राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान मशहूर हैं, हकीकत ये कि दिलीप साहब की बुलंदी तक इनमें से किसी का कद नहीं पहुंचा

राजेश खन्ना पहले सुपर स्टार कहलाए। अमिताभ बच्चन को महानायक कहा गया और शाहरूख खान बादशाह खान के तौर पर मशहूर हैं, लेकिन ये हकीकत है कि दिलीप कुमार की बुलंदी तक इनमें से किसी का कद नहीं पहुंचा।

फोटो: IANS
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इकबाल रिजवी

कहां से शुरू करें, क्या छोड़ें और क्या शामिल करें उनकी दास्तान में। दरअसल दिलीप कुमार ने इतनी दिलचस्प और लंबी ज़िंदगी बिताई जैसी दूसरा कोई बिरला ही बिता पाया होगा। उन्हें एक्टिंग का स्कूल कहा जाए या अदाकारी का बादशाह। पर्दे पर वो ट्रेजड़ी किंग थे तो कमेडियन को हाशिये पर ढकेल देने वाले मसखरे भी थे। अपनी दूसरी पारी में वे जैसे एंग्री ओल्ड मैन के रूप में अवतरित हुए उसकी झलक अमिताभ को छोड़ और कोई नहीं दिखा सका।

राजेश खन्ना पहले सुपर स्टार कहलाए। अमिताभ बच्चन को महानायक कहा गया और शाहरूख खान बादशाह खान के तौर पर मशहूर हैं, लेकिन ये हकीकत है कि दिलीप कुमार की बुलंदी तक इनमें से किसी का कद नहीं पहुंचा।

पतले दुबले और बेहद शर्मीले मोहम्मद यूसुफ खान ने ना जाने कब और क्यों अभिनेता बनने का सपना देख लिया। सपने तो हर इंसान देखता है लेकिन उस समय की फिल्मी दुनिया की बेहद प्रभावशाली और सर्वाधिक चर्चित हस्ती देविका रानी ने दुनिया को बताया कि यूसुफ ने कोई बुरा सपना नहीं देखा था। पहली मुलाकात में ही देविका रानी दिलीप कुमार से बेहद प्रभावित हो गयी थीं। देविका रानी ने यूसुफ के सपने को साकार कर दिया। उन्होने मोहम्मद यूसुफ़ खान का नाम दिलीप कुमार रख कर 1944 की फिल्म ज्वार भाटा में पेश किया। फिल्म ने कोई कमाल नहीं दिखाया लेकिन पर्दे पर दिलीप कुमार कमाल दिखा चुके थे इस वजह से उन्हें और फिल्में मिलीं। और 1949 में बनी महबूब खान की फिल्म ‘अंदाज’ से दिलीप कुमार के कदम मजबूती से जम गए। इसके बाद की दिलीप कुमार की फिल्मी सफ़र की कहानी सुनहरे शब्दों में समय के कपाल पर दर्ज है।


अदाकारी को दिलीप कुमार ने इतनी गहराई से लिया कि दीदार, जोगन और देवदास सहित कुछ फिल्मों में ट्रेजडी रोल इतना डूब कर निभाए कि वे मानसिक रूप से बीमार हो गए। डाक्टरों की सलाह पर उन्होंने कामिक रोल करना शुरू किये। कामिक किरदारों को भी उन्होंने बहुत गंभीरता से अदा किया। राम और श्याम, गोपी, सगीना और बैराग में दिलीप कुमार ने अपने अभिनय का नया रंग पेश किया।फिर कुछ साल कुछ साल फिल्मी पर्दे से दूर रह कर उन्होंने दूसरी पारी शुरू की तो दर्शकों को दिलीप कुमार का नया अवतार देखने को मिला।

अपनी दूसरी पारी में उन्होंने क्रांति, विधाता, दुनिया, कर्मा, मशाल, मज़दूर, सौदागर और शक्ति के ज़रिये जिस एंग्री ओल्ड मैन का किरदार निभाया वो बेमिसल था। लेकिन ज़िंदगी भर उन्होंने फिल्मों का चयन बहुत सोच समझ कर किया यही वजह है कि इस महान कलाकार ने महज़ 54 फिल्मों में ही काम किया। लेकिन भारतीय सिनेमा पर इतनी गहरी छाप छोड़ी कि उनके कदमों के निशान का कई पीढ़िया अनुसरण करती रहेंगी।

