए जब उन्होंने 2018 में कांग्रेस-जेडीएस सरकार को अस्थिर करने की बीजेपी की कोशिशों पर पानी फेर दिया। शिवकुमार के खिलाफ कर अनियमितताओं, अवैध खनन, हाउसिंग स्कैम वगैरह के मामले दर्ज किए गए हैं। हाल ही में ईडी ने उनसे दिल्ली में पूछताछ की। उन्हें दिल्ली बुलाया गया और फिर तीन दिन की पूछताछ के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। सरकार का आरोप है कि आयकर विभाग को उनकी करोड़ों की अघोषित संपत्ति का पता चला है।

पी चिदंबरमः आईएनएक्स मीडिया मामले में चिदंबरम की भूमिका विदेशी निवेश संवर्द्धन बोर्ड (एफआईपीबी) की मंजूरी में कथित अनियमतता को लेकर है। यह मामला एक दशके से भी पुराना है। इस मीडिया वेंचर का स्वामित्व पीटर मुखर्जी और उनकी पत्नी इंद्राणी मुखर्जी के पास है। मार्च, 2007 में आईएनएक्स मीडिया ने मॉरीशस के तीन अनिवासी भारतीय निवेशकों के पक्ष में इक्विटी शेयर जारी करने की अनुमति के लिए एफआईपीबी से संपर्क किया। दो माह बाद उसे विदेशी निवेश लेने की मंजूरी मिल गई, लेकिन सहयोगी इकाई आईएनएक्स न्यूज प्रा. लि. में विदेशी निवेश लेने की अनुमति नहीं मिली।

सीबीआई ने मई 2017 में कंपनी, इसके निदेशकों और अन्य संबद्ध पक्षों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जिसके मुताबिक आईएनएक्स मीडिया ने जान-बूझकर अनुमति की शर्तों का उल्लंघन करते हुए आईएनएक्स न्यूज प्रा. लि. में विदेशी निवेश ले लिया। कंपनी ने अगस्त, 2007 से मई, 2008 के बीच 800 के प्रीमियम पर विदेशी निवेशकों को शेयर जारी कर 305 करोड़ से अधिक की राशि प्राप्त की। विदेशी कंपनियों ने 862.31 रुपये की दर से शेयर खरीदे। सीबीआई की इस एफआईआर में पी चिदंबरम का नाम नहीं था।

इसके बाद ईडी ने 2018 में आईएनएक्स मीडिया और संबद्ध पक्षों के खिलाफ 2018 में मनी लॉंड्रिंग का केस दर्ज किया। गौरतलब है कि यह पी चिदंबरम ही थे जिन्होंने आईएनएक्स मीडिया के कर्मचारियों द्वारा कंपनी के खिलाफ सूचना प्रसारण मंत्रालय को दी गई शिकायत की जांच सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस से कराने को कहा था। आर्थिक विभाग के सचिव डी. सुब्बाराव ने जांचकर्ताओं को बताया था, ‘कागजों पर सब कुछ ठीक था जिस कारण बोर्ड ने मामले को मंजूरी के लिए तत्कालीन वित्त मंत्री को भेजा।’

पी चिदंबरम के खिलाफ ईडी के केस में आरोप है कि पूर्व वित्तमंत्री ने एफआईपीबी से विदेशी निवेश की मंजूरी दिलाने के बदले अपने बेटे कार्ति चिदंबरम के साथ मिलकर मोटा पैसा बनाया और इस काम के लिए तमाम शेल कंपनियां खड़ी की गईं। ईडी का यह भी आरोप है कि चिदंबरम और कार्ति के 17 विदेशी खाते हैं जिसके जरिये घूस के पैसे को दुनिया भर की तमाम कंपनियों में लगाया गया।

अब सवाल उठता है कि अगर सीबीआई और ईडी के पास इतने ही पुख्ता सबूत हैं तो ये अदालत में पेश करने चाहिए थे। चिदंबरम किसी भी विदेशी खाते या किसी भी शेल कंपनी से जुड़े होने से इनकार करते रहे हैं और उनके वकीलों ने बार-बार जांच एजेंसियों को एक भी ऐसे खाते की जानकारी देने की चुनौती दी है, लेकिन अब तक ऐसी कोई जानकारी नहीं दी गई। ऐसे में, मामला राजनीतिक बदले का लगता है। यहां गौरतलब है कि 2010 में जब चिदंबरम गृह मंत्री थे तब अमित शाह को सोहराबुद्दीन फर्जी एनकाउंटर मामले में सीबीआई ने गिरफ्तार किया था।


