कांग्रेस को एमपी, राजस्थान और छत्तीसगढ़ से दूर रखने के लिए मोदी-शाह ने लिखी है तेलंगाना की पटकथा

टीआरएस अध्यक्ष के चंद्रशेखर राव द्वारा विधानसभा भंग कर चुनावी समर मेंकूदना दरअसल बीजेपी की वह पटकथा है जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपीअध्यक्ष अमित शाह ने लिखा है। मकसद है कांग्रेस को ऐन राजस्थान,मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनावों के बीच दक्षिण के एक अहम प्रदेश में व्यस्त रखना।

फोटो : सोशल मीडिया
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उमाकांत लखेड़ा

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और उनके रणनीतिकारों को राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनावों के बीच दक्षिण के एक अहम प्रदेश में बेहद व्यस्त रखने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने तेलंगाना विधानसभा चुनावों की पटकथा तैयार की है।

आंध्र प्रदेश में सत्ताधारी तेलगु देशम पार्टी प्रमुख एन चंद्रबाबू द्वारा विशेष राज्य के दर्जे की मांग को लेकर चलाए जा रहे अभियान के डर से बीजेपी को आंध्र प्रदेश में भारी नुकसान होने का अंदेशा है। इसी नुकसान की भरपाई के लिए टीआरएस प्रमुख चंद्रशेखर राव पर डोरे डालकर उनकी पार्टी के साथ लोकसभा चुनाव में गठजोड़ की रणनीति को अमलीजामा पहनाया गया है।

तेलंगाना राष्ट्र समिति के अध्यक्ष व तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के साथ बीते दो माह में कम से कम तीन रणनीतिक बैठकें हुई हैं। इन बैठकों के दौरान राव को बीजेपी के एजेंडे से रूबरू कराया गया। अदरअसल विधानसभा चुनावों में टीआरएस का तेलंगाना में कांग्रेस से सीधा मुकाबला है। बीजेपी ने राव को समझाया है कि आंध्र के बंटवारे के बाद तेलंगाना में कांग्रेस सांगठनिक तौर पर पहले जैसी मजबूत नहीं रही। ऐसी सूरत में टीआरएस को लोकसभा के पहले ही विधानसभा चुनावों में उतरना ज्यादा फायदे का सौदा होगा।

राव को मनाने की रणनीति में शामिल रहे बीजेपी के एक नेता ने कहा कि तेलंगाना में विधानसभा चुनाव कराने के लिए उन्हें तैयार करना कुछ कठिन काम था। वजह यह थी कि पिछले एक साल से राव और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी कांग्रेस और बीजेपी के खिलाफ एक संघीय मोर्चा बनाने की कवायद में जुटे थे। लेकिन पिछले कुछ माह से राव ने लोकसभा आम चुनाव में बीजेपी के साथ गठबंधन में आने के संकेत दिए।

119 विधानसभा सीटों वाले तेंलगाना में करीब 30 सीटें ऐसी हैं, जिन पर अल्पसंख्यक मुसलिम वोट हार जीत को प्रभावित करते हैं। फार्मूले के मुताबिक तेलंगाना में बीजेपी भी अलग से मैदान में उतरेगी। टीआरएस मुसलिम वोटों को अपने साथ लामबंद रखने के लिए चुनाव में दिखावे के लिए बीजेपी के खिलाफ भी खुलकर अभियान चलाएगी, लेकिन चुनाव मैदान में दोनों के बीच कई अहम और कांटे की सीटों पर दोस्ताना मुकाबला रहेगा। बताया गया है कि बीजेपी और टीआरएस के बीच यह भी समझौता हुआ है कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के मजबूत उम्मीदवारों की घेराबंदी के लिए बीजेपी और टीआरएस मिल जुलकर रणनीति बनाएंगे ताकि कांग्रेस का संख्याबल कम करके उसे सत्ता से बहुत दूर रखने में कामयाबी हासिल हो सके।

दूसरी तरफ चंद्रशेखर राव बीजेपी को यह समझाने में कामयाब हुए हैं कि उनके साथ लोकसभा चुनावों में तो गठबंधन हो सकता है लेकिन विधानसभा चुनावों में वे बीजेपी और कांग्रेस से समान दूरी बनाकर चुनाव लड़ेंगे, ताकि वे मुसलिम क्षेत्रों में भी अपने उम्मीदवार जितवा सकें। टीआरएस को भरोसा है कि विधानसभा में दोबारा जीतने के बाद लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ बीजेपी से दोस्ती की तिकड़म अधिक सीटें जीतने में कारगर साबित होगी।

गौरतलब है कि तेलंगाना में लोकसभा की 17 सीटें हैं। बीजेपी को इस बात की आस बंधी है कि लोकसभा चुनाव में टीआरएस के साथ गठबंधन से दक्षिण के इस अहम प्रदेश में कांग्रेस की सीटों को कम करने में मदद मिलेगी। इस तरह कर्नाटक के बाद दक्षिण में तेलंगाना अब दूसरा ऐसा प्रदेश होगा, जहां बीजेपी को लोकसभा चुनाव में गठबंधन सहयोगी मिल चुका है।

दक्षिण भारत और बाकी गैर हिंदी प्रदेशों में बीजेपी के विस्तार की इस रणनीति को कई मुद्दों को ध्यान में रखते हुए अपनाया गया है। उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड की 134 सीटों पर बीजेपी की हालत बहुत पतली है। इन राज्यों में बीजेपी को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए ही उसने नए राज्यों में गठबंधन के जरिए लोकसभा में अपनी सीटें बढ़ाने और विपक्ष का संख्याबल कमजोर करने की रणनीति पर कुछ माह पहले से ही काम शुरू कर दिया। लोकसभा चुनाव के लिए ओडिशा में बीजू जनतादल और तमिलनाडु में अन्नाडीएमके को साधने की बीजेपी की कोशिशें इसी रणनीति का हिस्सा है।

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