ऑपरेशन 136: भारत के बड़े मीडिया घरानों पर कोबरापोस्ट का विस्फोटक ‘स्टिंग’

शुक्रवार, 25 मई को खोजी पत्रकारिता से जुड़े न्यूज पोर्टल ‘कोबरापोस्ट’ ने यह दिखाने के लिए कई स्टिंग वीडियो डाले कि कैसे मीडिया घरानों के अधिकारी सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने वाले और विपक्षी नेताओं की आलोचना करने वाले कथ्य के बदले मिलने वाले फायदेमंद प्रस्ताव पर चर्चा कर रहे हैं।

फोटो: कोबरापोस्ट
फोटो: कोबरापोस्ट
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नवजीवन डेस्क

शुक्रवार, 25 मई को खोजी पत्रकारिता से जुड़े न्यूज पोर्टल ‘कोबरापोस्ट’ ने 30 से ज्यादा वीडियो अपलोड किए, जिनमें यह दिखाया गया है कि कैसे ज्यादातर बड़े मीडिया समूह सांप्रदायिक नफरत, विभाजनकारी एजेंडे को बढ़ावा देने और गैर-बीजेपी नेताओं का चरित्रहनन करने के लिए दिए गए फायदेमंद विज्ञापन प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए सहजता के साथ तैयार थे।

वीडियो दिखाए जाने के खिलाफ दैनिक भास्कर द्वारा दिल्ली हाई कोर्ट से निषेधाज्ञा लेने के बाद ‘स्टिंग’ ऑपरेशन के दूसरे हिस्से को डाला गया। कोबरापोस्ट के यूट्यूब चैनल ने शुक्रवार को दैनिक भास्कर से जुड़े हिस्से को नहीं डाला।

लेकिन पोर्टल ने ऐसे कई चकित करने वाले वीडियो डाले हैं जिनमें खुद को बड़ा विज्ञापनदाता बताने वाले गुप्त रिपोर्टर की बड़े मीडिया समूहों के अधिकारियों के साथ बातचीत को दिखाया गया है। इनमें टाइम्स ऑफ इंडिया, हिन्दुस्तान टाइम्स, द न्यू इंडियन एक्सप्रेस, जी समूह, एबीपी न्यूज, टीवी 18, एबीएन आंध्र ज्योति, दिनामलार, जागरण समूह, ओपेन पत्रिका, लोकमत, सन समूह और बिग एफएम के नाम शामिल हैं।

कोबरापोस्ट द्वारा प्रकाशित वीडियो की प्रामाणिकता की पुष्टि नवजीवन नहीं कर सकता, जिनमें गुप्त रिपोर्टर पुष्प शर्मा ने खुद को ‘प्रचारक’ बताया है और ‘आचार्य अटल’ के रूप में अपना परिचय दिया है। उनसे टाइम्स ऑफ इंडिया के एमडी समेत कई बड़े मीडिया घराने के अधिकारी बात करने को तैयार हो गए।

खुद को श्रीमद् भगवत गीता प्रचार समिति नाम के संगठन का प्रतिनिधि बताने वाले प्रचारक को सांप्रदायिक और एकतरफा एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए विज्ञापन और कार्यक्रम प्रायोजित करने के नाम पर सैंकड़ों करोड़ रुपए देने का प्रस्ताव देते हुए दिखाया गया है।

शर्मा ने सुझाव दिया कि इस अभियान को दो चरणों में पूरा किया जा सकता था। पहले चरण में एक अनुकूल माहौल तैयार किया जाना था। इसके लिए धार्मिक विमर्शों, मिथकीय कार्यक्रमों की मदद लेनी थी और साथ-साथ राहुल गांधी, अखिलेश यादव, मायावती जैसे विपक्षी नेताओं का मजाक उड़ाया जाना था और जब जरूरत पड़ने पर उनका चरित्रहनन किया जाना था। दूसरे चरण में, मतदाताओं के सामने ज्यादा सीधी अपील रखी जानी थी। इसके लिए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, विनय कटियार और उमा भारती जैसे कट्टर नेताओं के भाषणों को प्रमुखता देनी थी।

कई मार्केटिंग अधिकारी और यहां तक कि टाइम्स ऑफ इंडिया के प्रबंध निदेशक विनीत जैन तक इन प्रस्तावों को स्वीकार करते हुए दिखाए गए हैं। उनमें से कई तो पैसे नकद में लेने के लिए तैयार थे। टाइम्स ऑफ इंडिया के निदेशक विनीत जैन और कार्यकारी अध्यक्ष संजीव शाह को यह इशारा करते हुए दिखाया गया है कि विज्ञापनदाता अपना काम कराने के लिए ‘अंगदिया’ की सेवाएं ले सकते हैं, “और भी बिजनेसमैन होंगे जो हमें चेक देंगे, आप उन्हें कैश दे दो।” गुजराती में हवाला ऑपरेटर्स को अंगदिया कहा जाता है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस अभियान को चलाने के लिए 1000 करोड़ रुपए मांगे।

हिन्दुस्तान टाइम्स मीडिया के सह उपाध्यक्ष अवनीश बंसल यह कहते हुए सुने जा सकते हैं, “आप दो तरीकों से हमला कर सकते हैं; पहला मीडिया हाउस से जुड़कर; तो आप अगर कुछ करोड़ रुपए देकर अपने बारे में सकारात्मक बातें कराना चाहते हैं तो मेरी संपादकीय टीम दबाव में रहेगी और नकारात्मक नहीं हो पाएगी...दूसरा यह कि अगर आप किसी प्रतिष्ठित पीआर एजेंसी को ढूढ़ लें तो वे रिपोर्टर को नियंत्रित कर सकती हैं क्योंकि वे खबरों का स्त्रोत होते हैं।

एक अलग मुलाकात में हिन्दुस्तान टाइम्स मीडिया के एक दूसरे अधिकारी ने यह आश्वासन दिया कि कांग्रेस-शासित कर्नाटक में किसानों की आत्महत्या और आर्थिक संकट को चुनाव के दौरान बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जाएगा।

पश्चिम बंगाल और त्रिपूरा के एक-एक अखबार ने बिकने से मना कर दिया

इस फायदेमंद विज्ञापन प्रस्ताव को पश्चिम बंगाल और त्रिपूरा के एक-एक अखबार ने मना कर दिया। आशीष मुखर्जी नाम के एक बंगाली दैनिक ‘वर्तमान’ के वरिष्ठ महाप्रबंधक ने इस प्रस्ताव को तुरंत ही ठुकरा दिया जैसे ही वह उनके सामने रखा गया। उन्होंने साफ-साफ उस ‘अंडरकवर’ रिपोर्टर को कह दिया कि विभाजनकारी और नफरत फैलाने वाली चीजें नहीं प्रकाशित की जाएंगी। जब प्रस्ताव की रकम को 1 करोड़ से बढ़ाकर 10 करोड़ कर दिया गया, तब भी उन्होंने अपनी बात से पीछे हटने से मना कर दिया।

त्रिपूरा के अगरतला में ‘दैनिक संबाद’ से जुड़े एक अधिकारी ने भी इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया। खुद को श्रीमद् भगवत गीता प्रचार समिति का बताने वाले प्रचारक से उन्होंने कहा, “हमारी नीति बहुत साफ है। हम धार्मिक विज्ञापन प्रकाशित नहीं करते।”

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