मध्य प्रदेश: सरकार के कामकाज से नाराज बीजेपी नेता, घबराई पार्टी ने की मामले को सुलझाने कोशिशें की तेज
राज्य विधानसभा में हाल ही में खत्म हुए बजट सत्र के बाद कई मंत्रियों की कार्यशैली की पार्टी विधायकों द्वारा की गई गंभीर आलोचना की खबरों के बाद सौदान सिंह को अचानक भोपाल भेजा गया।

बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व द्वारा भेजे गए प्रतिनिधि ने मध्य प्रदेश में पार्टी के नेताओं को यह सुझाव दिया कि वे “आपसी मतभेदों को खत्म कर लें।”
प्रदेश के पार्टी नेताओं के बीच गंभीर मतभेदों की खबरों के बाद केन्द्रीय नेतृत्व ने पार्टी के राष्ट्रीय सह सचिव सौदान सिंह को भेजा था। सौदान सिंह ने भोपाल में तीन दिन गुजारे। इस दौरान वे सीएम शिवराज सिंह, दूसरे मंत्रियों, पार्टी अधिकारियों और संगठन सचिवों से मिले जो पार्टी में आरएसएस का प्रतिनिधित्व करते हैं।
राष्ट्रीय सह सचिव ने पार्टी सदस्यों से कहा कि वे अलग-अलग धड़े न बनाएं और हर प्रखंड में बूथ नेटवर्किंग पर अपना ध्यान लगाएं।
बताया जाता है कि सौदान सिंह ने कहा, “नेताओं को अपने आपसी मतभेद मिटाकर संगठित तरीके से बूथ स्तरीय नेटवर्क को मजबूत करना चाहिए। पार्टी उनको इस काम में सहयोग करेगी।”
बीजेपी के सूत्रों ने बताया कि सौदान सिंह ने अलग-अलग विधान सभा के स्पीकर सीतासरण शर्मा, शहरी विकास मंत्री माया सिंह, राजस्व मंत्री उमाशंकर, सहकारिता राज्य मंत्री विश्वास सारंग, माइनिंग कॉरपोरेशन के चेयरमैन शिव चौबे, होशंगाबाद के जिलाध्यक्ष हरि जायसवाल और कुछ चुनिंदा विधायकों से एक-एक कर मुलाकात की।
इस पर विश्वास करने के पर्याप्त कारण मौजूद हैं कि राज्य विधानसभा में हाल ही में खत्म हुए बजट सत्र के बाद कई मंत्रियों की कार्यशैली की पार्टी विधायकों द्वारा की गई गंभीर आलोचना की खबरों के बाद सौदान सिंह को अचानक भोपाल भेजा गया। उनमें सबसे ज्यादा खुलकर पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता बाबूलाल गौर बोल रहे थे। उनके अलावा सवाल उठाने वालों में पार्टी विधायक गिरीश गौतम, मोती कश्यप, नीना वर्मा, जितेन्द्र गहलोत, हजारीलाल डांगी, डॉ कैलाश जाटव, आरडी प्रजापति और सूबेदार राजोधर के नाम थे। सबने कई मुद्दों को लेकर सरकार की आलोचना की, जिनमें घनघोर भ्रष्टाचार, कई योजनाओं को लागू न करना, कानून-व्यवस्था की स्थिति के कमजोर होना, गैर-कानूनी खनन, लालफीताशाही शामिल है। इनके अलावा अन्य मुद्दे थे - अधिकारियों और खासतौर पर कलेक्टरों का उपेक्षित रवैया और मंत्रियों द्वारा जनहित के जरूरी मसलों पर ध्यान न देना जो समय-समय पर उनके सामने लाया जाता है।
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