पूरे यूपी में पुलिस कार्रवाई में एक पैटर्न, केस अज्ञात के खिलाफ, पर उठाने की धमकी देकर हो रही वसूली

सरकारी विभाग से सेवानिवृत इंजीनियर रफी अहमद कहते हैं कि जुमे की नमाज के बाद शांति हो, इसके लिए अमन पसंद युवा पुलिस और राहगीरों को गुलाब के फूल दे रहे थे। दूसरे दिन अखबारों में खबर छप गई कि अमन पसंद लोग अपने भाइयों के गुनाहों की माफी मांग रहे थे।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया

संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शन के बाद पुलिस ने जिस तरह कार्रवाई की है, उसका एक खास पैटर्न दिखता है। पुलिस ने आम मुसलमानों के साथ पढ़े-लिखे हिंदुओं से लेकर फेरी लगाने वालों तक को आरोपी बना दिया है। गोरखपुर से लेकर वाराणसी तक पुलिस अज्ञात के खिलाफ मुकदमों में बार-बार इजाफा कर रही है, ताकि नकेल का पूरा अवसर रहे। इसके बहाने पुलिस पैसों की वसूली भी कर रही है- जब जिसे चाहो, उठाने की धमकी दो और हैसियत के अनुसार वसूल लो।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर में 20 दिसंबर को नखास चौक के मंगला वेडिंग सेंटर के ठीक सामने से जुमे की नमाज के बाद पत्थरबाजी हुई। इसके बाद करीब 4 घंटे तक पुलिस की लाठियां प्रदर्शनकारियों से लेकर राहगीरों तक पर बरसीं। पुलिस ने घटना के 9 दिनों बाद 150 अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया। पुलिस ने तीन दर्जन लोगों को विभिन्न धाराओं में जेल भेजा है। नगर निगम में डिप्टी मेयर रहे भोनू मुस्तफा के बेटे दानिश को भी आरोपी बनाया गया है। दानिश फिलहाल पुलिस हिरासत में नहीं है। डिप्टी मेयर का कहना है कि प्रदर्शन वाले दिन बेटा मौके पर नहीं था। पुलिस के पास कोई वीडियो फुटेज हो तो दिखाए। बेटा दोषी होगा तो वह खुद पुलिस को सौंप देंगे।

यहां पुलिस ने मदीना मस्जिद के मुतवल्ली परवेज को भी आरोपी बना दिया है। एसपी युवजन सभा के नगर अध्यक्ष शब्बीर कुरैशी के भाई तनवीर को भी पुलिस ने आरोपी बनाया है। उसकी तलाश में पुलिस ने घर का ताला तोड़ दिया और परिवार के लोगों को अपमानित किया। पेशे से पत्रकार परवेज के भाई मोहम्मद अफगान को पुलिस ने प्रदर्शन के दूसरे दिन हिरासत में लिया। तब वह बहन की शादी का कार्ड बांटने जा रहा था। परवेज ने पुलिस के आला अफसरों के सामने दलील रखी कि वीडियो फुटेज में भाई दिख रहा हो, तो उसे जेल भेज दीजिए, वरना 28 दिसंबर को होने वाली बहन की शादी में शामिल होने दीजिए। इसके बाद भी मोहम्मद अफगान को धारा 151 में चालान कर जेल भेज दिया गया।

पुलिस ने सीतापुर निवासी यासिन अली और रशीद अली का भी चालान किया है। ये दोनों फेरी लगाते हैं। स्थानीय लोगों ने दोनों का बेल बाॅन्ड तैयार कर लिया, पर प्रशासनिक अफसरों की दलील थी कि जब तक परिवार के सदस्य नहीं आएंगे, तब तक दोनों को नहीं छोड़ेंगे। पुलिस ने 80 से अधिक मोबाइल अपने कब्जे में ले रखा है। मुस्लिम बहुल इलाकों- खुनीपुर, खालेपुर, शेखपुर, मिया बाजार आदि से पुलिससिया उत्पीड़न के कई मामले सामने आ रहे हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि 20 से 22 दिसंबर तक पुलिस ने जबरदस्त उत्पीड़न किया।

गोरखपुर नगर निगम में पांच बार के पार्षद जियाउल इस्लाम कहते हैं किहमारे पूर्वज सेना में रहे हैं। भतीजा कर्नल है। वह कश्मीर में तैनात है। पर, हम जैसे देशभक्तपरिवार को संदेह की नजर से देखा जा रहा है। वोट बैंक की खातिर सरकार ने 1947 से भी खतरनाक विभाजनकारी रेखा खींच दी है। मुती-ए-बनारस अब्दुल बातिननोमानी भी कहते हैं किनागरिकता संशोधनकानूनदेश की विभाजनकारी शक्तियों को बढ़ावा देने वाला है। देश की अखंडता के लिए दी गई साझी शहादत, देश की समृद्धि के लिए अपनाई गई साझी विरासत के भी विरुद्धहै।


