उत्तराखंड में मोदी सरकार की ‘उज्जवला’ का हाल, पहाड़ की महिलाएं खाली सिलेंडरों से दे रही हैं मन को तसल्ली

वोट बटोरने के लिए मायाजाल की तरह फेंकी गई पीएम मोदी की दर्जनों योजनाओं की तरह ‘उज्ज्वला’ भी उत्तराखंड में ‘फ्लॉप शो’ साबित हुई है। योजना के तहत जारी कनेक्शन बड़ी संख्या में गलत पाए जा रहे हैं और जो सही हैं, उनमें आधे से अधिक लोगों ने दोबारा गैस नहीं भरवाई।

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

केंद्र की मोदी सरकार का पहला आधा हिस्सा उम्मीद जताती योजनाओं का रहा तो दूसरा इनकी कलई उतारने वाला। तमाम बड़ी-बड़ी योजनाएं लक्षित परिणाम पाने में विफल रहीं। लेकिन इसका संदेश लोगों के बीच काफी गलत गया। उन्हें लगा जैसे मोदी सरकार ने उनके साथ धोखाधड़ी कर दी है। बेशक, चुनावी समय में इसके सियासी निहितार्थ जो भी निकाले जाएं, इतना तो तय है कि इन योजनाओं के नाकाम रहने से आम लोगों में निराशा और खीझ है। मोदी सरकार की उज्जवला योजना की पड़ताल करती नवजीवन की श्रृंखला की इस कड़ी में पेश है उत्तराखंड में इस योजना की जमीनी हकीकत।

वोट बटोरने के लिए मायाजाल की तरह फेंकी गई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दर्जनों योजनाओं की तरह गरीबों के लिए उज्ज्वला योजना भी उत्तराखंड में ‘फ्लॉप शो’ साबित हो गई है। इस योजना के तहत दिए कनेक्शन बड़ी संख्या में गलत पाए जा रहे हैं और जो सही हैं, उनमें आधे से अधिक लोगों ने गैस रिफिलिंग ही नहीं कराई। रिफिलिंग न होने से उनकी सब्सिडी के चूल्हा और गैस आदि की उधारी की जो वसूली होनी थी वह भी नहीं हो पा रही है।

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के प्रेस प्रकोष्ठ से प्राप्त जानकारी के अनुसार उत्तराखंड में उज्ज्वला योजना के अंतर्गत 31 दिसंबर, 2018 तक 2 लाख 86 हजार लोगों को निःशुल्क गैस कनेक्शन उपलब्ध कराए गए हैं। जबकि इंडियन ऑयल के एरिया मैनेजर प्रभात कुमार वर्मा के अनुसार प्रदेश में अब तक 2.7 लाख गैस कनेक्शन ‘उज्ज्वला’ योजना के तहत जारी किए गए हैं। राज्य सरकार और एलपीजी कंपनी के आंकड़ों में एकरूपता न होना अपने आप में सरकार द्वारा वाहवाही लूटने के लिए बढ़ा-चढ़ाकर आंकड़े पेश करने का एक सबूत है।

राज्य में इन कनेक्शनों में भी टारगेट पूरा करने या फिर लोगों द्वारा मुफ्त कनेक्शन हथियाने की होड़ के कारण बड़ी संख्या में अपात्रों को ‘उज्ज्वला’ कनेक्शन दिए जाने की गड़बड़ियां पकड़ी जा रही हैं। अकेले देहरादून जिले में ऐसे 9000 से अधिक कनेक्शन पकड़े गए हैं, जिन्हें तेल कंपनियों द्वारा निरस्त कर दिया गया है। इन लोगों से साजो-सामान और गैस की जो उधारी सब्सिडी से वसूल होनी थी, वह एक तरह से डूब ही गई है। इंडियन ऑयल के एरिया मैनेजर प्रभात कुमार के अनुसार यह गड़बड़झाला भारत पेट्रोलियम की ऐजेंसियों से संबंधित है।

‘उज्वला योजना’ की नवीनतम गाइडलाइन्स के अनुसार इस योजना की पात्रता के लिए गरीब होना ही काफी नहीं है। अगर किसी परिवार के एक सदस्य के पास कनेक्शन है तो दूसरे सदस्य को कनेक्शन नहीं मिल सकता। लेकिन देहरादून में ऐसे भी उदाहरण मिले हैं, जहां कुछ लोगों ने अपनी अविवाहित बेटियों के नाम से भी कनेक्शन ले लिए ताकि विवाह के समय दहेज में गैस कनेक्शन भी दिया जा सके। तीन कमरों के मकान, दोपहिया वाहन, रेफ्रिजरेटर, किसान क्रेडिट कार्ड, परिवार के किसी सदस्य की 10 हजार रुपये से अधिक आमदनी और लैंडलाइन फोन वालों को भी कनेक्शन नहीं मिल सकते। लेकिन ऐसे ही लोगों ने ज्यादातर कनेक्शन ले रखे हैं।

