गुजरात-मध्य प्रदेश में हारेगी बीजेपी : संघ का सर्वे

राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के सर्वे के नतीजों से साफ हुआ है कि इस साल गुजरात और अगले साल मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों में बीजेपी की करारी हार होने वाली है।

फोटो : नवजीवन
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IANS

- पंकज शर्मा - IANS

गुजरात और मध्यप्रदेश में बीजेपी के बुरे दिन शुरु हो चुके हैं और आने वाले विधानसभा चुनावों में दोनों राज्यों में बीजेपी का सफाया हो सकता है और उसके हाथ 100 से भी कम सीटें आने की संभावना है। यह खुलासा हुआ है राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ यानी आरएसएस के एक सर्वे में। सर्वे में कहा गया है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस को 120 या उससे अधिक सीटें मिल सकती हैं जबकि बीजेपी के खाते में बमुश्किल 57-60 सीटें ही आने की संभावना है। उधर गुजरात में भी बीजेपी को कम से कम 10 फीसदी वोटों का नुकसान होने का अनुमान आरएसएस के सर्वे में लगाया गया है। सर्वे के मुताबिक गुजरात में भी कांग्रेस काफी मजबूत स्थिति में नजर आ रही है। संघ ने इन दोनों राज्यों की चुनाव पूर्व सर्वे की रिपोर्ट प्रधानमंत्री और बीजेपी अध्यक्ष को दे दी है।

गुजरात में बीजेपी को 8 से 10 फीसदी वोटों का नुकसान

राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के इस सर्वे से बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नींद उड़ी हुई है। संघ ने गुजरात में विधानसभा चुनावों के दौरान वोटरों की नब्ज टटोलने के लिए सर्वे किया था। इस सर्वे के नतीजों से संघ भी हैरान रह गया। सर्वे के नतीजे साफ दिखाते हैं कि गुजरात में बीजेपी को 8 से 10 फीसदी वोटों का नुकसान होना निश्चित है। सर्वे में इस गिरावट के जो कारण सामने आए हैं उनमें आरक्षण प्रक्रिया में बदलाव से पिछड़े वर्ग की नाराजगी साफ उभर कर आई है। दूसरी तरफ पाटीदार अनामत आंदोलन में 14 युवाओं की मौत से कुणबी पाटीदार समाज का वोट बैंक भी बीजेपी से खिसकता दिख रहा है।

गुजरात-मध्य प्रदेश में  हारेगी बीजेपी : संघ का सर्वे

सर्वे में गुजरात की जो सामाजिक-राजनीतिक स्थिति सामने आ रही है, उससे संकेत मिल रहे हैं कि बीजेपी अध्यक्ष व प्रधानमंत्री को अपने ही गृह प्रदेश में मुंह की खानी पड़ सकती है। गुजरात के सामाजिक समीकरण में कोली मछुआरा समाज की आबादी 24.22 फीसदी है और आदिवासी जातियां 17.61 फीसदी और पटेल कुणबी पाटीदार 12.16 फीसदी हैं। अछूत दलित जातियों की गुजरात में अन्य राज्यों से काफी कम मात्र 7.17 फीसदी आबादी है, वहीं मुसलमान भी 8.53 फीसदी हैं।

गुजरात-मध्य प्रदेश में  हारेगी बीजेपी : संघ का सर्वे

गुजरात के राजनीतिक क्षेत्रों की बात करें तो पश्चिमी गुजरात (सौराष्ट्र-कच्छ) में कोली मछुआरा और कुणबी पाटीदार (लेऊआ पटेल) का काफी मजबूत जनाधार है। सौराष्ट्र और कच्छ की 58 सीटों में से 36 सीटों पर लेऊआ पटेल का वर्चस्व है, तो दूसरी तरफ सौराष्ट्र की 46 व दक्षिणी गुजरात की 13 सीटों पर कोली मछुआरा की आबादी निर्णायक साबित होती है। सौराष्ट्र की 24 व दक्षिणी गुजरात की 13 सीटों पर तो कोलियों की आबादी लगभग 50 प्रतिशत है।

‘राष्ट्रपति की जाति पर धोखा’

बीजेपी को गुजरात में अपनी स्थिति का आभास संभवत: पहले से ही है, इसीलिए जब कोरी समाज के रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बनाया तो उन्हें कोरी प्रचारित न कर, कोली प्रचारित किया गया, ताकि गुजरात के कोलियों और दलितों को रिझाया जा सके। इस विषय पर सामाजिक न्याय चिंतक व मछुआरों के नेता लौटन राम निषाद का कहना है कि “रामनाथ कोविंद को कोली प्रचारित कराया जाना बहुत बड़ा धोखा है। यह बीजेपी की झूठ-फरेब व छल कपट की राजनीति का हिस्सा है, क्योंकि कोरी व कोली बिल्कुल अलग-अलग जातियां हैं।”

गुजरात के जातिगत समीकरणों में ब्राह्मण 4.06 फीसदी, राजपूत/क्षत्रिय 4.85, बनिया 2.96, कुणबी पाटीदार 14.53 व अन्य सवर्ण जातियां 1.13 प्रतिशत हैं। मध्यवर्तीय पिछड़ी जातियों में कोली 24.22 फीसदी, माछी 0.55, भोई 0.38, खड़बा 0.19, शिल्पी 06.13 माली 0.12, भाट बरोट 0.33, भारवाड़/यादव 02.01, घांची 0.32 प्रतिशत, केवट, माझी सहित अन्य अतिपिछड़ी जातियां 4.17 फीसदी , अछूत दलित 7.17 फीसदी, आदिवासी 17.61 फीसदी, मुस्लिम 8.53 फीसदी, ईसाई - 0.75, पारसी 0.21 फीसदी, अन्य 0.05 फीसदी हैं।

