स्मार्ट सिटी योजनाः साढ़े तीन साल बाद दम तोड़ता नजर आ रहा है शहरों को आधुनिक बनाने का सपना

साल 2015 में देश के 100 शहरों को स्मार्ट बनाने का दावा करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने स्मार्ट सिटी योजना की शुरुआत की थी। लेकिन साढ़े 3 साल से ज्यादा बीत जाने के बाद पूरे देश में शहरों को आधुनिक बनाने का मोदी सरकार का सपना दम तोड़ता नजर आ रहा है।

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

केंद्र की सत्ता में आने के बाद पीएम मोदी ने साल 2015 में बड़े-बड़े दावे करते हुए सौ शहरों को स्मार्ट बनाने की महत्वाकांक्षी योजना की शुरुआत की थी। लेकिन साढ़े तीन साल से ज्यादा बीत जाने के बाद इस योजना का भी वही हाल हुआ जो इस सरकार की दूसरी तमाम घोषणाओं का हुआ है। आज स्थिति यह है कि कागज पर तो बड़े-बड़े दावे किये जा रहे हैं, लेकिन जमीन पर कहीं कुछ नहीं है। इसे लेकर लोगों में अब निराशा है, उन्हें लगता है कि सुहाने सपने दिखाने के अलावा सरकार ने कुछ नहीं किया। स्मार्ट सिटी योजना की जमीनी सच्चाई से पाठकों को बाखबर करने के लिए नवजीवन एक श्रंखला चला रहा है, जिसकी इस कड़ी में असम और हरियाणा में योजना की जमीनी पड़ताल की गई है।

असम में स्मार्ट सिटी का हालः 3 साल में खर्च हुए महज 16 करोड़

गुवाहाटी स्मार्ट सिटी लिमिटेड ने पिछले तीन सालों में स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत आवंटित राशि में से महज 16 करोड़ रुपये ही खर्च किए हैं। गुवाहाटी को स्मार्ट सिटी में बदलने के लिए गुवाहाटी स्मार्ट सिटी लिमिटेड (जीएससीएल) का गठन किया गया है। इसका काम परियोजनाएं तैयार करने से लेकर इसे जमीन पर उतारने और इसकी निगरानी करना है। यह भारतीय कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत पंजीकृत कंपनी है जिसमें असम सरकार भागीदार है। गुवाहाटी स्मार्ट सिटी परियोजना की कुल प्रस्तावित लागत 2,296 करोड़ रुपये है। क्षेत्र आधारित विकास के लिए 1,579 करोड़ रुपये तय किए गए हैं और शहर के सर्वांगीण विकास के लिए 622 करोड़।

जीएससीएल ने विकास की अधिकतर योजनाओं को स्थगित कर रखा है और गिने-चुने कामों पर ही पैसे खर्च किए जा रहे हैं। ये योजनाएं हैं- ब्रह्मपुत्र तट का सौंदर्यीकरण, दीपर बील जलाशय में वाच टावर बनाना और गुवाहाटी की सड़कों पर एलईडी लाइट की व्यवस्था करना। जीएससीएल ने इस साल गांधी मंडप पहाड़ी को विकसित करने का लक्ष्य निर्धारित किया है और इसके तहत सबसे ऊंचे राष्ट्रीय झंडे को पहाड़ी पर लगाया गया है। लेकिन उद्घाटन के कुछ दिनों के बाद ही दो करोड़ खर्च से बना यह झंडा फट गया। सरकार ने जांच का आदेश दिया है। इस योजना के ठेकेदार बजाज इलेक्ट्रिकल लिमिटेड को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। बताया जा रहा है कि झंडा लगाने से पहले हवा के दबाव का अध्ययन नहीं किया गया।

हरियाणाः दूर की कौड़ी हुआ सुनहरे कल का सपना

हरियाणा में दिल्ली से सटे फरीदाबाद और करनाल को स्मार्ट सिटी के तौर पर विकसित करने के लिए चुना गया था। हरियाणा ऐसा राज्य है, जिसके आधे से ज्यादा जिले राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आते हैं। केंद्र और राज्य दोनों में बीजेपी की सरकार है। बावजूद इसके स्मांर्ट सिटी का सपना इन दोनों शहरों के लिए साकार होना दूर की कौड़ी नजर आ रहा है। करनाल तो सीएम सिटी के तौर पर जाना जाता है। मुख्यमंत्री खट्टर यहीं से विधायक हैं। इसके बावजूद यहां किसी प्रोजेक्ट का डीपीआर तक तैयार नहीं हो पाया।

पहले बात कर्ण की नगरी के तौर पर विख्यात करनाल की। राज्य के मुखिया मनोहर लाल खट्टर यहीं का प्रतिनिधित्व करते हैं। स्मार्ट सिटी के लिए इस शहर के चयन में भी शायद इस कारक की अहम भूमिका थी। स्मार्ट सिटी के तहत इस शहर के लिए 1211 करोड़ के प्रोजेक्ट मंजूर हुए थे, जिसमें से अब तक सिर्फ 32 करोड़ मिल पाए हैं। करनाल स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के इंचार्ज एसपी ठुकराल ने बताया कि 58 प्रोजेक्ट पर काम होना है। मुगल कैनाल का निर्माण, नगर निगम के पुराने दफ्तर का आधुनिकीकरण, शहर के यातायात को सुधारना, बिजली, सात स्कूलों को मॉडर्न बनाने के साथ ही स्मार्ट पार्क और चौराहों का सौंदर्यीकरण जैसे अहम कार्य इसमें शामिल हैं। ठुकराल ने बताया कि ये प्रोजेक्ट अभी डीपीआर बनने की प्रक्रिया में है।

हरियाणा के दूसरे शहर फरीदाबाद के लिए 2004 करोड़ के प्रोजेक्ट मंजूर हुए, जिसमें से एक हजार करोड़ के काम पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत होने थे। फरीदाबाद स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट से जुड़े वरिष्ठ अधिकारी सुमित गुप्ता ने बताया कि अभी तक तकरीबन तीन सौ करोड़ रुपये फरीदाबाद को मिले हैं, जो मंजूर बजट का 15 फीसदी है। गुप्ता ने बताया कि फरीदाबाद में इससे स्मार्ट रोड, 59 करोड़ की लागत से कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम और झील का पानी साफ करने के लिए ट्रीटमेंट प्लांट जैसे काम होने हैं।

245 करोड़ की लागत से सड़कें बननी हैं। इनमें से चंद प्रोजेक्ट पर काम आरंभ हुआ तो वह भी शुरुआती चरण में है। अधिकतम प्रोजेक्ट की हालत यह है कि इनकी डीपीआर तक फाइनल नहीं हो पाई है। केंद्र की मोदी सरकार और हरियाणा की खट्टर सरकार अपने कार्यकाल के अंतिम वर्ष में है। लिहाजा, इन शहरों को आधुनिक बनाने का सपना दम तोड़ता नजर आ रहा है।

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