देहरादून की अंबेडकर कॉलोनी में 24 वर्षीय शिवानी को गैस ऐजेंसी ने कनेक्शन दे दिया, जबकि उसके पिता के नाम पहले से ही कनेक्शन था। उसी की 21 वर्षीय बहन दीपिका को भी गैस एजेंसी ने कनेकशन दे दिया। इसी कॉलोनी के मकान नंबर 17 में सास शकुंतला और बहू संगीता को कनेक्शन दे दिया। नियम के अनुसार अगर किसी एजेंसी ने अपात्रों को सात कनेक्शन दे दिए तो उस पर 5000 रुपये तक जुर्माना लगाने और 200 गलत कनेक्शन देने पर एजेंसी टर्मिनेट किए जाने का प्रावधान है लेकिन उत्तराखंड में हजारों गलत कनेक्शन दिए जाने पर भी कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। क्योंकि एजेंसी को ही नहीं बल्कि तेल कंपनी को भी उज्ज्वला का टार्गेट आगामी लोकसभा चुनाव से पहले पूरा करना है।

इस योजना में सबकुछ मुफ्त का प्रचार करना भी गरीब जनता के साथ धोखा है। वास्तव में कनेक्शन देते समय सिलेंडर और रेगुलेटर की जो 1600 रुपये की जमानत ली जाती है, वह नहीं ली जा रही है। उसके अलावा चूल्हा समेत लगभग 1840 रुपये की जो सामग्री दी जा रही है, उसे उपभोक्ता को रसोई गैस रिफिलिंग में मिलने वाली सब्सिडी से वसूल किया जाना है। यह सब्सिडी सब को मिलती है। अगर उज्ज्वला उपभोक्ता दोबारा गैस नहीं लेता है तो उसे न तो सबसिडी मिलेगी और ना ही उससे उधारी वसूल हो पाएगी।

इससे सरकार या कंपनी को मुफ्त कनेक्शन की जमानत राशि 1600 रुपये का नुकसान होने के अतिरिक्त उधारी के 1840 रुपये का नुकसान भी हो रहा है। उधारी की इस 1840 रुपये की राशि में 675 रु. की गैस या रिफिल, 990 का चूल्हा, 100 रु. की ट्यूब और 75 रु. इन्स्टॉलेशन चार्ज शामिल हैं जो उपभोक्ता को मिल रही सब्सिडी से वसूल होनी है। जब उपभोक्ता गैस ही नहीं लेगा तो उसे सब्सिडी भी नहीं मिलेगी और सब्सिडी नहीं मिलेगी तो उससे 1840 रुपये की वसूली भी नहीं हो पाएगी।

एलपीजी डिस्ट्रिब्यूटर्स एसोसिएशन उत्तराखंड सर्किल के अध्यक्ष चमनलाल का कहना है कि जिन लोगों को उज्ज्वला कनेक्शन दिए गए हैं, उनमें से 50 प्रतिशत भी दोबारा गैस रिफिलिंग नहीं करा रहे हैं। चमनलाल के अनुसार वर्तमान में तो रसोई गैस का एक रिफिल 675 रुपये में पड़ रहा है लेकिन गैस कभी-कभी 800 रुपये प्रति सिलेंडर तक पहुंच जाती है और सरकार द्वारा तय प्रति सिलेंडर सबसिडी खाते में तो जाती है मगर पहले प्रत्येक श्रेणी के उपभोक्ता को रिफिल की पूरी कीमत अदा करनी होती है। इसलिए भी ज्यादातर उज्ज्वला उपभोक्ता दोबारा रसोई गैस नहीं ले रहे। चमनलाल यहां तक कहते हैं कि जब से उज्ज्वला कनेक्शन दिए जा रहे हैं, गैस ऐजेंसियों में कमर्शियल गैस की बिक्री कम होने की शिकायतें भी मिल रही हैं। अंदेशा है कि महंगी कमर्शियल गैस खरीदने वालों ने उज्ज्वला उपभोक्ताओं से सिलेंडर खरीद लिए या फिर वे उनसे सस्ती गैस खरीद रहे हैं।

पहाड़ों में हजारों गांव आज भी मोटर मार्गों से काफी दूर हैं। इन दुर्गम गावों के लोगों को भले ‘उज्ज्वला’ कनेक्शन दे दिए गए हों, मगर उनके लिए पीठ या सिर पर भारी-भरकम सिलेंडर के बोझ के साथ 15-20 किमी पैदल चलना संभव नहीं है। मसलन उत्तरकाशी जिले के मोरी ब्लॉक की सर बडियार पट्टी के डिगाड़ी और पौंटी आदि गावों के लोगों को सिलेंडर भराने या लेने के लिए 18 किमी पैदल चलकर पुरोला या बड़कोट जाना पड़ता है। डिगाड़ी गांव की प्रेमा देवी और अमरदेयी ने छह माह पूर्व उज्ज्वला कनेक्शन तो लिया मगर उनके लिए गैस ऐजेंसी इतनी दूर है कि वहां से नया भरा हुआ सिलेंडर लाना महंगा सौदा है। इसलिए इन महिलाओं को उधार का चूल्हा और अन्य सामग्री को ही अपनी रसोई की शान मानकर सहेजा हुआ है। चमोली, रुद्रप्रयाग और पिथौरागढ़ जैसे सीमांत जिलों में प्रेमा देवी और अमरदेयी जैसी हजारों महिलाएं खाली सिलेंडरों से मन को तसल्ली दे रही हैं।

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