बनारस में भी यही सब

19 दिसंबर को वाराणसी के बेनियाबाग मैदान में हुए प्रदर्शन के बाद पुलिस ने 57 लोगों को दंगा वाली धाराओं में पाबंद किया है। गिरफ्तार लोगों में पर्यावरण प्रेमी दंपति रवि और एकता शेखर भी शामिल हैं। दंपति के जेल जाने के बाद उनका 8 महीने के मासूम बेटे चंपक का रो-रोकर बुरा हाल है। पुलिस ने वाराणसी के धनंजय त्रिपाठी, दिवाकर, रविशेखर, नंदलाल, अनूप श्रमिक आदि के खिलाफ भी गंभीर धाराओं में मामला दर्ज किया है। इनका कसूर सिर्फ इतना है कि वे लोकतांत्रित तरीके से नागरिक संशोधन कानून और एनआरसी का विरोध कर रहे थे। पुलिस ने 60 साल के ऊपर के वरिष्ठ नागरिक अहमद अंसारी, राजनाथ पांडे, फिरोज अहमद, छेदी लाल, अब्दुल मतीन को भी जेल में ठूंस दिया।

वहीं 80 साल की उम्र में गिरफ्तार हुए राजनाथ पांडेय की पत्नी बिस्तर पर हैं। वामपंथी नेता डाॅ. हीरालाल यादव कहते हैं कि ‘असहमति लोकतांत्रिक संविधान में हर नागरिक का मौलिक अधिकार है। शांतिपूर्वक तरीके से अपनी बात कहने वालों पर भी गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज करना दमन है।’ यह सब किसी एक या दो शहर का किस्सा नहीं है। मऊ में एक प्राइवेट स्कूल में शिक्षिका सना कहती हैं कि प्रदर्शन के नाम पर पुलिस अब निर्दोषों को मुकदमे में फंसा रही है। कहीं कोई सुनवाई नहीं है। जिन घरों में शादियां हैं, वहां के लोग भी पुलिस और कोर्ट का चक्कर लगा रहे हैं। मऊ एसपी की भाषा भी डराने वाली है। वह कहते हैं कि प्रदर्शन करने वाले अंजाम भुगतने को तैयार रहें।

मीडिया का रोल भी भेदभाव वाला

गोरखपुर में जिस नखास चौक के मंगला वेडिंग सेंटर के ठीक सामने 20 दिसंबर को पत्थरबाजी हुई, उसी चैराहे पर 27 दिसंबर को जुमे की नमाज के बाद अमनपंसद मुस्लिम युवा पुलिस वालों के साथ राहगीरों को गुलाब देकर मुंह मीठा करा रहे थे। उनका संदेश थाः आपस की कड़वाहट खत्म होनी चाहिए। वहां खड़े पीएसी के एक जवान ने कुछ पत्रकारों से बातचीत में कहा कि इस बार ये एक कंकड़ भी नहीं फेकेंगे, क्योंकि इनकी ठीक से कुटाई हुई है। जाहिर है, पुलिस के जवान की यह भाषा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बदला लेने वाले बयान से मेल खाती है।

सरकारी विभाग से सेवानिवृत इंजीनियर रफी अहमद कहते हैं कि जुमे की नमाज के बाद शांति हो, इसके लिए अमनपसंद युवा पुलिस और राहगीरों को गुलाब का फूल देकर शांति की अपील कर रहे थे। वह पुलिस को इस भरोसे के साथ गुलाब का फूल दे रहे थे कि अब किसी प्रकार का विवाद नहीं होगा। दूसरे दिन अखबारों में खबर छप गई कि अमनपसंद लोग अपने भाइयों के गुनाहों की माफी मांग रहे थे। रफी कहते हैं, “अखबार को तो निष्पक्ष होना चाहिए। शायद यही बड़ा कारण है कि मीडिया के प्रति अविश्वास का भाव चौतरफा है।”


पिछले दिनों प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू गोरखपुर में प्रदर्शन के बाद गिरफ्तार लोगों के परिजनों से मिलने पहुंचे तो इसकी झलक दिखी भी। वहां मौजूद बीटेक छात्र आफताब ने मीडिया के लोगों की तरफ मुखातिब होकर कहा कि गोदी मीडिया को गली में घुसने नहीं देना चाहिए। यहां कुछ पूछेंगे, शाम को कुछ और दिखाएंगे। इन्हें सिर्फ प्रदर्शनकारियों के पत्थर दिखते हैं। पुलिस की लाठियां और उत्पीड़न नहीं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने भी कहा कि 2007 में गोरखपुर से बलिया तक दंगे की आग में करोड़ों की संपत्ति बर्बाद हुई थी। इसकी भरपाई किससे होगी? जब मुख्यमंत्री बदला लेने- जैसे शब्दों का इस्तेमाल करेंगे तो पुलिस, प्रशासन को उत्पीड़न को लेकर शह मिलेगा ही। उन्होंने पूरे प्रकरण की न्यायिक जांच की मांग की।

ऐसा नहीं कि सिर्फ मुसलमान या राजनीति करने वाले ही ऐसी बातें कर रहे हैं। संविधान के प्रति संजीदा लोगों के सुर में भी विरोध है। गोरखपुर यूनिवर्सिटी में विधि विभाग के अध्यक्ष डाॅ. जितेन्द्र मिश्र कहते हैं कि संशोधित नागरिकता कानून पूरी तरह असंवैधानिक है। आजादी के बाद जो मुस्लिम पाकिस्तान गए, उन्हें आज भी दोयम दर्जे का नागरिक मानते हैं। यदि वे प्रताड़ना के शिकार हों तो उन्हें नागरिकता क्यों नहीं मिले? पाकिस्तान में खालिस्तान समर्थकों को क्या भारत सरकार सिर्फ शपथ पत्र के आधार पर नागरिकता दे देगी?

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