‘सौभाग्य’ योजनाः उत्तराखंड में खंभे तक नहीं लगे और मोदी सरकार ने हर घर में बिजली पहुंचा दी!

घर-घर बिजली पहुंचाने का दावा करते हुए जब पीएम मोदी ने महत्वाकांक्षी योजना ‘सौभाग्य’ की घोषणा की तो लोगों के मन में आस जगी थी कि अब उनके घरों में रौशनी पहुंचेगी। लेकिन इस योजना के तहत उत्तराखंड के कई गांव में खंभे तो गाड़े गए, लेकिन बिजली के तार नहीं पहुंचे।

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घर-घर बिजली पहुंचाने की महत्वाकांक्षी योजना 'सौभाग्य' की जब घोषणा की तो लोगों के मन में उम्मीद भी जगी कि अब उन्हें भी केरोसिन वगैरह से छुटकारा मिल जाएगा। सरकार ने अब दावा किया है कि हर घर में बिजली देने का लक्ष्य सौ फीसदी पा लिया गया है। लेकिन हकीकत यह है कि इस योजना का भी वही हाल है जो मोदी सरकार की अन्य बड़ी योजनाओं का हुआ है। देश के विभिन्न भागों की पड़ताल से पता चला कि सैकड़ों ऐसे गांव हैं जहां बिजली के खंभे नहीं डाले गए। सैकड़ों ऐसे गांव हैं जहां खंभे लगाए तो गए लेकिन तार नहीं डाला। और सैकड़ों ऐसे गांव हैं जहां खंभे और तार तो हैं लेकिन बिजली नहीं आती। इस योजना की जमीनी हकीकत से पाठकों को बाखबर करने के लिए नवजीवन एक श्रंखला चला रहा है, जिसकी इस कड़ी में आज उत्तराखंड में इस योजना की जमीनी सच्चाई पेश की जा रही है।

देश की सभी ग्रामीण और शहरी बस्तियों के अंतिम मकान तक बिजली पहुंचाने के लिए शुरू की गई प्रधानमंत्री ‘सहज बिजली हर घर योजना (सौभाग्य)’ के तहत उत्तराखंड में 2 लाख से अधिक घरों तक बिजली पहुंचाकर सौ फीसदी लक्ष्य पाने की घोषणा तो कर दी गई, लेकिन हकीकत यह है कि आज भी सैकड़ों गावों में बिजली की रोशनी एक सपना ही है। कई गावों में बिजली के खंभे तक नहीं लगे हैं।

आंकड़ेबाजी कर खानापूर्ति करने के लिए कई गावों में खंभे तो गाड़ दिए गए, मगर उनपर तार नहीं पड़े। कई ऐसे इलाके भी हैं जहां खंभे हैं, तार भी हैं, लेकिन बिजली नहीं। कुछ इलाकों में आंकड़े पूरे करने के लिए जल्दबाजी में गाड़े गए बिजली के पोल टेढ़े हो गए हैं। सरकार की नाक के नीचे देहरादून जिले में ही इस फर्जीवाड़े की पोल खुल रही है। बिना संसाधनों के हड़बड़ी में वाहवाही लूटने के लिए शुरू की गई ‘सौभाग्य’ योजना के फर्जी आंकड़ों के मायाजाल में स्वयं भारत सरकार, उत्तराखंड पावर कारपोरेशन और स्वयं राज्य सरकार फंस गई है।

देहरादून में 9 मार्च, 2018 को जब केंद्रीय ऊर्जा राज्यमंत्री आरके सिंह और मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की मौजूदगी में योजना लांच हुई थी तो उस समय ऊर्जा सचिव राधिका झा ने बताया था कि राज्य में 3,52,625 परिवारों तक बिजली नहीं पहुंची है। इनमें से 95,577 परिवारों को दीनदयाल उपाध्याय योजना से विद्युत आपूर्ति दी जाएगी और शेष 2,57,048 परिवारों को ‘सौभाग्य’ योजना के तहत बिजली दी जाएगी।

