छाती ठोक 24 घंटे बिजली का वादा तो पूरा नहीं कर पाए मोदी, लेकिन निजी कंपनियों के लिए जेब पर डाका जरूर डाल दिया

यूपीए सरकार में डिस्कॉम्स की माली हालत को देखते हुए उन्हें उबारने के लिए एक पैकेज दिया गया था। लेकिन मोदी सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया, बल्कि राज्यों से कहा कि वे डिस्कॉम्स का लोन अपने ऊपर लें और केंद्र के बताए फॉर्मूले पर चलें तो भविष्य में हालत सुधर जाएगी।

फोटोः सोशल मीडिया
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एस राहुल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में सत्ता संभालने के बाद वादा किया था कि लोगों को 24 घंटे और सस्ती बिजली मिलेगी। लेकिन 5 साल और 100 दिन से अधिक बीतने के बावजूद 24 घंटे बिजली तो नहीं ही मिल रही है, इसकी दरें भी बढ़ती ही जा रही हैं। अतिउत्साह में लिए गए मोदी सरकार के फैसलों का परिणाम अब राज्यों को भुगतना पड़ रहा है।

मोदी सरकार ने बिजली क्षेत्र में चल रही यूपीए सरकार की कई योजनाओं के नाम बदले और एक के बाद एक कई योजनाएं नए सिरे से शुरू कीं। वैसे, एक योजना ऐसी रही जो यूपीए कार्यकाल से अलग रही। इसे उदय यानी उज्जवल डिस्कॉम्स एश्योरेंस योजना नाम दिया गया। इसका मकसद बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम्स) की माली हालत सुधारना था। साल 2014-15 में सभी डिस्कॉम्स पर लगभग 4.3 लाख करोड़ रुपये का उधार था और ये लगभग 3.8 लाख करोड़ रुपये के घाटे में थीं। 5 नवंबर, 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में उदय को मंजूरी दी गई। उस समय बताया गया कि डिस्कॉम्स का उधार कम करने के लिए यह रामबाण योजना है। इससे न केवल डिस्कॉम्स की माली हालत सुधरेगी, बल्कि लोगों को भी 24 घंटे बिजली मिलने लगेगी।

वैसे, यूपीए सरकार में डिस्कॉम्स की माली हालत को देखते हुए उन्हें 1.9 लाख करोड़ रुपये का पैकेज दिया गया था। लेकिन मोदी सरकार की खासियत रही है कि केंद्र ने इसके लिए एक भी पैसा नहीं दिया, बल्कि राज्यों से कहा कि वे डिस्कॉम्स का लोन अपने ऊपर ले लें और उसके बाद केंद्र के बताए फॉर्मूले पर चलें तो आने वाले दिनों में बिजली की हालत सुधर जाएगी।

जिन राज्यों में गैर बीजेपी सरकारें थीं, उन्हें मनाने के लिए तत्कालीन बिजली मंत्री पीयूष गोयल ने भरोसा दिलाया था कि उदय में शामिल होने पर उन्हें केंद्र की दूसरी योजनाओं में वरीयता दी जाएगी और कई तरह के लाभ दिए जाएंगे। फॉर्मूले के तहत ऐसी कोई खास तकनीक भी नहीं बताई गई थी जिससे वकाई डिस्कॉम्स नुकसान की बजाय मुनाफा कमाने लगती। केंद्र का फॉर्मूला साधारण था कि बिजली चोरी रोकनी होगी, बिल वसूली बढ़ानी होगी और साथ ही, बिजली की दरें बढ़ानी होंगी। इसे सीधे तौर पर दर बढ़ाने की बजाय तर्कसंगत करना बताया गया था।


राज्यों पर असर

राजस्थान में तब वसुंधरा राजे की सरकार थी। वह केंद्र सरकार की उदय योजना में शामिल हो गई। उसने डिस्कॉम्स के कर्ज का 60 हजार करोड़ रुपये का भुगतान किया था। लेकिन, बीते 7 सितंबर, 2019 को राजस्थान के दौरे पर गए 15वें वित्तआयोग ने बैठक के दौरान कहा कि उदय योजना से जुड़ने के बाद राजस्थान की आर्थिक स्थिति गड़बड़ा गई है। इसी तरह उत्तर प्रदेश सरकार ने भी राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों का 65 हजार करोड़ रुपये अपने सिर ले लिया। हरियाणा सरकार ने 25 हजार 950 करोड़ और पंजाब सरकार ने 15 हजार करोड़ रुपये के कर्ज भरने के वादे किए। इससे डिस्कॉम्स का कर्ज और उस पर दिए जाने वाले ब्याज की रकम तो कम हुई लेकिन राज्य सरकारों की माली हालत खराब हो गई।

दरअसल, मोदी सरकार ने बिजली वितरण कंपनियों की खामियों को पकड़ने में कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई थी, इसलिए फिर से कंपनियों पर कर्ज का बोझ बढ़ता चला गया। प्रमुख रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की 6 मई, 2019 को जारी रिपोर्ट के मुताबिक डिस्कॉम्स पर उधार फिर से बढ़ रहा है और 2018-19 यानी 31 मार्च, 2019 तक डिस्कॉम्स पर 2.28 लाख करोड़ रुपये का कर्ज हो गया। क्रिसिल ने अनुमान लगाया कि मार्च, 2020 तक यह 2.64 लाख करोड़ रुपये हो जाएगा। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि उदय को अपनाने के बाद डिस्कॉम्स का उधार 5 सितंबर, 2015 को 2.7 लाख करोड़ रुपये था। यह मार्च, 2016 में 1.9 लाख करोड़ और मार्च, 2017 में 1.5 लाख करोड़ रुपये हो गया। लेकिन अब फिर से रिवर्स होने लगा है।