शशि थरूरः हाल ही में दिल्ली पुलिस ने कोर्ट में दलील दी है कि अपनी पत्नी सुनंदा पुष्कर के मौत प्रकरण में कांग्रेस सांसद शशि थरूर के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया जाना चाहिए। सरकारी वकील अतुल श्रीवास्तव ने कथित तौर पर अदालत से अनुरोध किया है कि, ‘आरोपी (थरूर) के खिलाफ धाराओं 498-ए (पति अथवा उसके परिवार द्वारा किसी महिला के खिलाफ क्रूरता करना), 306 (खुदकुशी के लिए उकसाने) या 302 (हत्या) के तहत आरोप तय किए जाएं।’ उन्होंने अदालत में कहा कि बयानों के फॉरेंसिक विश्लेषण से पता चलता है कि सुनंदा, शशि थरूर के साथ तनावपूर्ण रिश्तों की वजह से अत्यधिक व्यथित थीं। उन्हें महसूस हो रहा था कि वैवाहिक जीवन में उनके साथ धोखा हुआ और इसी वजह से उन्होंने कई दिनों से खाना नहीं खाया था। इसके अलावा मृत्यु से पहले उनमें अपना जीवन खत्म करने के भाव पैदा हो गए थे।

मामले में थरूर की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विकास पहवा ने कहा, ‘जो आरोप लगाए जा रहे हैं, वे निरर्थक और तथ्यहीन हैं।’ पहवा ने कोर्ट को बताया कि अभियोजन पक्ष तथ्यों को कहीं-कहीं से उठाकर अपने द्वारा लगाए आरोपों से इन्हें जोड़ने का प्रयास कर रहा है। जान-बूझकर शव का परीक्षण करने वाले विशेषज्ञों की इस राय को नजरअंदाज किया जा रहा है कि यह मामला न तो आत्महत्या का है और न ही हत्या का, बल्कि यह मौत अज्ञात जैविक कारणों से हुई। पहवा ने कहा, ‘अगर आत्महत्या का कोई सबूत नहीं तो आत्महत्या के लिए उकसाने का सवाल कहां से उठता है?’

गौरतलब है कि सुनंदा पुष्कर के दिल्ली के एक होटल में मृत पाए जाने के चार साल बाद मई 2018 में दिल्ली पुलिस ने शशि थरूर पर आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया था। तीन हजार पन्नों के आरोपपत्र में आईपीसी की धारा 306 और 498-ए के तहत आरोप लगाए गए थे। 51 वर्षीया सुनंदा पुष्कर को संदिग्ध परिस्थितियों में चाणक्यपुरी के लीला होटल में 17 जनवरी, 2014 को मृत पाया गया था। सुनंदा के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया और फिर पता चला कि उनकी मृत्यु अधिक नींद की गोली लेने के कारण हुई। लेकिन रिपोर्ट से यह साफ नहीं हो सका कि यह आत्महत्या का मामला था या नहीं। रिपोर्ट में सुनंदा की मृत्यु को असमान्य कहा गया और अनुमान जताया गया कि उन्होंने कई तरह की नशे की गोलियां खाने के साथ संभवतः शराब भी पी रखी थी।

गौरतलब है कि सुनंदा पुष्कर को ल्यूपस नाम की बीमारी थी जिसमें शरीर की प्रतिरोधक प्रणाली शरीर की स्वस्थ कोशिकाओं, उतकों और विभिन्न अंगों को ही नष्ट करने लगती है। इसका असर जोड़ों, त्वचा, रक्त कोशिकाओं से लेकर गुर्दे, मस्तिष्क, दिल और फेफड़े तक को प्रभावित कर सकती है। सुनंदा का उपचार केरल इंस्टीट्यूटऑफ मेडिकल साइंसेज में चल रहा था।


प्रणय रॉय और राधिका रॉयः पिछले माह सीबीआई ने 2007-09 के दौरान प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नियमों के उल्लंघन मामले में एनडीटीवी के प्रमोटर प्रणय रॉय, राधिका रॉय और अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया। एक अधिकारी के मुताबिक रॉय के अलावा एजेंसी ने तत्कालीन सीईओ विक्रमादित्य चंद्रा और अज्ञात सरकारी अधिकारियों के खिलाफ भी धोखाधड़ी, षड्यंत्र और भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया है। सीबीआई की टीम ने चंद्रा के घर पर छापा भी मारा।

सीबीआई की नजरें एनडीटीवी की लंदन में पंजीकृत सहयोगी कंपनी नेटवर्क पीएलसी (एमएनपीएलसी) में एनसीबीयू द्वारा किए गए निवेश पर है। सीबीआई का आरोप है कि एमएनपीएलसी ने 2009 में एफडीआई नियमों का उल्लंघन कर एफआईपीबी से मंजूरी पाई थी। एजेंसी के मुताबिक एमएनपीएलसी ने 16.343 करोड़ डॉलर की एफडीआई हासिल की जिसे जटिल लेनदेन के जरिये एनडीटीवी की सहयोगी कंपनियों में डाला गया। एनडीटीवी ने सख्त शब्दों में सीबीआई के इन आरोपों का खंडन किया है।

