मध्य प्रदेश में ‘उज्ज्वला’ का हाल, गांवों में नब्बे फीसदी से ज्यादा लाभार्थी वापस फूंक रही हैं चूल्हा

लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी जिन योजनाओं के दम पर वोट हासिल करने की आस में हैं, उनमें एक उज्वला योजना भी है। लेकिन इस योजना की खामियों की वजह से मध्य प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में 90 प्रतिशत से ज्यादा लाभार्थी वापस लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाने लगी हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

मोदी सरकार का पहला आधा हिस्सा उम्मीद जताती योजनाओं का रहा तो दूसरा इनकी कलई उतारने वाला। तमाम बड़ी-बड़ी योजनाएं लक्षित परिणाम पाने में विफल रही हैं। सरकार लाख बड़े-बड़े दावे कर ले, लेकिन इन योजनाओं के नाकाम रहने से आम लोगों में भारी निराशा और खीझ है। मोदी सरकार की इस बहुचर्चित उज्जवला योजना की देश भर में पड़ताल करती नवजीवन की विशेष श्रृंखला की इस कड़ी में आज पेश है मध्य प्रदेश में इस योजना की जमीनी हकीकत।

गरीब महिलाओं को पहली बार गैस चूल्हा और एलपीजी गैस सिलेंडर तो निशुल्क मिल रहा है, लेकिन इसके बाद उनसे चूल्हे और सिलेंडर की रकम वसूली जा रही है। इसका नतीजा यह है कि इन लोगों को गैस सिलेंडर आम उपभोक्ताओं के मुकाबले मंहगा पड़ रहा है जबकि उनकी स्थिति आम लोगों की तरह सिलेंडर की कीमत चुकाने की भी नहीं है। इस कारण राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में करीब 90 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 80 फीसदी लोग उज्ज्वला योजना के तहत मिले गैस चूल्हे और सिलेंडर को छोड़ वापस लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाने लगी हैं।

उज्ज्वला योजना में गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाली महिलाओं, अनुसूचित जाति और जनजाति की महिलाओं और प्रधानमंत्री आवास योजना के लाभार्थियों को गैस चूल्हा और सिलेंडर देने का प्रावधान है। शुरू में सरकार की ओर से हितग्राही को 1600 रुपये की राशि दी जाती है, जिससे वे गैस सिलेंडर और चूल्हा खरीद सकें। सिलेंडर और चूल्हे की कीमत करीब 5 हजार रुपये है।

पहली बार सिलेंडर मुफ्त मिलता है, जबकि इसके बाद उन्हें पूरी कीमत पर सिलेंडर भराना होता है। आम उपभोक्ताओं की तरह इन महिला हितग्राहियों को सिलेंडर पर सब्सिडी नहीं मिलती। उनकी सब्सिडी की रकम सिलेंडर और गैस चूल्हे की कीमत अदा करने के लिए किस्त के रूप में काट ली जाती है। इस तरह आम उपभोक्ताओं को जहां सब्सिडी के साथ गैस सिलेंडर करीब 650 रुपये का पड़ता है, इन गरीब महिलाओं को इसके लिए 950 रुपये चुकाने पड़ते हैं।

इन स्थितियों के कारण ये गरीब महिलाएं दोबारा गैस नहीं भरा पा रही हैं। उन्होंने गैस सिलेंडर और गैस चूल्हे को छोड़ फिर से लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाना शुरू कर दिया है। यही वजह है कि शहरी क्षेत्रों में उज्ज्वला योजना के केवल 20 प्रतिशत एलपीजी गैस सिलेंडर रीफिलिंग के लिए आ रहे हैं, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में यह आंकड़ा महज 10 फीसदी के करीब है। सोचने वाली बात है कि 200 से 300 रुपये रोजाना की मजदूरी करने वाला परिवार हजार रुपये खर्च कर गैस सिलेंडर कैसे भराए?