अपने इस अध्ययन में क्रिसिल ने 15 बड़े राज्यों को शामिल किया है। इन राज्यों पर उदय लॉन्च होने से पहले लगभग इतना ही कर्ज था, इसलिए क्रिसिल का कहना है कि डिस्कॉम्स पर उदय में शामिल होने से पहले जितना कर्ज था, अब उतना ही फिर से हो गया है। हालांकि सरकार ने उस समय क्रिसिल की इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया था लेकिन सरकार के ही एक पोर्टल में बताया गया कि डिस्कॉम्स पर 73748 करोड़ रुपये का बकाया हो चुका है। इस पोर्टल में बिजली उत्पादन करने वाली कंपनियां (जेनको) बताती हैं कि उन्हें डिस्कॉम्स से कितना पैसा लेना है।

अब क्या कर रही सरकार

मोदी सरकार इस स्थिति को लेकर चिंतित तो है लेकिन यह चिंता प्राइवेट कंपनियों को लेकर अधिक है। ये कंपनियां ही डिस्कॉम्स को महंगी बिजली बेच रही हैं। केंद्र ने पिछले दिनों एक आदेश जारी किया जिसमें कहा गया है कि सभी डिस्कॉम्स, जेनको को लेटर ऑफ क्रेडिट दें जिससे जेनको को बाद में पैसों की दिक्कत न हो। लेटर ऑफ क्रेडिट का मतलब है कि डिस्कॉम्स द्वारा अपने बैंक या वित्तीय संस्थान की ओर से एक गारंटी पेपर देना होगा, जिसमें लिखा होगा कि जेनको के बिल का भुगतान बैंक करेंगे। इसे सरल भाषा में एडवांस पेमेंट भी कहा जा सकता है। पर केंद्र का यह आदेश सभी जेनको के लिए नहीं है। यह केवल प्राइवेट जेनको पर ही लागू होगा।

इन्हीं सब कारणों से ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के अध्यक्ष शैलेंद्र दूबे कहते हैं कि मोदी सरकार का मकसद केवल प्राइवेट कंपनियों को बढ़ावा देना है। इसलिए केवल प्राइवेट जेनको के लिए लेटर ऑफ क्रेडिट देने को कहा जा रहा है, जबकि डिस्कॉम्स पर सरकारी जेनको का कर्ज ज्यादा है। दूबे के मुताबिक, “दरअसल सरकार नीति आयोग की सिफारिश पर अमल करते हुए बिजली क्षेत्र का निजीकरण करना चाहती है, जबकि बिजली क्षेत्र में पिछले 25 साल के दौरान किए गए निजीकरण और फ्रेंचाइजी के सभी प्रयोग पूरी तरह असफल रहे हैं।”


इसी तरह सरकार अब कैरिज और कंटेंट को अलग करने की बात कह रही है। इसका मतलब घरों में बिजली आपूर्ति करने के लिए अलग-अलग प्राइवेट कंपनियों को ठेका दिया जाएगा, जबकि जेनको से ट्रांसफार्मर तक बिजली पहुंचाने की जिम्मेदारी डिस्कॉम्स की होगी। हालांकि कई राज्यों में डिस्कॉम्स का काम भी निजी कंपनियां देख रही हैं।

दूबे बताते हैं कि अब सरकार उदय-2 लॉन्च करने जा रही है। दरअसल, सरकार का मकसद उदय जैसी स्कीम लाकर डिस्कॉम्स का कर्ज कम करके निजी कंपनियों को बेचना है। जबकि सरकारी डिस्कॉम्स के नुकसान और कर्ज के लिए भी मोदी सरकार ही जिम्मेवार है। मोदी सरकार ने चुनाव जीतने के लिए सौभाग्य स्कीम लॉन्च कर गरीबों को मुफ्त कनेक्शन तो दिलवा दिए, लेकिन उनके पास महंगे बिल भरने के लिए पैसे नहीं हैं और अब, इनका बोझ डिस्कॉम्स को भरना पड़ रहा है। इसके अलावा डिस्कॉम्स का सबसे अधिक बकाया तो सरकारी विभागों और कार्यालयों पर है, जहां से वसूली का इंतजाम न होने के कारण भी डिस्कॉम्स को कर्ज लेना पड़ता है।

लोगों की कट रही जेब

डिस्कॉम्स की माली हालत न सुधरने के कारण लोगों की जेब काटी जा रही है। उत्तर प्रदेश की डिस्कॉम्स ने इस साल बिजली दरों में 25 फीसदी की वृद्धि की मांग की थी। इसमें से 8 से 12 फीसदी की वृद्धि तो कर दी गई है। जबकि गांवों में बिना मीटर वाले उपभोक्ताओं की दरों में 25 फीसदी वृद्धि की गई है। बिहार में इस साल तो बिजली की दरें नहीं बढ़ाई गईं। लेकिन 2017 में बिहार में बिजली दरों में 55 फीसदी वृद्धि की गई थी, जबकि 2018 में 5 फीसदी वृद्धि की गई। झारखंड में भी बिजली दरों में वृद्धि की गई है।

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