शिव ‘राज’ सरकार की उपेक्षा का शिकार बुंदेलखंड, रोजगार की तलाश में हर दिन 5000 लोग कर रहे हैं पलायन

बुंदेलखंड की पहचान सूखा, पलायन, बेरोजगारी और गरीब इलाके के तौर पर बन गई है। हर रोज 5 हजार से ज्यादा लोग रोजगार की तलाश में पलायन कर रहे हैं, इस बार के हालात पिछले सालों की तुलना में काफी बुरे हैं।

फोटो: IANS
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संदीप पौराणिक, IANS

इन दिनों बुंदेलखंड के हर रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड का नजारा कुछ बदला हुआ है। हर तरफ सिर पर गठरी, कंधे पर बैग और महिला की गोद में बच्चे नजर आते हैं। गरीब परिवार के लोग रोजी-रोटी की तलाश में गांव को छोड़कर जा रहे हैं। रोजगार को लेकर बुंदेलखंड से हर रोज 5000 से ज्यादा लोग पलायन कर रहे हैं।

देश के विभिन्न हिस्सों में बुंदेलखंड की पहचान सूखा, पलायन, भुखमरी, बेरोजगारी और गरीब इलाके के तौर पर बन गई है। यहां से रोजगार की तलाश में पलायन आम बात हो गई है, मगर इस बार के हालात पिछले सालों की तुलना में बहुत बुरे हैं।

एक स्थानीय निवासी ने कहा कि सरकारी नौकरी, खेती, मजदूरी के अलावा आय का कोई अन्य जरिया यहां के लोगों के पास नहीं है। पानी नहीं होने की वजह से खेती हो नहीं रही, मजदूरी मिल नहीं रही, उद्योग है नहीं, ऐसे में सिर्फ पलायन का रास्ता बचता है।

पन्ना जिले के बराछ गांव से दिल्ली मजदूरी के लिए जा रहे बसंत लाल ने कहा, “खेती की जमीन है, मगर पानी नहीं है। काम भी नहीं मिलता, नहीं तो मजदूरी के लिए गांव में ही रुक जाते। घर तो मजबूरी में छोड़ रहे हैं, किसे अच्छा लगता है अपना घर छोड़ना।”

बराछ गांव के ही पवन बताते हैं कि उनके गांव में एक हजार मतदाता हैं। इनमें से चार सौ से ज्यादा काम की तलाश में गांव छोड़ गए हैं। यही हाल लगभग हर गांव का है। सरकार, प्रशासन को किसी की चिंता नहीं है। चुनाव आ जाएंगे तो सब गांव के चक्कर लगाएंगे, इस समय वे समस्या में हैं, तो कोई सुनवाई नहीं है।

बुंदेलखंड के इलाके में मध्य प्रदेश के छह जिले छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना, दमोह, सागर ,दतिया और उत्तर प्रदेश के सात जिलों झांसी, ललितपुर, जालौन, हमीरपुर, बांदा, महोबा, कर्वी (चित्रकूट) आते हैं। कुल मिलाकर 13 जिलों से बुंदेलखंड बनता है। यहां के लगभग हर हिस्से से पलायन जारी है। यहां के मजदूर दिल्ली, गुरुग्राम, गाजियाबाद, पंजाब, हरियाणा और जम्मू एवं कश्मीर तक काम की तलाश में जाते हैं।

खजुराहो रेलवे स्टेशन के कुली राजकुमार पांडे का कहना है, “खजुराहो से निजामुद्दीन जाने वाली गाड़ी में हर रोज कम से कम हजार लोग काम की तलाश में जाते हैं, यह सिलसिला दिवाली के बाद से ही चल रहा है। लगभग दो महीने में सिर्फ इस एक गाड़ी से लगभग 60,000 से ज्यादा लोग अपना घर छोड़कर चले गए हैं।”

जल-जन जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक संजय सिंह ने कहा, “बुंदेलखंड आजादी से पहले एक-दो दफा अकाल के संकट से जूझा है, मगर बीते तीन दशकों में तो हालात बद से बदतर होते गए। औसतन हर तीसरे साल में सूखा पड़ा, वर्तमान में तो लगातार तीन साल से सूखा पड़ रहा है। इस इलाके में 700 मिलीमीटर बारिश हुई, पानी रोका नहीं गया और दिसंबर में हाल यह है कि लोगों को पीने के पानी के संकट से जूझना पड़ रहा है।”

बुंदेलखंड के वरिष्ठ पत्रकार अशोक गुप्ता बताते हैं कि झांसी जिले के मउरानीपुर के करीब स्थित भदरवारा गांव का रामकिशोर ट्रैक्टर मालिक है, मगर उसके पास काम नहीं है, नतीजतन उसे मजदूरी करने कानपुर जाना पड़ा है। वहां भी उसे मजदूरी के दाम नहीं मिल रहे हैं। इस इलाके से पलायन का दौर लगभग 60 दिनों से जारी है। अब तक तीन लाख से ज्यादा मजदूर घरों से पलायन कर गए हैं।

मध्य प्रदेश सरकार ने बुंदेलखंड के सभी छह जिलों की तहसीलों को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया है, और आपदा पीड़ितों के लिए राशि भी मंजूर की है, मगर उन लोगों के लिए राहत कार्य शुरू नहीं हुए हैं, जिनकी जिंदगी मजदूरी से चलती है।

सागर संभाग के संभागायुक्त आशुतोष अवस्थी से कई बार संपर्क करने का प्रयास किया गया, मगर वे उपलब्ध नहीं हुए।

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