दिलीप कुमार की फिल्मी ज़िंदगी जितनी दिलचस्प और चर्चित रही उतने ही चर्चित रहे उनके इश्क। उनका दिल धड़का और बार बार धड़का। यह दुर्भाग्य रहा कि करोड़ों दिलों पर बादशाहत करने वाला ये शख्स संजीदगी और ईमानदारी से इश्क करने के बाद भी बार बार नाकाम रहा। 1948 में आयी फिल्म नदिया के पार में फिल्म की शादी शुदा हिरोइन कामनी कौशल को पहली बार दिलीप कुमार ने दिल दिया। इस इश्क का अंजाम जुदाई में हुआ। पहला ज़ख्म भरा ही था कि उनके जज़्बात सुरैया के लिये मचल उठे। लेकिन देवानन्द के प्यार में डूबी सुरैया उनकी भावनाओं पर ध्यान देने से पहले ही उनसे नाराज़ हो गयीं और उन्होंने कभी दिलीप कुमार के साथ कोई फिल्म नही की। और फिर दिलीप कुमार की ज़िंदगी में मधुबाला आयी। क़िस्मत की बात ती कि दिलीप कुमार को मधुबाला भी नहीं मिल सकीं। लेकिन साठ साल बाद भी मधुबाला से उनके इश्क के चर्चे बहुत दिलचस्पी के साथ बयान किये जाते हैं। आगे चल कर दिलीप कुमार का नाम वैजयंती माला से भी जुड़ा लेकिन उसकी चर्चा पानी के बुलबुले की तरह खत्म हो गयी।

पचपन साल की उम्र में भी दिलीप कुमार का ऐसा आकर्षण था कि महिलाएं उनके नाम पर आहें भरती थी। उन्हें छू कर देखना चाहती थी। और करीब 57 साल की उम्र में शादीशुदा दिलीप कुमार अस्मां जहांगीर के इश्क में गिरफ्तार हो गए। और इतनी मज़बूती से गिरफ्तार हुए कि उनके साथ शादी भी कर ली। कहा गया कि दिलीप कुमार ने बाप बनने की चाहत में ये शादी की थी। इस शादी को लेकर मीडिया में इतन शोर मचा कि दिलीप कुमार ने अस्मां को तलाक दे दिया। दिलीप कुमार के इश्क भले ही कामयाब नहीं हुए लेकिन दिलीप से इश्क करने वाली सायरा बानो का इश्क ज़रूर कामयाब रहा। वक्त के तमाम उतार चढ़ाव के बीच वो दिलीप कुमार दिलो जान से चाहती रहीं और लंबे वक्त तक एक मां की तरह दिलीप कुमार की खिदमत की।

दिलीप कुमार जीते जी एक किवदंती बन गए थे। मुशायरों की महफिल हो या फिर राजनीतिक सभा या फिर कोई समाजी जलसा। दिलीप कुमार को वहां एक अदाकार की हैसियत से नहीं बल्कि एक बुद्धीजीवि और शानदार इंसान के तौर पर देखा जाता था। हालांकि उन्हें राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया गया। सिनेमा का सबसे बड़ा सम्मान दादा साहब फालके पुरस्कार उन्हें दिया गया लेकिन वे जिस मुकाम पर पहुंच गए थे वहां इंसान का क़द सम्मान और पुरूस्कारों से बड़ा हो जाता।

दिलीप कुमार महज़ एक्टर या फिर एक इंसान भर नहीं थे दिलीप कुमार एक दौर का नाम है। वो दौर पिछले कुछ सालों से खामोश हो गया था और अब खत्म हो गया है। उनका शरीर कुछ दिनो में मिट्टी में घुल मिल जाएगा लेकिन दिलीप कुमार की कहानी भला कैसे खत्म होगी।

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Published: 07 Jul 2021, 8:40 AM