उत्तर प्रदेश में मोदी सरकार की ‘उज्वला’ का हाल, 20 फीसदी से ज्यादा लोग दोबारा नहीं भरा सके सिलेंडर

जिस उज्वला योजना की जमीन पर वोट की फसल काटने की तैयारी बीजेपी और मोदी सरकार कर रही है, उसके लाभार्थियों की अपनी दुश्वारियां और दिक्कतें हैं। महंगाई और कमाई का कोई साधन उपलब्ध नहीं होने से 20 फीसदी से अधिक लोग दोबारा सिलेंडर भरा नहीं सके।

फोटोः पूर्णिमा श्रीवास्तव
फोटोः पूर्णिमा श्रीवास्तव
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नवजीवन डेस्क

केंद्र की मोदी सरकार का पहला आधा हिस्सा उम्मीद जताती योजनाओं का रहा तो दूसरा इनकी कलई उतारने वाला। तमाम बड़ी-बड़ी योजनाएं लक्षित परिणाम पाने में विफल रहीं। लेकिन इसका संदेश लोगों के बीच काफी गलत गया। उन्हें लगा जैसे मोदी सरकार ने उनके साथ धोखाधड़ी कर दी है। बेशक, चुनावी समय में इसके सियासी निहितार्थ जो भी निकाले जाएं, इतना तो तय है कि इन योजनाओं के नाकाम रहने से आम लोगों में निराशा और खीझ है। मोदी सरकार की उज्जवला योजना की पड़ताल करती नवजीवन की श्रृंखला की इस कड़ी में पेश है उत्तर प्रदेश में इस योजना की जमीनी हकीकत।

उत्तर प्रदेश के महराजगंज जिले के नैनसर ग्राम सभा निवासी पांचू की पत्नी विद्यावती को 13 महीने पहले उज्ज्वला गैस कनेक्शन मिला था। तीन महीने में फ्री में मिला सिलेंडर खाली हो गया। पिछले 10 महीने से सिलेंडर शो-पीस बना हुआ है। लकड़ी पर खाना पका रही विद्यावती खाली सिलेंडर को लेकर सवालों पर परेशान हो जाती हैं। कुरेदने पर कहती हैं कि जमीन का छोटा सा टुकड़ा है। उसी में सब्जी उगाकर जैसे-तैसे चार बच्चों को पाल रही हैं। सिलेंडर भराने के लिए 900-1000 रुपये कहां से लाएं।

यह दर्द सिर्फ विद्यावती का नहीं है। उनके जैसी प्रदेश की करीब 20 लाख महिलाओं के लिए उज्ज्वला योजना किसी मतलब की नहीं है। 2016 में मजदूर दिवस यानी पहली मई को यूपी के बलिया में योजना को लांच करते समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भावनात्मक भाषण देते हुए लकड़ी के चूल्हे पर धुंए के बीच खाना पका रही गरीब महिलाओं की जिंदगी बदलने का दावा किया था। तब से प्रदेश में करीब एक करोड़ रसोई गैस कनेक्शन बांटे जा चुके हैं।

जिस योजना की जमीन पर वोट की फसल काटने की तैयारी बीजेपी कर रही है, उसके लाभार्थियों की अपनी दुश्वारियां हैं, दिक्कतें हैं। महंगाई और कमाई का कोई साधन नहीं होने से 20 फीसदी से अधिक लोग दोबारा सिलेंडर भरा नहीं सके। दरअसल, योजना लांच हुई तो यूपी में चुनाव को चंद महीने ही बचे थे, तो बीजेपी सांसदों, विधायकों से लेकर संगठन से जुड़े नेताओं ने कैंप लगाकर गरीबों में रसोई गैस कनेक्शन बंटवाया था।

पेट्रोलियम मंत्रालय के दबाव में एजेंसियों को भी दरियादिली दिखाने का फरमान था। मुख्यमंत्री के गृह जिले गोरखपुर में 1.98 लाख उज्ज्वला कनेक्शन बांट कर प्रदेश में 11 वां स्थान हासिल होने पर कार्यकर्ताओं ने खूब वाहवाही भी लूटी। बीजेपी ने फ्री कनेक्शन का नारा देकर 2017 विधानसभा चुनाव में वोट की फसल तो काट ली लेकिन अब यह योजना तेल कंपनियों के साथ ही वितरकों के भी गले की फांस बन गई है। गैस, चूल्हा मुहैया कराने के बाद 25 से 30 फीसदी गरीबों के घर से सिलेंडर भरने की मांग आई ही नहीं। इन घरों के चूल्हे या तो लकड़ी से जल रहे हैं या फिर उन्होंने कोई और विकल्प अपना लिया है।

जितनी महिलाएं, उतनी दुश्वारियां

महराजगंज के निचलौल ब्लॉक की रहीमा खातून के पति अनवर रिक्शा चलाते हैं। रसोई गैस के बगल में ही मिट्टी का चूल्हा दिखाई देता है। रहीमा कहती हैं कि लकड़ी बीनकर लाते हैं, तो खाना पकता है। सिलेंडर दोबारा भरा जाए इसके लिए कमाई भी जरूरी है। वहीं, कुसुम देवी के पति बृजमोहन मानसिक दिव्यांग हैं। कुसुम कहती हैं कि दूसरे के घर चूल्हा-चौका कर किसी तरह दो वक्त की रोटी का इंतजाम होता है। फ्री कहकर मिले सिलेंडर की कीमत चुकानी पड़ेगी, इसकी जानकारी नहीं थी।

