शिक्षा और वैज्ञानिक सोच को नष्ट करने पर उतारू आरएसएस

भारत में शैक्षणिक संस्थानों पर हमले के विरोध में जन ट्रिब्युनल के समापन पर निर्णायक मंडल ने शिक्षा के भगवाकरण पर टिप्पणी में कहा कि आरएसएस देश में शिक्षा और वैज्ञानिक सोच को नष्ट करने पर उतारू है।

फोटोः विक्रांत झा
फोटोः विक्रांत झा
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ऋचा

देश में अभी जो खतरे के हालात हैं, उसके खिलाफ आवाज उठाना जरूरी है। शिक्षा का हाल बद से बदतर हो रहा है, छात्रों में गहरा आक्रोश है। भगवाकरण से लेकर अतार्किक सोच को राजनीतिक वरदहस्त हासिल है, इससे लोकतांत्रिक स्पेस ही खत्म हो रहा है। इस जनसुनवाई से देश में ज्वालामुखी की तरह फटने को तैयार युवाओं की बेचैनी का आभास होता है। यह कहना था शैक्षणिक संस्थानों पर हमले के विरोध में जन ट्रिब्युनल में शामिल हुए न्यायाधीश हॉसबेट सुरेश का।

2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही भारत के शैक्षणिक संस्थानों, छात्रों और शिक्षकों पर बढ़ते हमलों के मद्देनजर पीपल्स कमिशन फॉर श्रिंकिग डेमोक्रेटिक स्पेस (पीसीएसडीएस) ने नई दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन कल्ब में 11-13 अप्रैल 2018 को एक तीन दिवसीय जन ट्रिब्युनल का आजोयन किया। भारत में शैक्षणिक संस्थानों पर बढ़ते हमलों पर जन ट्रिब्युनल के नाम से आयोजित इस ट्रिब्युनल में देश के 17 राज्यों से लगभग 400 छात्रों, अध्यापकों, मीडियाकर्मियों और नागरिक समुदाय के सदस्यों ने भागीदारी की। ट्रिब्युनल के समक्ष देश भर के 50 शैक्षणिक संस्थानों से 120 प्रतिवेदन रखे गए, जिसमें से 49 प्रतिवेदनों का प्रस्तुतिकरण किया गया।

ट्रिब्युनल के निर्यणायक मंडल ने तीन दिन में 43 छात्र, 6 शिक्षक तथा 17 विशेषज्ञ प्रतिवेदन सुने। ट्रिब्युनल के निर्णायक मंडल में प्रोफेसर रोमिला थापर, न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) बीजी खोलसे पाटिल, न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) हॉसबेट सुरेश, प्रोफेसर अमित भादुड़ी, डॉ उमा चक्रवर्ती, प्रोफेसर टीके उमन, प्रोफेसर मेहेर इंजीनियर, प्रोफेसर वासंथी देवी, प्रोफेसर कल्पना कन्नाबिरन, प्रोफेसर घनश्याम शाह, पामेला फिलिपोस शामिल थे। छात्रों, शिक्षकों, तथा विशेषज्ञों के अलावा तमाम अन्य प्रोफेसर अन्य अधिवक्ताओं  ने भी ट्रिब्युनल को संबोधित किया।

ट्रिब्युनल को गुजरात के पर्यावरणविद् रोहित प्रजापति, प्रोफेसर कृष्ण कुमार, कन्हैया कुमार, प्रोफेसर रोमिला थापर, प्रोफेसर एन रघुराम, प्रोफेसर नंदिता नारायण, प्रोफेसर अपूर्वानंद, डॉ अखिल रंजन दत्ता, डॉ कैरेन ग्रैबियल, प्रोफेसर आभा देव हबीब, सुचेता डे, डॉ सोरोजीत मजुमदार, डॉ पार्थसारथी रॉय, एडवोकेट मिहिर देसाई, एडवोकेट वृंदा ग्रोवर, डॉ विनीता ग्रोवर, प्रोफेसर कांचा इलैय्या, अभय खाखा, सुश्री गर्तूद्रे लामारे ने भी संबोधित किया।