गुजरात में कोली समुदाय कुणबी पाटीदार से लगभग दोगुना है, पर पटेल राजनीतिक रूप से काफी जागरूक और ताकतवर हो चुके हैं। सौराष्ट्र और कच्छ में कोली मछुआरों में इधर जागरूकता आई है, लेकिन दक्षिणी, मध्य और उत्तरी गुजरात में कोली समाज के प्रभावशाली नेता नहीं है। पुरुषोत्तम भाई सोलंकी काफी मजबूत व प्रभावाली नेता हैं, पर इनके कद को सीमित रखे जाने से कोली समाज में काफी नाराजगी दिख रही है। नरेंद्र मोदी के साथ 2001 में सोलंकी ने राज्यमंत्री पद की शपथ ली थी और आज भी विजय रूपाणी मंत्रिमंडल में भी वे राज्यमंत्री ही हैं।

पिछले चुनाव में उन्होंने बीजेपी से कोली समाज को 25-30 टिकट देने का मुद्दा उठाया था। इनके अलावा राज्यसभा सांसद चुन्नी भाई गोहिल, शंकर भाई, नानू भाई, कोली व लोकसभा सांसद भारती बेन शियाल के साथ देव जी फटेपारा, सोमागंडा पटेल, सत्य नारायण पंवार, जगदीश ठाकुर जैसे प्रभावशाली नेता हैं। इस बार गुजरात में कोली को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने का मुद्दा भी उछलता दिख रहा है।

दूसरी तरफ कांग्रेस के कुलीन शासक वर्ग में ब्राह्मण, बनिया गठबंधन हावी रहा है। प्रदेश में खेतिहर जमीन का बहुत ही आसान बंटवारा था। और समय के साथ पाटीदार खेतिहर कांग्रेस के कुलीन शासक वर्ग में शामिल होते चले गए। 1908 से कांग्रेस स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कुंवरजी मेहता पाटीदारों को संगठित करने में लग गए थे। उत्तरी गुजरात और सौराष्ट्र में कुणबी ही पाटीदार हैं। पाटीदारों को लेउवा, कड़ुवा, अंजाना, लेऊआ और मोती में विभाजित किया जा सकता है।

जनसंख्या की दृष्टि से कोली मछुआरा सबसे अव्वल है। कोली सहित मछुआरा जातियों की संख्या 29.84 प्रतिशत है। कोली मध्य और उत्तर गुजरात में क्षत्रिय और दक्षिण गुजरात में पटेल कहलाना पसंद करते हैं।

कोली आठ प्रतिशत धनी किसान हैं और कोली में तटवर्तीय और मैदानी विभाजन के अलावा तलबदार, पातनवाड़िया, चुआड़िया, मकवाना, धाराला, माछी, मातिया, गुलाम, खांत, महादेव कोली, मल्हार कोली, टोकरे कोली, महावर कोली, सूर्यवंशीय कोली, खेवर कोली, खेवर मच्छीमार, ढोर कोली, महागीर कोली चैनपवालिया उपविभाजन है।

मध्य प्रदेश में तय है हार

उधर मध्य प्रदेश में भी बीजेपी को बहुत बड़ा नुकसान होने का अनुमान है। संघ के चुनाव पूर्व सर्वे के मुताबिक मध्य प्रदेश के ऊना में दलितों की हत्या से बीजेपी का काफी नुकसान होना निश्चित है। संघ के सर्वे के नतीजों से साफ है कि 2012 में बीजेपी को जितनी सीटें मिली थीं, उसकी आधी भी उसके हिस्से में नहीं आएंगी। वहीं कांग्रेस को 120 से अधिक सीटें मिलने का अनुमान इस सर्वे में लगाया गया है, तो बीजेपी के 57-60 सीट तक सिमटने का अनुमान है।

गुजरात-मध्य प्रदेश में  हारेगी बीजेपी : संघ का सर्वे

हाला ही में अमित शाह ने मध्य प्रदेश के तीन दिवसीय दौरे में '160 प्लस' का लक्ष्य दिया, तो प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का दूसरे दिन बयान आया कि बीजेपी आगामी विधानसभा चुनाव में '200 प्लस' सीटें जीतेगी। मध्यप्रदेश विधानसभा में 230 सीटें हैं और सत्ता में वापसी के लिए 116 सीटों की जरूरत पड़ेगी। लेकिन आरएसएस के आंतरिक सर्वे में बीजेपी की राह में रुकावटें आती दिख रही हैं।

व्यापम ले डूबेगा शिवराज की नैया

आरएसएस के सर्वे के अनुसार, बीजेपी को 100 से भी कम सीटें मिलने के संकेत मिले हैं। यदि कांग्रेस के बड़े नेताओं में तालमेल बना रहा, तो बीजेपी के हाथ से सत्ता जानी तय है। व्यापम घोटाले के साथ-साथ बीजेपी के कई प्रदेश नेताओं के 'सेक्स स्कैंडल' से बीजेपी की छवि धूमिल हुई है, वहीं किसान आंदोलन, आंदोलन में छह किसानों की मौत और 50 से ज्यादा किसान आत्महत्या, नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री मेधा पाटकर को जेल में बंद किए जाने जैसे कारनामों ने भी बीजेपी की राह में अवरोध लगा दिया है।

ऐसे में संभावना यह भी है कि बीजेपी नेतृत्व अगला चुनाव शिवराज के चेहरे पर न लड़कर बिना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए ही लड़ सकती है, क्योंकि शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में चुनाव जीतना मुश्किल है।

(लेखक राजनीतिक समीक्षक व वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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