पाकिस्तानी गोलों और बमबारी से बचने के लिये एक पुल की सख्त जरूरत

जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान से सटे अंतरराष्ट्रीय सीमा और चिनाब नदी के बीच स्थित परगवाल सेक्टर के लोग सीमा पार से होने वाली गोलीबारी के दौरान खुद को ‘आगे कुंआ और पीछे खायी’ जैसी स्थिति में फंसा हुआ पाते हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
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आशुतोष शर्मा

रविवार को दलीप सिंह के घर के चारों तरफ कई घंटों तक मोर्टार शेल की बारीश होती रही। खतरे की आशंकाओं के बावजूद, वह अपने परिवार को सुरक्षित ठिकाने पर नहीं ले जा सके थे। बाहरी दुनिया से उनके गांव को जोड़ने वाली एकमात्र सड़क पाकिस्तान से सटी अंतरराष्ट्रीय सीमा के पार से हो रही गोलीबारी की वजह से बंद हो गई थी, जो मुश्किल से वहां से एक किलोमीटर की दूरी पर है। दूसरी ओर भी एक किमी की दूरी पर बहने वाली विशाल चिनाब नदी ने उन्हें युद्ध जैसे हालात के बीच फंसा दिया है। 48 वर्षीय दलीप सिंह ने नवजीवन से अपने रौंगटे खड़े कर देने वाले अनुभव साझा करते हुए कहा, “वहां चारों तरफ धुंए और धूल के घने बादल थे। बमों के फटने की आवाजें कान फाड़ने वाली थीं। हर विस्फोट के साथ हमें भूकंप का एहसास हो रहा था। हमने बचने की हर उम्मीद छोड़ दी थी।”

उससे रविवार की रात पाकिस्तानी गोलीबारी में बीएसएफ के 2 जवानों की मौत के बाद परगवाल सेक्टर में बीएसएफ और पाकिस्तानी रेंजरों के बीच भीषण गोलीबारी शुरू हुई, जिसमें कम से कम 12 गांव वाले घायल हो गये। इसके अलावा गाड़ियों और घरों को भी भारी नुकसान हुआ और 25 से ज्यादा मवेशी छर्रे लगने से घायल हो गये, जिनमें से कुछ की बाद में मौत हो गई।

इस अस्थिर क्षेत्र के छह पंचायतोः सजवाल, गुड़ मनासा, राजपुरा पिंडी, परगवाल, ऊपरी परगवाल और भलवाल मुलू में फैले लगभग 15,000 निवासियों की सामूहिक विकट स्थिति को ‘आगे कुंआ, पीछे खाई’ का मुहावरा स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है। 1947 से यहां के लोग वैकल्पिक संपर्क के लिये एक पुल और युद्ध जैसे हालात में बचकर भागने के लिये कुछ मोटर नौकाओं की आस में जी रहे हैं। उनकी शिकायत है कि सुरक्षित मार्ग के नहीं होने की वजह से घायलों और बीमार ग्रामीणों को बचाने में बहुत देर हो जाती है। लोगों का कहना है, “पाकिस्तान के 4-5 सैनिक कभी भी महत्वपूर्ण माने जाने वाले माला बेला रोड पर कब्जा कर सकते हैं और किसी पुल के नहीं होने की स्थिति में इस द्वीप को शेष भारत से काट सकते हैं।"

गांव के नंबरदार बच्चन सिंह ने कहा, “पीडीपी-कांग्रेस सरकार के दौरान संजल और इंद्री-पट्टन के बीच पुल के लिये जगह की पहचान कर ली गयी थी। अगर यह पुल बन जाता है, तो यह न सिर्फ युद्ध जैसी स्थिति में स्थानीय लोगों को सुरक्षित निकलने का रास्ता मुहैया कराता, बल्कि सुरक्षा बलों को भी इसकी वजह से समय से मदद उपलब्ध हो पाती।”

स्थानीय विधायक कृष्ण लाल भगत ने दावा किया कि तय स्थान पर प्रस्तावित पुल के निर्माण के लिए केंद्र सरकार पहले ही 2.6 करोड़ रुपये आवंटित कर चुकी है और इसका निर्माण कार्य जल्द ही शुरू होने की संभावना है। सांसद जुगल किशोर शर्मा के साथ विधायक कृष्ण लाल भगत ने मंगलवार को गांव वालों से मुलाकात किया। उन दोनों को वहां के लोगों की नाराजगी का सामना करना पड़ा और उन्हें बीच में ही बैठक छोड़कर जाना पड़ा। शर्मा ने एक बुलेट प्रूफ एम्बुलेंस की जरूरत और स्थानीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को बेहतर किये जाने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा, “लोगों की शिकायतें सही हैं। मैंने उनके मुद्दों को विधानसभा में भी उठाया है और उम्मीद है कि उनके मुद्दे चरणबद्ध तरीके से हल हो जाएंगे।”

बुनियादी सुविधाओं की कमी

गांव के ही एक और निवासी 68 वर्षीय हरनाम सिंह मानहस बताते हैं, “सीमा पार से गोलीबारी के दौरान पूरा प्रशासन जड़ता में चला जाता है। घायल ग्रामीणों को स्थानीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में शायद ही कोई सुविधा मिलती है। अगर कोई जीवित बच पाता है, तो यह पूरी तरह से उसकी अच्छी किस्मत की वजह से होता है। पशु चिकित्सा सुविधाओं की कमी की वजह से घातक गोलीबारी के दौरान छर्रे लगने से घायल होने वाले मवेशियों की आमतौर पर मौत हो जाती है।”

इस बीच, निवासियों ने इस क्षेत्र को आधिकारिक तौर पर पिछड़ा घोषित करने की मांग शुरू कर दी है। दलीप सिंह कहते हैं, "हम मौत के साये तले रहते हैं। यहां पर शांतिपूर्ण और खुशहाल जीवन की कोई उम्मीद नहीं है। अगर सरकार हमारे क्षेत्र को पिछड़ा घोषित कर देती है, तो कम से कम हमारे बच्चों को निर्धारित कोटा के तहत उच्च शिक्षा और नौकरियां मिल सकेंगी। यह एकमात्र तरीका है, जिससे वे एक सुरक्षित और खुशहाल जीवन जी सकते हैं।"

नेशनल कांफ्रेंस के प्रांतीय अध्यक्ष देवेंद्र सिंह राणा ने आरोप लगाया कि केंद्र की बीजेपी सरकार की छाती पीटने वाली अंधराष्ट्रीयता ने सीमावर्ती इलाके में रहने वालों को गंभीर संकट में डाल दिया है।

गोलीबारी का सामना करने वाले परगवाल सेक्टर के लोगों से सोमवार को मुलाकात करने के बाद देवेंद्र राना ने कहा, “नियंत्रण रेखा और अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर पुंछ से लेकर कठुआ तक एक खून की लकीर है। रोज सीमा से सटे अग्रिम इलाकों के लोग और सैनिक मारे जा रहे हैं।”

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