ट्रिब्युनल के अंतिम दिन 13 अप्रैल 2018 को एक प्रेस वार्ता के माध्यम से निर्णायक मंडल ने ट्रिब्युनल के आठ विषयों पर अपनी एक अंतरिम रिपोर्ट प्रस्तुत की। अंतिम रिपोर्ट में निर्णायक मंडल ने 8 सत्रों में टिप्पणियां रखीं। रिपोर्ट में शामिल कुछ प्रमुख टिप्पणियां निम्न हैंः

शिक्षा का निजीकरण

निर्णायक मंडल का मानना है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा हाल ही में सरकारी शैक्षणिक संसथाओं को स्ववित्त पोषित होने का दर्जा देने का निर्णय इस बात का प्रत्यक्ष द्योतक है कि किस प्रकार गरीब और पिछड़े समुदाय को शिक्षा के दायरे से बाहर करने की सचेत कोशिश की जा रही है। स्ववित्त पोषण की आड़ में बाजार आधारित पाठ्यक्रमों को बढ़ावा दिया जा रहा है। निर्णायक मंडल ने शिक्षा के निजीकरण पर अपनी टिप्पणी में शिक्षकों के बढ़ते अस्थाईकरण पर टिप्पणी करते हुए कहा कि उच्च शिक्षा में हो रहे ढांचागत समायोजन ने छात्रों और शिक्षकों पर नकारात्मक प्रभाव डाला है। शिक्षकों का बढ़ता अस्थाईकरण शिक्षकों के बीच असुरक्षा की भावना को जन्म देने के साथ-साथ छात्रों और शिक्षकों की मुक्त तथा आलोचनात्मक चिंतन को भी बाधित कर रहा है।

शिक्षा का भगवाकरण

निर्णायक मंडल ने शिक्षा के भगवाकरण पर टिप्पणी देते हुए कहा कि निजीकरण के साथ-साथ सामाजिक और सांस्कृतिक संकीर्णता को भी बढ़ावा मिला है। दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग द्वारा बकायदा एक गहन अध्ययन किया जा रहा है जो यह साबित करेगा कि आर्य भारत के मूलनिवासी हैं। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश के एक प्रमुख विश्वविद्यालय में बगैर किसी शैक्षणिक योग्यता के मात्र आरएसएस से संबंध के आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति की गई।

मतभेद पर हमला और अपराधीकरण

निर्णायक मंडल का मानना है कि परिसरों में लगातार छात्रों द्वारा उठाए जा रहे असहमति के स्वरों का बर्बरता पूर्वक दमन किया जा रहा है। छात्रों पर परिसर के अंदर और बाहर निगरानी रखी जा रही है। संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों और स्वतंत्रता से छात्रों व शिक्षकों को वंचित किया जा रहा है।

जाति, लिंग, धर्म और क्षेत्र के आधार पर हाशियाकरण

निर्णायक मंडल का मानना है कि दलित, आदिवासी, धार्मिक अल्पसंख्यक, पूर्वोत्तर राज्यों, कश्मीर से आए छात्रों को हाशिये पर डालने की घटनाओं में गंभीर वृद्धि हुई है। लैंगिक आधार पर भेद-भाव में भी तीव्र वृद्धि हुई है। इन हाशिए पर पड़े समुदायों को आरक्षण और छात्रवृत्ति से वंचित कर इस समुदाय के लिए शिक्षा के दरवाजे बंद किए जा रहे हैं। चूंकि छात्रवृत्ति की नीतियां नई वित्तीय नीतियों के साथ संबंद्ध हैं, अतः यह स्पष्ट है कि अब छात्रों को छात्रवृत्ति न देकर बैंकिग क्षेत्र छात्रों को शैक्षिणिक लोन लेने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है।

अपनी टिप्पणियों के अंत में निर्णायक मंडल ने कहा कि जब तक इन सभी संकटों का उचित निवारण नहीं होता भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरा लगातार बना रहेगा।

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