केंद्र सरकार की सौभाग्य वेबसाइट बताती है कि राज्य में 2,32,308 घरों को बिजली देकर इस योजना का सौ फीसदी लक्ष्य हासिल कर लिया गया है। जबकि विद्युतीकरण के लिए जिम्मेदार उत्तराखंड पावर कारपोरेशन ने 30 नवंबर, 2018 तक 2,00,037 घरों का इस योजना में विद्युतीकरण कर शत प्रतिशत लक्ष्य हासिल करने का दावा किया है। इस योजना में कनेक्शन 30 नवंबर, 2018 तक दिए जाने थे और 31 दिसंबर तक सभी बचे काम पूरे किए जाने थे।

सीमान्त जिला चमोली के सीमान्त ब्लॉक जोशीमठ के अन्तर्गत बद्रीनाथ मार्ग पर हनुमान चट्टी के ठीक सामने खिरों गांव में अभी बिजली के खंभे तक नहीं पहुंचे हैं, जिस कारण वहां के 15 परिवार अब तक बिजली की रौशनी का सौभाग्य हासिल नहीं कर पाए। इसी तरह, इसी जिले के पोखरी ब्लॉक के बंगथल ग्राम पंचायत के केदारकांठा के पातालपानी तोक में भी अभी न तो बिजली पहुंची और ना ही वहां सोलर बिजली उपलब्ध कराई गई। वहां के सात परिवारों तक मोदी जी की सौगात नहीं पहुंची।

रुद्रप्रयाग जिले की आपदाग्रस्त केदारघाटी में भी कई गावों तक प्रधानमंत्री की ‘सहज बिजली हर घर’ तक नहीं पहुंच पाई। वहां हुदड़ू-उसाड़ा से लेकर तृतीय केदार के नाम से विख्यात तुंगनाथ तक बिजली के पोल नहीं लगे। यहां वन भूमि का हस्तांतरण विद्युतीकरण के लिए होना था लेकिन राज्य सरकार की उपेक्षा के कारण नहीं हुआ। इस क्षेत्र में विख्यात कार्तिक स्वामी घाम के अलावा विख्यात पर्यटन स्थल चोपता और दोगलबिट्टा भी अंधेरे में उजाले के सौभाग्य का इंतजार कर रहे हैं।

कुल मिलाकर इस क्षेत्र में चार राजस्व गांव हैं जहां बिजली तो दूर खंभे तक नहीं लगे हैं। केदारनाथ के विधायक मनोज रावत के अनुसार ग्रामीण बिजली के लिए सरकार से बार-बार वनभूमि हस्तांतरण की मांग कर रहे हैं, मगर त्रिवेंद्र सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती। युवा विधायक मनोज के अनुसार मक्कू बैंड स्थित भेड़पालन केन्द्र हैं जहां राज्य सरकार का अतिरिक्त निदेशक स्तर का प्रथम श्रेणी का अधिकारी बैठता है, जिसे बिजली की सुविधा नसीब नहीं है। ऐसे में सरकारी अफसर कैसे पहाड़ों पर काम करेंगे।

सीमान्त जिला उत्तरकाशी के दूर-दराज के गांवों तक फर्जी आंकड़ों की पहुंच तो हुई मगर बिजली की नहीं हो सकी। इस जिले के मोरी ब्लॉक के गोविन्द पशु विहार इलाके में हिमाचल प्रदेश की सीमा से लगे लगभग एक दर्जन गांवों को बिजली नहीं मिली है। बिजली से वंचित इन गावों में सेवा गावं के लगभग 120 परिवार हैं। इसी तरह बरी और हडवाड़ी जैसे सैकड़ों परिवारों वाले गावों में जल्दबाजी में बिजली के खंभे लगाने के साथ ही उन पर तार भी डाल दिए गए, मगर खंभे इतनी दूरी पर लगे कि वे तारों का बोझ नहीं सह सके और टेढ़े हो गए। जाहिर है, बिजली तो आई नहीं। इन गावों को लघु विद्युत परियोजनाओं से तो जोड़ दिया गया मगर परियोजनाएं सुचारू बिजली उत्पादन की स्थिति में ही नहीं हैं। क्षेत्र में धौला लघु जलविद्युत परियोजना तीन महीनों से बंद है।