तृणमूल कांग्रेस नेताः बीजेपी की क्षेत्रीय महत्वाकांक्षा के रास्ते की रोड़ा बनी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी के नेताओं को विगत कई वर्षों से सीबीआई निशाना बना रही है। एजेंसी ने हाल ही में नारद स्टिंगऑपरेशन में तृणमूल के तीन वर्तमान सांसदों के खिलाफ मामला चलाने की अनुमति लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला से मांगी है। इसमें तृणमूल के एक पूर्व सांसद भी घेरे में हैं। यह पूर्व सांसद अभी ममता बनर्जी सरकार में मंत्री हैं। मिली जानकारी के मुताबिक सांसद सौगत राय, काकोली घोष दस्तीदार और प्रसून बनर्जी के अलावा बंगाल के परिवहन मंत्री सुवेंदु अधिकारी के खिलाफ मामला चलाने की अनुमति मांगी गई है।

वर्णन गोंजाल्वेजः जनवरी, 2018 में हुई भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में 61 वर्षिय वर्णन गोंजाल्वेज समेत छह लोगों को गिरफ्तार किया गया है। गोंजाल्वेज दलित-आदिवासियों के अधिकारों, भारत में जेलों की हालत पर लगातार लिखते रहे हैं और उन्होंने हमेशा सत्ता विरोधी रुख अपनाया। पुलिस का आरोप है कि गोंजाल्वेज ने 31 दिसंबर, 2017 को एल्गार परिषद में भड़काऊ भाषण दिया जिसके कारण अगले दिन भीमा-कोरेगांव के आसपास जातीय हिंसा हुई। पुलिस परिषद के आयोजन में नक्सली भूमिका की जांच कर रही है। गोंजाल्वेज के वकील मिहिर देसाई ने हाल ही में हाईकोर्ट में कहा कि दूसरे लोगों के कंप्यूटर से मिले ईमेल और पत्रों के आधार पर उनके मुवक्किल के खिलाफ पूरा केस खड़ा किया गया है। इनमें से कोई भी ईमेल गोंजाल्वेज ने न तो लिखे और न ही उन्हें संबोधित थे। इस कारण उनके खिलाफ सीधे कोई आरोप नहीं बनता और उन्हें जमानत दी जानी चाहिए।

मामले में पुणे पुलिस की ओर से पेश वकील अरुणा पई ने माना कि गोंजाल्वेज के खिलाफ कोई इलेक्ट्रॉनिक सबूत नहीं मिला है, लेकिन कहा कि गोंजाल्वेज के पास से आपत्तिजनक सीडी और किताबें मिली हैं। गोंजाल्वेज के पास से मिली किताबों में से एक थी ‘वार एंड पीस इन जंगल महलः पीपुल, स्टेट एंड माओइस्ट’ जिसे लेकर सोशल मीडिया में हाल ही में खूब चर्चा हुई। बहरहाल, अदालत ने कहा कि पुलिस को अपनी बात के पक्ष में और सबूत देने होंगे, नहीं तो जमानत से इनकार का कोई कारण नहीं होगा।


आनंद ग्रोवर और इंदिरा जयसिंहः इंदिरा जयसिंह एक जानी-मानी वकील और ऐक्टिविस्ट हैं। उन्होंने समाज के दबे-कुचले लोगों की कानूनी मदद के लिए लॉयर्स कलेक्टिव नाम का एक एनजीओ बनाया। वह और उनके पति आनंद ग्रोवर सरकार के निशाने पर हैं। सीबीआई ने ग्रोवर पर विदेशी चंदा नियमन अधिनियम (एफसीआरए) के उल्लंघन के आरोप में उनके घर समेत एनजीओ के दिल्ली और मुंबई स्थित दफ्तरों पर छापे मारे। एफआईआर के मुताबिक लॉयर्स कलेक्टिव ने 2006-07 और 2014-15 के बीच गलत तरीके से 32.39 करोड़ की विदेशी सहायता ली।

तीस्ता सीतलवाड़ः देश के पहले अटार्नी जनरल एमसी सीतलवाड़ की पौत्री तीस्ता सीतलवाड़ वह शख्स हैं जिसे सरकार ने बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। तीस्ता का मुंह बंद करने के लिए सरकार ने उनके पति जावेद आनंद के खिलाफ एफसीआरए उल्लंघन समेत तमाम मामले दर्ज करा दिए। तीस्ता के खिलाफ फंड के दुरुपयोग का पहला मामला कथित तौर पर मोदी सरकार की शह पर गुलबर्गा सोसाइटी के दंगापीड़ितों द्वारा 2013 में सामने आया। उन पर दंगा पीड़ितों के लिए हासिल चंदे के दुरुपयोग का आरोप लगा। इस शिकायत पर क्राइम ब्रांच ने उनके खिलाफ मामला दर्ज किया। आज भी तीस्ता का मामला अदालत में चल रहा है और लोगों का मानना है कि उन्हें नरेंद्र मोदी के विरोध का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia


/* */