भारतीय सिनेमा को संवारने में पंडित नेहरू की अहम भूमिका रही, उनकी दूरदृष्टिता से ही शिखर पर पहुंचा फिल्म जगत

जवाहरलाल नेहरू की कला, संस्कृति और साहित्य में बेहद रुचि थी। देश की बागडोर संभालने के साथ ही सिनेमा का विकास उनकी प्राथमिकताओं में शामिल हो गया। इस बात का प्रमाण यह है कि भारतीय सिनेमा को एक नई दिशा देने लिए उन्होंने 29 अगस्त,1949 को फिल्म इंक्वायरी कमेटी का गठन किया।

फोटो: सोशल मीडिया
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प्रदीप सरदाना

आज भारतीय सिनेमा की गूंज पूरे विश्व में है। भारत विश्व में सर्वाधिक फिल्म बनाने वाला देश तो बन ही गया है, साथ ही विश्व सिनेमा के मानचित्र में लगभग सभी देशों में भारतीय फिल्मों को भरपूर ख्याति, सम्मान और प्रशंसा मिल रही है। लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि भारतीय सिनेमा को शिखर तक पहुंचाने का सपना देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने देखा था। हम पंडित नेहरू के देश के लिए औद्योगिक और कृषि क्षेत्र में किए गए योगदान की चर्चा तो करते हैं, लेकिन सच यह भी है कि देश के साथ-साथ भारतीय सिनेमा को भी आधारभूत ढांचा देने में उनकी अहम भूमिका रही है। नेहरूजी ने भारतीय सिनेमा के सुधार और विकास के लिए जो योगदान दिया है वह अविस्मरणीय है। आज देश में सरकार द्वारा संचालित जितनी भी प्रमुख फिल्म संस्थाएं हैं या जो भी फिल्म समारोह हैं उनमें से अधिकांश की शुरुआत पंडित नेहरू ने अपने कार्यकाल में कर दी थी।

बड़ी बात यह भी है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जैसे ही पंडित नेहरू ने प्रधानमंत्री के रूप में देश की बागडोर संभाली तभी से देश के सिनेमा का विकास उनकी प्राथमिकताओं में शामिल हो गया था। इस बात का प्रमाण यह है कि भारतीय सिनेमा को एक नई दिशा देने लिए उन्होंने 29 अगस्त, 1949 को एक फिल्म इंक्वायरी कमेटी का गठन किया। इस कमेटी के अध्यक्ष एस. के. पाटिल थे और इसके सदस्यों में फिल्म क्षेत्र के दो बड़े नाम वी. शांताराम और बी.एन. सरकार थे। प्रभात फिल्म कंपनी और राजकमल मंदिर जैसे दो बड़े फिल्म प्रोडक्शन हाउस के संस्थापक शांताराम तब तक अभिनेता के रूप में भी कई फिल्में कर चुके थे, साथ ही जब वह इस कमेटी के सदस्य बने तब तक ‘अयोध्याचा राजा’, ‘दुनिया न माने’, ‘आदमी’,‘पड़ोसी’, ‘शकुंतला’ और ‘डॉ. कोटनीस की अमर कहानी’ जैसी फिल्में बनाकर देश-विदेश में अच्छी प्रतिष्ठा पा चुके थे। उधर बी.एन. सरकार बांग्ला सिनेमा के एक बड़ा नाम थे, जो उस दौर की विख्यात फिल्म कंपनी न्यू थिएटर्स के संस्थापक थे। कहने का मतलब यह है कि पंडित नेहरू ने इस बड़े काम के लिए बड़े, योग्य और अनुभवी फिल्मकारों को चुना था।


फिल्म इंक्वायरी कमेटी ने 1951 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी। जिसमें सेंसर बोर्ड से लेकर सिनेमा के सुधार, विकास और उसे दुनिया भर के दर्शकों तक पहुंचाने को लेकर विभिन्न सुझाव दिए गए थे। कुछ सुझावों को तो तत्काल लागू करने के निर्देश दे दिए गए। उसके बाद भारतीय सिनेमा की तस्वीर तेजी से बदलनी शुरू हो गई। इसके कुछ समय बाद तो हमारे सिनेमा को पंख लग गए। जिससे भारतीय फिल्में सात समंदर पार पहुंचकर दर्शकों के दिलों में अपनी जगह बनाने में समर्थ हो गईं।

भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह

पंडित नेहरू की कला, संस्कृति और साहित्य में गहरी रुचि थी। वह चाहते थे कि भारतीय संस्कृति दुनिया तक पहुंचे और विभिन्न देशों की संस्कृति को भारतीय जानें। इस कार्य में सिनेमा निश्चय ही सबसे सशक्त भूमिका निभा सकता है। इसलिए कमेटी की सिफारिश पर देश में 1952 में ‘भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह’ के आयोजन की शुरुआत की गई। सन् 1952 के दौर तक विश्व में वेनिस, कांस, लोकार्नो और कार्लोवी वारी जैसे अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह मौजूद थे। लेकिन पूरे एशिया में तब तक कोई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह नहीं था। पंडित नेहरू ने व्यक्तिगत रुचि लेते हुए 24 जनवरी से 1 फरवरी 1952 के दौरान मुंबई में पहले भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह का आयोजन कराया, जो बाद में दिल्ली, चेन्नई, कोलकाता और त्रिवेन्द्रम में भी ले जाया गया। इस पहले समारोह में 23 देशों की 40 फीचर फिल्में और 100 लघु फिल्मों का प्रदर्शन हुआ था। समारोह में अमेरिका, ब्रिटेन, सोवियत संघ, जापान और इटली की फिल्में भी थीं। हालांकि दूसरे समारोह को आयोजित करने में लंबा समय लग गया, जो करीब 9 साल बाद 1961 में नई दिल्ली में आयोजित हो सका। यहां ये भी बता दें कि हमारे शुरू के ये दोनों फिल्म समारोह गैर-प्रतियोगी थे। लेकिन जब जनवरी 1965 में तीसरा समारोह दिल्ली में आयोजित किया गया तब से समारोह में प्रतियोगी खंड भी रखा जाने लगा। आज हमारे इस फिल्म समारोह की विश्व में धूम है और अब 20 नवंबर को 50वां फिल्म समारोह गोवा में आयोजित होने जा रहा है। समझा जा सकता है कि पंडित नेहरू की इस आयोजन को लेकर सोच कितनी दूर तक की थी, क्योंकि इस समारोह के कारण बरसों से दुनियाभर के फिल्मकार एक ही जगह पूरे विश्व की फिल्में देख पा रहे हैं। साथ ही एक ही मंच पर सभी फिल्मकार मिलकर फिल्मों को लेकर चर्चा करने के साथ एक दूसरे से बहुत कुछ सीख भी रहे हैं और सभी अपनी फिल्मों को अन्य देशों में प्रदर्शित कर व्यावसायिक लाभ भी प्राप्त कर रहे हैं।

राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और अन्य अहम कार्य

पंडित नेहरू ने देश में 1953 से राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों की भी स्थापना कर अच्छे सिनेमा के प्रोत्साहन के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण कदम उठाया। देश का यह अकेला फिल्म पुरस्कार समारोह है जहां संपूर्ण भारतीय सिनेमा की झलक और प्रतिनिधितत्व मिलता है। जबकि अन्य फिल्म पुरस्कार समारोहों में या तो हिंदी सिनेमा होता है या फिर क्षेत्रीय सिनेमा। इस राष्ट्रीय फिल्म समारोह के मंच से फिल्म कला की लगभग सभी विधाओं के हजारों लोग पुरस्कृत होकर यश और सम्मान पा चुके हैं। पंडित नेहरू फिल्में चाहे कभी-कभार देखते थे। लेकिन सिनेमा और सिने कलाकारों के महत्व को बहुत अच्छे से समझते थे। पृथ्वीराज कपूर, देविका रानी, चेतन आनंद और लता मंगेशकर सहित कई कलाकारों और फिल्मकारों को पंडित नेहरू बहुत सम्मान देते थे। पृथ्वीराज कपूर को तो पंडित नेहरू ने 1952 में राज्यसभा का सदस्य मनोनीत कर पहली बार सिनेमा को बड़ा सम्मान दिया। नेहरूजी बच्चों से बहुत प्यार करते थे। इसलिए उन्होंने 1955 में चिल्ड्रन फिल्म सोसाइटी का भी गठन कराया, जिससे बच्चों के लिए अच्छी फिल्म बनाकर उन्हें अच्छे संस्कार दिए जा सकें, जीवन मूल्यों की सीख दी जा सके। इसी समिति के माध्यम से बरसों से बच्चों की बेहतरीन फिल्मों का निर्माण और देश के कोने कोने में उनका प्रदर्शन हो रहा है। इसके अतिरिक्त 1964 में ‘फिल्म वित्त निगम’ की स्थापना भी नेहरू काल में हुई। नेहरू चाहते थे कि अच्छी और उद्देश्यपूर्ण पटकथा वाली जो फिल्में वित्तीय अभाव में साकार नहीं हो पातीं, उन्हें सरकार की ओर से वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जा सके। बाद में 1975 में जब राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम की स्थापना हुई, तो 1980 में फिल्म वित्त निगम का भी उसमें विलय कर दिया गया। लेकिन इस निगम के सहयोग से अब तक 200 से भी अधिक फिल्मों का निर्माण संभव हो सका है।


अपने निधन से करीब तीन महीने पहले पंडित नेहरू ने फरवरी 1964 में भारतीय राष्ट्रीय फिल्म संग्रहालय की स्थापना का सपना भी पूरा कर लिया था। नेहरू ने पुणे में फिल्म और टीवी प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना तो 1960 में ही कर दी थी। जिससे फिल्म क्षेत्र में आने वाले युवा सिनेमा के विभिन्न क्षेत्रों में तकनीकी ज्ञान के साथ सिनेमा के विभिन्न पहलुओं पर सलीके से शिक्षित हो सकें। लेकिन राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सिनेमा की विरासत को संरक्षित करने और फिल्म अनुसंधान आदि को प्रोत्साहित करने के लिए उन्होंने पुणे में भारतीय राष्ट्रीय फिल्म संग्रहालय की स्थापना कर जो महान कार्य किया उसकी जितनी प्रशंसा की जाय कम है। जवाहरलाल नेहरू साहित्य अकादमी और संगीत नाटक अकादमी की स्थापना के दौरान एक फिल्म अकादमी की भी अलग से स्थापना करना चाहते थे। लेकिन फिर उन्होंने एक ओर संगीत नाटक अकादमी के अंतर्गत ही 1959 में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय का गठन कर दिया। दूसरी ओर अकादमी के माध्यम से प्रति वर्ष फिल्म पर एक सेमिनार के आयोजन की भी इच्छा व्यक्त की। आज राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के माध्यम से थिएटर के साथ सिनेमा को भी कई श्रेष्ठ कलाकार मिल चुके हैं। फरवरी 1955 में अकादमी के पहले फिल्म सेमिनार के उद्घाटन पर नेहरू जी ने जो सपना देखा था, उस पर तब विश्वास करना कुछ मुश्किल सा था। लेकिन आज उनका वह कथन, वह सपना पूरी तरह साकार हो गया है। तब नेहरूजी ने कहा था- “मैं भारतीय फिल्मों का महान और भव्य भविष्य देखता हूँ। भारतीय फिल्में दुनिया भर में भीड़ से भरे सिनेमा घरों में दिखाई जाएंगी। हमारी ये फिल्में हमारे देश के लिए सिर्फ पैसा ही नहीं कमाएंगी, बल्कि सुंदरता, अच्छाई और सच के लिए मान सम्मान भी कमाएंगी। भारत विश्व में एक अलग और महत्वपूर्ण योगदान देगा...और मुझे पूरा विश्वास है कि यह जरूर होगा।”

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