वहीं, पहाड़ के दूरदराज के गावों का तो न कोई पूछने वाला है और ना ही वहां कोई जाता है। लेकिन राज्य सरकार की नाक के नीचे देहरादून जिले तक में योजना के तहत विद्युतीकरण के नाम पर केवल खानापूरी की गई है। देहरादून के प्रेमनगर क्षेत्र के बनियावाला गांव की कलावती का कहना है कि उसके पति महेंद्र कुमार के आवेदन पर जनवरी में उनके घर के सामने बिजली का खंभा तो लगा मगर अब तक मीटर या कनेक्शन का पता नहीं है। जो खंभा लगा भी है, उसे सीधा खड़ा रखने के लिए मिट्टी और पत्थर भी उन्हें खुद भरने पड़े।

इसी गांव के सचिन की शिकायत है कि उसे कनेक्शन तो मिला और बिजली का खंभा भी लगा मगर जनवरी मध्य तक तार नहीं डाला गया। पीतांबरपुर के हरजिन्दर के घर तक बिजली का तार नहीं पहुंचा। यूपीसीएल वालों ने मीटर लकड़ी की बल्ली पर टांग दिया। इसी गांव के भोपाल सिंह भंडारी कनेक्शन के लिए बिजली दफ्तर के चक्कर काटते रह गए। शुक्लापुर के कलम सिंह राणा के घर दूर से हवा में तार खींचकर कनेक्शन तो दे दिया लेकिन घर की तरफ बिजली की लाइन के लिए बिजली दफ्तर के चक्कर काटने पड़ रहे हैं।

राज्य के हर घर तक 30 नवंबर, 2018 तक बिजली कनेक्शन पहुंचाने का दावा कर राज्य सरकार ने वाहवाही तो खूब लूटी, मगर इन दावों की कलई खुल गई है। राज्य के कई हिस्सों से आ रही शिकायतों से साफ है कि यूपीसीएल ने फर्जी आंकड़े पेश किए और राज्य सरकार ने उन्हीं फर्जी आंकड़ों को केंद्र सरकार की ओर खिसका दिया।

सौभाग्य योजना को लेकर सचिवालय से लेकर यूपीसीएल मुख्यालय तक रिकॉर्ड बैठक और वीडियो कांफ्रेंस के दौर चले। प्रबंध निदेशक समेत तमाम निदेशकों को फील्ड में दौड़ाने के दावे किए गए लेकिन अब पता चल रहा है कि अफसरों ने देहरादून में भी सर्वे की जहमत नहीं उठाई। यह स्थिति उस राज्य की है जिसे बीजेपी ने ऊर्जा राज्य का नाम दिया था और जहां टिहरी बांध जैसी बिजली परियोजनाएं चल रही हैं।

हालांकि कुमाऊं मंडल के सीमांत जिला पिथौरागढ़ में सभी राजस्व गावों तक तो बिजली पहुंच गई है, लेकिन जिले के 258 तोक ऐसे हैं जहां दिसंबर, 2018 तक बिजली नहीं पहुंची थी। इनमें धारचुला ब्लॉक के 54, मुन्स्यारी के 53, गंगोलीहाट के 70, डीडीहाट के 12, मूनाकोट के 22, कनालीछीना के 18, पिथौरागढ़ के 15 और बेरीनगी के 14 तोक शामिल हैं। इनमें एक-एक तोक में कम से कम दर्जनभर परिवार रहते हैं।

(नवजीवन के लिए उत्तराखंड से जयसिंह रावत की रिपोर्ट)

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