गोरखपुर के कैम्पियरगंज की सावित्री बताती हैं कि सिलेंडर खत्म होने के बाद एजेंसी पर 900 रुपये देकर दूसरा सिलेंडर लाए थे। एजेंसी के लोगों ने बताया कि सब्सिडी का पैसा खाते में चला जाएगा। दो महीने बाद भी रकम नहीं आई। कई बार दौड़ने के बाद बताया कि कनेक्शन का 1600 रुपये भरपाई होने के बाद ही सब्सिडी की रकम खाते में जाएगी।

जंगल कौड़िया की सीमा बताती हैं कि गेहूं बेचने के बाद किसी तरह दोबारा सिलेंडर भरवाया था। अब लकड़ी पर खाना पकाते हैं। सिलेंडर पर खाना मेहमान आने या फिर त्यौहार पर ही पकाते हैं। बृजमनगंज ब्लॉक के जगरनाथपुर की मेवाती कहती हैं कि पति मजदूरी करते हैं। जो रकम मिलती है, वह दो वक्त की रोटी के इंतजाम में खत्म हो जाती है। एकमुश्त आठ-नौ सौ रुपया सिलेंडर पर खर्च करना मुमकिन नहीं।

आईओसी के नोडल अधिकारी का कहना है कि उज्ज्वला कनेक्शन के लाभार्थी सिलेंडर सस्ता होने का इंतजार करते हैं। अब पहले की तुलना में सिलेंडर के दाम भी कम हुए हैं। उम्मीद है किगैस भराने वाले लोगों की संख्या बढ़ेगी।

बुरी फंसीं एजेंसियां

उज्ज्वला योजना में टारगेट पूरा करने के चक्कर में तेजी दिखाने वाली एजेंसियों पर अब कार्रवाई की तलवार लटक रही है। दरअसल, बीजेपी नेताओं के दबाव में एजेंसियों ने सूची के विपरीत भी तमाम गरीबों को कनेक्शन दे दिया। विधानसभा चुनाव के बाद पेट्रोलियम कंपनियों ने गुणा-भाग किया तो प्रदेश में 20 करोड़ के नुकसान का मामला प्रकाश में आया। उसके बाद सरकार ने न सिर्फ सीएजी से जांच कराई बल्कि एजेंसियों पर भी नकेल कसी जाने लगी। इंडेन की एंजेसी चलाने वाली अस्मिता कहती हैं कि कनेक्शन की औपचारिकता ऑनलाइन की जाती है, कंपनियों की स्वीकृति के बाद ही कनेक्शन जारी होते हैं।

खुद को फंसता देख पेट्रोलियम कंपनियों ने न सिर्फ पांव खींचे हैं बल्कि चुनावी मौसम में खामोशी भी ओढ़ रखी हैं। हालांकि केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्रालय ने 200 कनेक्शन अयोग्य मिलने पर गैस एजेंसी रद्द करने का फरमान जारी कर रखा है। मंत्रालय को अयोग्य उपभोक्ताओं को कनेक्शन की आठ हजार से अधिक शिकायतें मिली हैं।

सब्सिडी के लिए लगा रहे दौड़

महराजगंज की फुलमनहा निवासी छाया का अलग दर्द है। वह बताती हैं कि पति मुंबई में मजदूरी करते हैं। सिलेंडर भराते हैं, लेकिन सब्सिडी की रकम नहीं आती। गोरखपुर की शबीना, मुमताज का कहना है कि एजेंसी मालिकों के कहने पर तीन बार आधार कार्ड बैंक से लिंक करा चुके हैं, लेकिन दो साल बाद भी सब्सिडी की रकम खाते में नहीं पहुंच रही। देवरिया की इन्द्रावती देवी कहती हैं कि मोबाइल से सिलेंडर बुकिंग के दौरान गलती से सब्सिडी छोड़ने वाला बटन दबा दिया। अब इसे सुधारने के लिए दौड़ रहे हैं, कोई सुनवाई नहीं हो रही।

केरोसिन की खपत में कोई कमी नहीं

सरकार का दावा था कि उज्ज्वला योजना के चलते केरोसिन की डिमांड में कमी आएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मई 2016 में उत्तर प्रदेश में 1.10 किलोलीटर केरोसिन तेल की खपत थी। वर्तमान में भी इतनी ही है। जिला पूर्ति कार्यालय के अधिकारी अरुण वर्मा का कहना है कि शासन की तरफ से उज्ज्वला के लाभार्थियों को लेकर कोई निर्देश नहीं मिला है। अब भी पात्र लाभार्थियों को 2 लीटर और अंत्योदय के लाभार्थियों को 3 लीटर केरोसिन तेल दिया जा रहा है।

(नवजीवन के लिए उत्तर प्रदेश से पूर्णिमा श्रीवास्तव की रिपोर्ट)

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