योजना के तहत तीन साल में करीब 6 करोड़ कनेक्शन देने का लक्ष्य था, जो पूरा कर लिया गया है। इस योजना का नरेंद्र मोदी ने काफी प्रचार-प्रसार किया था और समर्थ लोगों से सब्सिडी छोड़ने की अपील की थी, ताकि गरीब महिलाओं को एलपीजी सिलेंडर देकर उन्हें लकड़ी के हानिकारक धुंए से बचाया जा सके। अब हाल यह है कि अमीर लोगों से सब्सिडी छुड़वाई जा चुकी है, लेकिन उसका लाभ गरीब महिलाओं को नहीं दिया जा रहा है।

योजना में दलाल हुए सक्रिय

मध्य प्रदेश के विभिन्न शहरों में प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के हितग्राहियों को फांसने के लिए दलाल सक्रिय हो गए हैं। ये दलाल महिलाओं से सिलेंडर 12 सौ से 15 सौ रुपये में खरीदकर उन्हें होटल और अन्य व्यावसायिक संस्थानों को बेच रहे हैं, जो उस सिलेंडर की कीमत जो करीब 5 हजार है, अदा करने के बाद उनकी रीफिलिंग पर सब्सिडी का लाभ उठा रहे हैं। ऐसे में कागजों पर गैस सिलेंडर की मालिक गरीब महिलाएं रहती हैं, जबकि उसका फायदा होटल वाले उठा रहे हैं।

राजधानी में भी कंडों का सहारा

भोपाल की रोशनपुरा बस्ती में रहने वाली 65 वर्षीय दुर्गा बाई बताती हैं कि उनके परिवार में नौ सदस्य हैं। वह और उनका बेटा मजदूरी करते हैं, जिससे बमुश्किल महीने में 5 हजार रुपये की कमाई हो पाती है। इसमें घर का खर्च चलाना ही मुश्किल होता है। ऐसे में, हजार रुपये खर्च कर सिलेंडर कैसे भरवाएं? वह बताती हैं कि सिलेंडर खाली होने के बाद वह फिर से कंडों पर खाना बनाने लगी हैं।

फ्री बोलकर दिया, अब वसूल रहे पैसे

हरदा जिले की ग्राम पंचायत कचबैड़ी की बुजुर्ग महिला गंगा बाई बताती हैं कि उन्हें उज्ज्वला योजना का गैस सिलेंडर तो दिया गया, लेकिन अब दोबारा भरवाने के पैसे नहीं हैं। जंगल से लकड़ी लाकर उसी पर खाना पकाते हैं। आय का कोई स्थायी स्रोत नहीं है। बेटा मिस्त्री है, जिसे कभी काम मिलता है, कभी नहीं। जब सिलेंडर दिया था, तब बताया था कि यह फ्री है, लेकिन बाद में पता चला कि इसकी पूरी कीमत हमसे ही वसूली जानी है।

महिलाओं का छलका दर्द, लकड़ी पर बनाना पड़ रहा खाना

सिंगरौली जिले की आदिवासी महिला पानकली बैगा बताती हैं कि उनके पति कोयले की खदान में मजदूरी करते हैं। उनकी कमाई से बहुत खींचतान करके राशन-पानी का इंतजाम हो पाता है। हर महीने सिलेंडर भरवाने के पैसे नहीं बचते। इसलिए लकड़ी और गोबर के कंडों पर ही खाना बनाती हैं। लकड़ी के चूल्हे से निकलने वाले धुंए के नुकसान उन्हें पता हैं, लेकिन उसी पर खाना पकाने की मजबूरी है। वह कहती हैं कि हमारे पड़ोस के कई परिवारों ने तो सिलेंडर बेच दिए हैं।

प्रोत्साहन के बाद भी कम हो रही रिफिलिंग

भोपाल के टीटी नगर क्षेत्र में स्थित एचपी गैस कंपनी की डीलर एजेंसी बुक एंड कुक के मैनेजिंग डायरेक्टर अशोक बावेजा बताते हैं कि उज्ज्वला योजना में रीफिलिंग बहुत कम हो रही है। हम किसी तरह उपभोक्ताओं को प्रोत्साहित करके रीफिलिंग करवाते हैं, फिर भी आंकड़ा 20 फीसदी से आगे नहीं बढ़ पाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में तो केवल 10 फीसदी ही रिफिलिंग हो पा रही है।

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